Pradosh / Trayodashi Vrat – प्रदोष / त्रयोदशी व्रत पूजन विधि, पूजन सामग्री, विधि विधान के अनुसार प्रदोष व्रत विधि
Pradosh In Hindi
Trayodashi Vrat In Hindi
प्रदोष व्रत / त्रयोदशी व्रत के बारे में
जिस तरह एकादशी के व्रत प्रत्येक महीने के शुक्ल और कृष्ण पक्ष को रखे जाते है। एकादशी के तिथि विष्णु भगवान को प्रिय है उसी तरह महीने में दो बार प्रदोष व्रत भी रखे जाते है। यह व्रत प्रत्येक महीने के शुक्ल और कृष्ण पक्ष के त्रयोदशी तिथि यानि तेरहवे दिन यह व्रत रखे जाते है। यह व्रत भगवान शिव जी को समर्पित है। यह व्रत पौष महीने को छोड़कर आप किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष से शुरू कर सकते है। अगर आप पहली बार यह व्रत शुरू करना चाहते है तब जब आप शुक्ल पक्ष में सोम प्रदोष व्रत पड़ता हो तो आप उस दिन से इस व्रत को शुरू कर सकते है। प्रदोष व्रत महीने के दोनों ही रखने चाहिए। इस तरह से 24 प्रदोष व्रत हुये। हिंदू धर्म के लोगों के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा-अर्चना किया जाता है। इस दिनभर उपवास रखा जाता है।
प्रदोष व्रत की कथा
सबसे पहले प्रदोष व्रत को चन्द्रमा ने किया था जब चन्द्रमा को क्षय रोग हो गया था तब इस रोग के निवारण के लिए उन्होंने प्रदोष व्रत रखकर प्रदोष काल में भगवान शिव की पूजा-अर्चना की थी। चन्द्रमा को त्रयोदशी के दिन ही पुन जीवन प्रदान किया और तब उनको भयानक बीमारी से मुक्ति मिली थी। तब इस दिन को त्रयोदशी कहा जाने लगा।
Pradosh Vrat Katha – प्रदोष व्रत कथा, नाम और उसके महत्व, त्रयोदशी व्रत कथा
प्रदोष व्रत का महत्व
प्रदोष का व्रत करने वाला मनुष्य सदा सुखी रहता है। उसके सम्पूर्ण पापों का नाश इस व्रत से हो जाता है। इस व्रत के करने से विधवा स्त्रियों को अधर्म से से मुक्ति मिलती है और सुहागन नारियों का सुहाग सदा अटल रहता है। बंदी कारागार से छूट जाता है। जो स्त्री पुरुष जिस कामना को लेकर इस व्रत को करते है। उनकी सभी कामनाये कैलाश पति शंकर पूरा करते है। सूत जी कहते है प्रदोष व्रत करने वाले सौ गऊ दान का फल प्राप्त होता है। इस व्रत को जो विधि-विधान और तन-मन-धन से करता है उसके सभी दुःख दूर हो जाते है। सभी माता-बहनों को ग्यारह प्रदोष व्रत या पूरी साल की प्रदोष व्रत करने के बाद उद्यापन करना चाहिए।
प्रदोष व्रत के पूजा सामग्री
- बेल पत्र
- भगवान शिव के पूरे परिवार का भी एक तस्वीर ले सकते हैं
- शिवलिंग
- धूप
- दीप
- कपूर
- गंगाजल, पवित्र जल
- फूल, पुष्प
- फल, पंच मेवा
- शहद, दूध, घी
- अक्षत
- कलावा
- सफ़ेद मिठाई
- लाल या पीला गुलाल
- भांग, धतूरा
- नया वस्त्र
- आसन
- शिव चालीसा, प्रदोष व्रत कथा की पुस्तक
- शंख, घंटा
- हवन सामग्री
