आरती

Vishnu Ji ki Aarti – विष्णु जी की 4 आरतियाँ, ॐ जय जगदीश हरे, जय लक्ष्मी रमणा, जय वृहस्पति देवा, पवन मंद सुगंध शीतल

 

Vishnu Bhagwan Ki Aarti In Hindi
Vishnu Aarti Lyrics In Hindi

 

बृहस्‍पतिवार यानि गुरुवार का दिन विष्‍णु जी को समर्पित है। गुरुवार के दिन विष्‍णु भगवान जी का व्रत और पूजा व आरती करने विष्‍णु जी बहुत प्रसन्‍न होते हैं। सृष्टि के पालनहार है विष्‍णु जी। विष्‍णु जी को सत्‍यनारायण भी कहा जाता है।  किसी भी कार्य की समृद्धि के लिए सत्‍यनारायण जी की कथा की जाती है। लक्ष्‍मी जी के पति विष्‍णु जी हैं। विष्‍णु जी की कोई भी पूजा या कथा विष्‍णु जी की आरती किए बिना संपन्‍न नहीं होती है। तो यहां हम आपको विष्‍णु जी की विभिन्‍न आरतियों के बारे में बताने रहे है जिसे पढ़कर आप अपनी पूजा तथा कथा को संपन्‍न कर सकेंगे।

 

ॐ जय जगदीश हरे – विष्‍णु जी की आरती

 

ॐ जय जगदीश हरे,
स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट,
दास जनों के संकट,
क्षण में दूर करे ॥
ॐ जय जगदीश हरे..

जो ध्यावे फल पावे,
दुःख बिनसे मन का,
स्वामी दुःख बिनसे मन का ।
सुख सम्पति घर आवे,
सुख सम्पति घर आवे,
कष्ट मिटे तन का ॥
ॐ जय जगदीश हरे..

मात पिता तुम मेरे,
शरण गहूं किसकी,
स्वामी शरण गहूं मैं किसकी ।
तुम बिन और न दूजा,
तुम बिन और न दूजा,
आस करूं मैं जिसकी ॥
ॐ जय जगदीश हरे..

तुम पूरण परमात्मा,
तुम अन्तर्यामी,
स्वामी तुम अन्तर्यामी ।
पारब्रह्म परमेश्वर,
पारब्रह्म परमेश्वर,
तुम सब के स्वामी ॥
ॐ जय जगदीश हरे..

तुम करुणा के सागर,
तुम पालनकर्ता,
स्वामी तुम पालनकर्ता ।
मैं मूरख फलकामी,
मैं सेवक तुम स्वामी,
कृपा करो भर्ता॥
ॐ जय जगदीश हरे..

तुम हो एक अगोचर,
सबके प्राणपति,
स्वामी सबके प्राणपति ।
किस विधि मिलूं दयामय,
किस विधि मिलूं दयामय,
तुमको मैं कुमति ॥
ॐ जय जगदीश हरे..

दीन-बन्धु दुःख-हर्ता,
ठाकुर तुम मेरे,
स्वामी रक्षक तुम मेरे ।
अपने हाथ उठाओ,
अपने शरण लगाओ,
द्वार पड़ा तेरे ॥
ॐ जय जगदीश हरे..

विषय-विकार मिटाओ,
पाप हरो देवा,
स्वमी पाप(कष्ट) हरो देवा ।
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,
श्रद्धा भक्ति बढ़ाओ,
सन्तन की सेवा ॥

ॐ जय जगदीश हरे,
स्वामी जय जगदीश हरे ।
भक्त जनों के संकट,
दास जनों के संकट,
क्षण में दूर करे ॥

॥बोलो जगदीश भगवान की जय॥

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जय लक्ष्मी रमणा – श्री सत्यनारायण जी आरती

 

जय लक्ष्मी रमणा,

स्वामी जय लक्ष्मी रमणा।

सत्यनारायण स्वामी,

जन पातक हरणा॥

 

ॐ जय लक्ष्मी रमणा,

स्वामी जय लक्ष्मी रमणा॥

 

रत्‍‌न जडि़त सिंहासन,

अद्भुत छवि राजै।

नारद करत निराजन,

घण्टा ध्वनि बाजै॥

 