भगवान शंकर जी के अभिषेक के लिए सामग्री
- कच्चा दूध
- दही
- शहद
- गंगाजल
- घी
भगवान गणेश जी को चढाने के लिए सामग्री
- दूर्वा
- लाल-पीले पुष्प
- जनेऊ
माता पार्वती को चढाने के लिए सामग्री
सुहाग की 16 श्रृंगार का सामान
प्रदोष व्रत के पूजा मुहूर्त
प्रदोष काल का समय सूर्यास्त से 45 मिनट पहले और 45 मिनट बाद का होता है। हर व्रत में भगवान शिव से सबन्धित जो भी व्रत होता है उसमे खासतौर पर और व भी व्रत के दिन आपको प्रदोष काल में ही भगवान शिव की पूजा अर्चना सच्चे मन और पूर्ण विश्वास के साथ करनी चाहिए। प्रदोष काल का जो समय होता है वह मौसम के अनुसार बदल जाता है इसलिए आपको जब व्रत रखना हो तो उस दिन के सूर्यास्त के समय के बारे में जरुर पता होना चाहिए। प्रदोष काल के समय भगवान शिव बहुत ही प्रसन्न मुद्रा में होते है और आनंद तांडव करते है ऐसे समय जब उनके भक्त उन्हें पुकारते है तब भगवान शिव बहुत जल्दी उनकी मनोकामना पूरा कर देते है।
प्रदोष व्रत करने की विधि
वैसे तो अनेकों व्रत होते है। हर एक व्रत का अपना एक अलग ही महत्व होता है और उस व्रत के पूजा करने की विधि भी अलग होती है। वैसे ही प्रदोष व्रत करने का अपना एक विधि होता है जो इस प्रकार है:-
- विधि-विधान सहित त्रयोदशी व्रत करने वालों को सूर्योदय से प्रथम ही ब्रह्मा मुहूर्त में उठे।
- नित्यकर्म से निवृत होकर स्नान आदि करने के बाद आप साफ कपड़े पहनें।
- सूर्य भगवान को जल चढ़ावें।
- जल चढ़ाने के बाद आप जैसे घर के मंदिर में रोज पूजा पाठ करते वैसे करें।
- शंकर भगवान का स्मरण करना चाहिये। व्रत वाले दिन भोजन नहीं करना चाहिए।
- सायं कल को जब सूर्यास्त में घंटा भर शेष रहे।
- तब स्नानादि कर्मो से निवृत होकर श्वेत वस्त्र धारण करे।
- पूजन के स्थान को स्वच्छ जल और गाय के गोबर से लीप कर मंडप को भली-भाँति सजाकर पांच रंगों से साज दे।
- इसके बाद इस मंडप में भगवान शिव, भगवान गणेश और माता पार्वती की प्रतिमा को रखें।
- कुशा के आसन पर पूर्व तथा उत्तर दिशा से विमुख होकर आसन पर बैठे और शंकर भगवान का पूजन करें।
- “ॐ नम: शिवाय” इस मन्त्र को पढ़ कर जल चढ़ावें और ऋतु फल अर्पण करें।
- पूजा करने के बाद धूप-दीप से भगवान शिव और माता पार्वती की आरती करें।
नोट:- सांयकल के बाद और रात्रि आने से पूर्व, दोनों के बीच का संध्या समय का जो समय होता है उसे ही प्रदोष कहते है।
प्रदोष व्रत के नाम और उसके महत्व
सप्ताह के सातों दिनों के नाम पर प्रदोष व्रत के नाम भी रखे गए है सभी व्रतों का अपना महत्व अलग-अलग होता है उनका फल भी अलग-अलग होता है। तो इस प्रदोष व्रत के फायदे इस प्रकार है:-
1. रवि प्रदोष:- रवि के दिन पड़ने वाले प्रदोष को रवि प्रदोष कहते है। रवि प्रदोष को भानु प्रदोष के नाम से भी जाना जाता है। आयु आरोग्यता के लिए रवि प्रदोष करना चाहिए। अगर आपके कुंडली में अपयश के योग है तो रवि प्रदोष करने से नाम, सम्मान और यश मिलता है। रवि प्रदोष आपके कई तरह के दोषों को दूर करता है और आपके ग्रह दोष के भी परेशानियां से छुटकारा दिलाता है। इस दिन भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने से आपके दांपत्य सुख में भी वृद्धि होती है।
2. सोम प्रदोष:- सोमवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष को सोम प्रदोष कहते है। इस दिन व्रत रखने से आपको मन के अनुसार फल की प्राप्ति होती है। जिसका भी चन्द्र ख़राब है उनको यह सोमवार के दिन पड़ने वाले प्रदोष को जरुर करना चाहिए। जिसे आपके जीवन में सुख-शांति बनी रहेगी। अभीष्ट सिद्धि के कामना हेतु सोम प्रदोष व्रत करें। अकसर लोग ये व्रत संतान प्राप्ति के लिए करते है।
3. मंगल प्रदोष:- मंगल के दिन पड़ने वाले प्रदोष को मंगल प्रदोष कहते है। मंगल प्रदोष को भौम प्रदोष के नाम से भी जाना जाता है। अगर आपको कोई बीमारी है वह ठीक नहीं हो रहा है। तो आप अपने रोगों से मुक्त और स्वास्थ्य हेतु के लिए मंगल प्रदोष व्रत अवश्य करें।
4. बुद्ध प्रदोष:- बुद्ध के दिन पड़ने वाले प्रदोष को बुद्ध प्रदोष कहते है। बुद्ध प्रदोष को सौम्य प्रदोष के नाम से भी जाना जाता है। जो लोग शिक्षा से जुड़ें होते बुद्ध प्रदोष करने से उन्हें बहुत ही लाभ होता है। सर्व कामना सिद्धि के लिए बुद्ध प्रदोष व्रत करें।
5. गुरु प्रदोष:- गुरु के दिन पड़ने वाले प्रदोष को गुरु प्रदोष कहते है। इस प्रदोष को करने से आपके वृहस्पति ग्रह मजबूत होते है। इस दिन व्रत करने से जो भी आपके शत्रु है और उनसे आपको जो खतरा है उनका सबका विनाश हो जाता है। इसलिए आप अपने शत्रुओ से रक्षा के लिए गुरु प्रदोष व्रत अवश्य करें।
6. शुक्र प्रदोष:- शुक्र के दिन पड़ने वाले प्रदोष को शुक्र प्रदोष कहते है। अगर आप जीवन में सौभाग्य की प्राप्ति करना चाहते है तो यह वाला प्रदोष व्रत अवश्य करें। यह आपको सौभाग्य की प्राप्ति दिलाता है और धन, सपंदा और आपको सभी कार्यो में सफलता मिलती है।
7. शनि प्रदोष:- शनि के दिन पड़ने वाले प्रदोष को शनि प्रदोष कहते है। यह प्रदोष पुत्र प्राप्ति के लिए किया जाता है। अकसर लोग इसे हर तरह की मनोकामना के लिए और नौकरी में पद प्राप्ति कामना के लिए शनि प्रदोष का व्रत करते है।
नोट:- शास्त्रों में यह कहा गया है यदि कोई भी 11 अथवा एक वर्ष के समस्त त्रयोदशी के व्रत करता है तो उसकी समस्त मनोकामना अवश्य और जल्द ही पूर्ण हो जाती है। माना जाता है की चन्द्र के सुधार होने से शुक्र भी सुधरता है और शुक्र के सुधरने से बुध भी सुधार जाता है और मानसिक बेचैनी भी ख़त्म हो जाता है इसलिए आप प्रदोष जरुर करें। त्रयोदशी के दिन जो वार पड़ता हो उसी वार का ( त्रयोदशी प्रदोष व्रत ) करना चाहिए। तथा उसी दिन की कथा पढ़नी व सुननी चाहिए। रवि, सोम, शनि ( त्रयोदशी प्रदोष व्रत ) अवश्य करें इनसे अभीष्ट फल की प्राप्ति होती है।