ॐ जय लक्ष्मी रमणा,

स्वामी जय लक्ष्मी रमणा॥

 

प्रकट भये कलि कारण,

द्विज को दर्श दियो।

बूढ़ा ब्राह्मण बनकर,

कंचन महल कियो॥

 

ॐ जय लक्ष्मी रमणा,

स्वामी जय लक्ष्मी रमणा॥

 

दुर्बल भील कठारो,

जिन पर कृपा करी।

चन्द्रचूड़ एक राजा,

तिनकी विपत्ति हरी॥

 

ॐ जय लक्ष्मी रमणा,

स्वामी जय लक्ष्मी रमणा।

 

वैश्य मनोरथ पायो,

श्रद्धा तज दीन्ही।

सो फल भोग्यो प्रभुजी,

फिर-स्तुति कीन्हीं॥

 

ॐ जय लक्ष्मी रमणा,

स्वामी जय लक्ष्मी रमणा॥

 

भाव भक्ति के कारण,

छिन-छिन रूप धरयो।

श्रद्धा धारण कीन्हीं,

तिनको काज सरयो॥

 

ॐ जय लक्ष्मी रमणा,

स्वामी जय लक्ष्मी रमणा॥

 

ग्वाल-बाल संग राजा,

वन में भक्ति करी।

मनवांछित फल दीन्हों,

दीनदयाल हरी॥

 

ॐ जय लक्ष्मी रमणा,

स्वामी जय लक्ष्मी रमणा॥

 

चढ़त प्रसाद सवायो,

कदली फल, मेवा।

धूप दीप तुलसी से,

राजी सत्यदेवा॥

 

ॐ जय लक्ष्मी रमणा,

स्वामी जय लक्ष्मी रमणा॥

 

श्री सत्यनारायण जी की आरती,

जो कोई नर गावै।

ऋद्धि-सिद्ध सुख-संपत्ति,

सहज रूप पावे॥

 

जय लक्ष्मी रमणा,

स्वामी जय लक्ष्मी रमणा।

सत्यनारायण स्वामी,

जन पातक हरणा॥

॥बोलो सत्‍यनारायण स्‍वामी जी की जय॥

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जय वृहस्पति देवा – श्री बृहस्पति देव की आरती

 

जय वृहस्पति देवा,

ऊँ जय वृहस्पति देवा ।

छिन छिन भोग लगा‌ऊँ,

कदली फल मेवा ॥

 

ऊँ जय वृहस्पति देवा,

जय वृहस्पति देवा ॥

 

तुम पूरण परमात्मा,

तुम अन्तर्यामी ।

जगतपिता जगदीश्वर,

तुम सबके स्वामी ॥

 

ऊँ जय वृहस्पति देवा,

जय वृहस्पति देवा ॥

 

चरणामृत निज निर्मल,

सब पातक हर्ता ।

सकल मनोरथ दायक,

कृपा करो भर्ता ॥

 

ऊँ जय वृहस्पति देवा,

जय वृहस्पति देवा ॥

 

तन, मन, धन अर्पण कर,

जो जन शरण पड़े ।

प्रभु प्रकट तब होकर,

आकर द्घार खड़े ॥

 

ऊँ जय वृहस्पति देवा,

जय वृहस्पति देवा ॥

 

दीनदयाल दयानिधि,

भक्तन हितकारी ।

पाप दोष सब हर्ता,

भव बंधन हारी ॥

 

ऊँ जय वृहस्पति देवा,

जय वृहस्पति देवा ॥

 

सकल मनोरथ दायक,

सब संशय हारो ।

विषय विकार मिटा‌ओ,

संतन सुखकारी ॥

 

ऊँ जय वृहस्पति देवा,

जय वृहस्पति देवा ॥

 

जो को‌ई आरती तेरी,

प्रेम सहित गावे ।

जेठानन्द आनन्दकर,

सो निश्चय पावे ॥

 

ऊँ जय वृहस्पति देवा,

जय वृहस्पति देवा ॥

॥बोलो वृहस्पतिदेव भगवान की जय॥

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पवन मंद सुगंध शीतल – बद्रीनाथ जी की आरती

 

पवन मंद सुगंध शीतल,

हेम मंदिर शोभितम् ।

निकट गंगा बहत निर्मल,

श्री बद्रीनाथ विश्व्म्भरम् ॥

 

शेष सुमिरन करत निशदिन,

धरत ध्यान महेश्वरम् ।

वेद ब्रह्मा करत स्तुति,

श्री बद्रीनाथ विश्वम्भरम् ॥

॥ पवन मंद सुगंध शीतल…॥

 

शक्ति गौरी गणेश शारद,

नारद मुनि उच्चारणम् ।

जोग ध्यान अपार लीला,

श्री बद्रीनाथ विश्व्म्भरम् ॥

॥ पवन मंद सुगंध शीतल…॥

 

इंद्र चंद्र कुबेर धुनि कर,

धूप दीप प्रकाशितम् ।

सिद्ध मुनिजन करत जय जय,

बद्रीनाथ विश्व्म्भरम् ॥

॥ पवन मंद सुगंध शीतल…॥

 

यक्ष किन्नर करत कौतुक,

ज्ञान गंधर्व प्रकाशितम् ।

श्री लक्ष्मी कमला चंवरडोल,

श्री बद्रीनाथ विश्व्म्भरम् ॥

॥ पवन मंद सुगंध शीतल…॥

 

कैलाश में एक देव निरंजन,

शैल शिखर महेश्वरम् ।

राजयुधिष्ठिर करत स्तुति,

श्री बद्रीनाथ विश्व्म्भरम् ॥

॥ पवन मंद सुगंध शीतल…॥

 

श्री बद्रजी के पंच रत्न,

पढ्त पाप विनाशनम् ।

कोटि तीर्थ भवेत पुण्य,

प्राप्यते फलदायकम् ॥

॥ पवन मंद सुगंध शीतल…॥

 

पवन मंद सुगंध शीतल,

हेम मंदिर शोभितम् ।

निकट गंगा बहत निर्मल,

श्री बद्रीनाथ विश्व्म्भरम् ॥

॥बोलो बद्रीनाथ भगवान की जय॥

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श्री विष्‍णु जी के मंत्र

 

* ॐ नमो भगवते वासुदेवाय।

 

* ॐ नमो नारायणाय।

 

* ॐ भूरिदा भूरि देहिनो, मा दभ्रं भूर्या भर। भूरि घेदिन्द्र दित्ससि।

ॐ भूरिदा त्यसि श्रुत: पुरूत्रा शूर वृत्रहन्। आ नो भजस्व राधसि।

 

ॐ बृं बृहस्पतये नम:।

 

* ॐ क्लीं बृहस्पतये नम:।

 

* ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:।

 

* ॐ ऐं श्रीं बृहस्पतये नम:।

 

* ॐ गुं गुरवे नम:।

 

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श्री विष्‍णु जी की आरती के कुछ महत्‍वपूर्ण प्रश्‍न

प्र.1 भगवान विष्णु का दूसरा नाम क्या है?

उ. भगवान विष्णु को नारायण नाम से भी जाना जाता है।

 

प्र.2 विष्णु भगवान को क्या चढ़ाया जाता है?

उ. भगवान विष्णु को तुलसी पसंदीदा है इसके साथ ही शमी पत्र, बिल्वपत्र और दूर्वा यानी दूब पसंदीदा पत्ते है।

 

प्र.3 भगवान विष्‍णु किसका ध्यान करते हैं?

उ. भगवान विष्‍णु भगवान श्री शिव की आराधना करते हैं।

 

प्र.4 विष्णु भगवान को कौन सा प्रसाद चढ़ता है?

उ. पीला रंग धारण करने के कारण उन्हें पीतांबर भी कहते हैं क्‍योंंकि भगवान विष्णु को पीला रंग अत्यंत प्रिय है। उन्हें पीले रंग के फूल व फलों का भोग लगाया जाना चाहिए। पीले रंग के चना दाल और गुड़ को मिलाकर भी चढ़ाया जाता है। गुरुवार के दिन भगवान श्री हरि को पंचामृत का भोग अवश्य लगाना चाहिए। मान्यता है कि श्री हरी विष्णु मालपुए से बहुत प्रसन्न होते हैं।

 

प्र.5 विष्णु पुराण का मूल मंत्र क्या है?

उ. “कराग्रे वसते लक्ष्मी”

 

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