प्रदोष व्रत उद्यापन विधि
- कार्य सिद्ध होने पर ( प्रदोष व्रत का उद्यापन करें ) एक दिन पूर्व गणेश पूजन करें।
- घर में अथवा मंदिर में भजन कीर्तन द्वारा रात्रि को जागरण करें।
- सुबह होते ही स्नानादि से निवृत हो रंगी पदम-पुष्प रोली से मंडप बना उसमे शिव-पार्वती की प्रतिमा स्थापित कर पूजन करें।
- हवन करते समय ( उमा सहित ॐ नम: शिवाय मन्त्र ) से 108 बार जपकर खीर की आहुति दें।
- हवन के बाद आरती व शांति पाठ करके दो ब्राह्मणों को भोजन करा दक्षिणा दें।
- उनसे यह आशीर्वाद लें की आपका व्रत सफल हो। यह वचन दोनों पंडित कहें।
- जो स्त्री पुरुष इस विधि-विधान से व्रत करके उद्यापन करते हैं उनकी सभी मनोकामना पूर्ण होती है वह मोक्ष को भी प्राप्त होते है।
- ऐसा स्कन्ध पुराण में कहा गया है।
प्रदोष व्रत के महत्वपूर्ण प्रश्न
प्र.1 प्रदोष व्रत कैसे किया जाता है?
उ. प्रदोष व्रत प्रत्येक महीने के शुक्ल और कृष्ण पक्ष के त्रयोदशी तिथि यानि तेरहवे दिन यह व्रत रखे जाते है। यह व्रत भगवान शिव जी को समर्पित है। प्रदोष व्रत लगातार 11 या 26 त्रयोदशी तक रखें और पूरे हो जाने पर इस व्रत का उद्यापन भी किया जाता है। उद्यापन करके व्रत का समापन करें।
प्र.2 मैं प्रदोष व्रत कब शुरू कर सकता हूं?
उ. यह व्रत पौष महीने को छोड़कर आप किसी भी महीने के शुक्ल पक्ष से शुरू कर सकते है। अगर आप पहली बार यह व्रत शुरू करना चाहते है तब जब आप शुक्ल पक्ष में सोम प्रदोष व्रत पड़ता हो तो आप उस दिन से इस व्रत को शुरू कर सकते है।
प्र.3 प्रदोष व्रत में क्या नहीं खाना चाहिए?
उ. प्रदोष व्रत करने वालों को इस दिन अन्न नहीं खाना चाहिए और नमक का भी सेवन नहीं करना चाहिए। घर के बाकी सदस्यों को भी इस दिन मांसाहारी भोजन नहीं करना चाहिए। उनको सात्विक भोजन ही करना चाहिए।
प्र.4 प्रदोष व्रत में क्या खाना चाहिए?
उ. प्रदोष व्रत के दिन आप फलाहार खा सकते है। जैसे साबूदाने की खीर, कुट्टू के आटे के पकोड़े, फल, मावा, बर्फ़ी और नारियल की बर्फ़ी खा सकते है।
प्र.5 प्रदोष व्रत का क्या लाभ है?
उ. प्रदोष का व्रत करने वाला मनुष्य सदा सुखी रहता है। उसके सम्पूर्ण पापों का नाश इस व्रत से हो जाता है।
प्र.6 प्रदोष व्रत में क्या भोग लगाना चाहिए?
उ. प्रदोष व्रत के दिन शंकर जी को दही और घी का भोग जरूर लगाना चाहिए। इसके अलावा आप मालपुआ, सफेद बर्फी, और खीर आदि का भोग भी लगा सकते हैं।
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