चालीसा

Maa Durga Chalisa Meaning – मां दुर्गा चालीसा हिंदी में अर्थ सहित यहां पढ़ें

 

Durga Chalisa Hindi Translation
Durga Chalisa Lyrics In Hindi With Meaning

 

Durga Chalisa Ka Arth – मां दुर्गा के नौ रूप है, जिनकी पूजा नवरात्रों में बड़ी धूमधाम से की जाती है। दुर्गा चालीसा देवी दुर्गा से की जाने वाली देवी की चालीस छंदों/ चौपाईयों की प्रार्थना है। दुर्गा चालीसा का पाठ नित्‍य करने से आध्यात्मिक, भौतिक और भावनात्मक शांति मिलती है, और सकारात्‍मकता बढ़ती है जिससे पाठक के मन में सकारात्‍मक भाव उत्‍पन्‍न होते है। सच्‍चे मन से मॉं दुर्गा चालीसा पढ़ने से माता अत्‍यन्‍त प्रसन्‍न होती है। कई लोग मॉं दुर्गा चालीसा का पाठ करते है पर उसका अर्थ नहीं पता होता है। तो हम आपको अर्थ सहित दुर्गा चालीसा का वर्णन करने जा रहे है। जिससे आप दुर्गा चालीसा की सभी चौपाईयों का अर्थ सहित पाठ कर पाएंगे।

 

Durga Chalisa Arth In Hindi

नमो नमो दुर्गे सुख करनी । नमो नमो अम्बे दुःख हरनी ॥

अर्थ:- सुख प्रदान करने वाली मां दुर्गा को मेरा नमस्कार है। दुख हरने वाली मां श्री अम्बा को मेरा नमस्कार है।

निरंकार है ज्योति तुम्हारी । तिहूं लोक फैली उजियारी ॥

अर्थ:- आपकी ज्योति अमूर्त है, जिसका तीनों लोको पृथ्वी, आकाश और पाताल में प्रकाश फैल रहा है।

शशि लिलाट मुख महा विशाला । नेत्र लाल भृकुटी विकराला ॥

अर्थ:- आपका मस्तक चन्द्रमा के समान और मुख अति विशाल है। नेत्र रक्‍त के समान लाल एवं भौहें विकराल रूप वाली हैं।

रूप मातु को अधिक सुहावे । दरश करत जन अति सुख पावे ॥

अर्थ:- हे मां दुर्गा आपका रूप बहुत ही सुंदर और सुहावना है, जिसे बार-बार देखते ही रहने का मन करता है। इसका दर्शन करने से भक्तजनों को परम सुख मिलता है।

तुम संसार शक्ति लय कीना । पालन हेतु अन्न धन दीना ॥

अर्थ:- संसार के सभी शक्तियों को आपने अपने में समेटा हुआ है। जगत के पालन हेतु अन्न और धन प्रदान किया है।

अन्नपूरना हुई जग पाला । तुम ही आदि सुन्दरी बाला ॥

अर्थ:- अन्नपूर्णा का रूप धारण कर आप ही जगत पालन करती हैं इस जगत में सबसे खूबसूरत छवि आपकी ही है।

प्र्लयकाल सब नाशन हारी । तुम गौरी शिव शंकर प्यारी ॥

अर्थ:- जरूरत पड़ने पर प्रलयकाल में आप ही विश्व का नाश करती हैं। भगवान शंकर की प्‍यारी गौरी अर्थात  पार्वती भी आप ही हैं।

शिव योगी तुमरे गुण गावें । ब्रह्मा विष्णु तुम्हें नित ध्यावें ॥

अर्थ:- शिव व सभी योगी आपका गुणगान करते हैं। ब्रह्मा-विष्णु सहित सभी देवता नित्य आपका ध्यान करते हैं।

रूप सरस्वती को तुम धारा । दे सुबुद्धि ऋषि मुनिन उबारा ॥

अर्थ:- आपने ही मां सरस्वती का रूप धारण कर ऋषि-मुनियों को सद्बुद्धि प्रदान की और उनका उद्धार किया।

धरयो रूप नरसिंह को अम्बा । प्रगट भई फाड़ कर खम्बा ॥

अर्थ:- हे अम्बे माता! आप ही ने श्री नरसिंह का रूप धारण किया था और खम्बे को चीरकर प्रकट हुई थीं।

रक्षा करि प्रहलाद बचायो । हिरणाकुश को स्वर्ग पठायो ॥

अर्थ:- आपने भक्त प्रहलाद की रक्षा करके हिरण्यकश्यप को स्वर्ग प्रदान किया, क्योकिं वह आपके हाथों मारा गया।

लक्ष्मी रूप धरा जग माहीं । श्री नारायण अंग समाही ॥

अर्थ:- लक्ष्मी का रूप धारण करके आप ही श्री हरि विष्णु के साथ में समाहित हैं।

क्षीरसिंधु में करत विलासा । दया सिन्धु दीजै मन आसा ॥

अर्थ:-क्षीरसागर में भगवान विष्णु के साथ विराजमान हे दयासिन्धु देवी! आप सभी के मन की आशाओं को पूर्ण करती है।

हिंगलाज में तुम्हीं भवानी । महिमा अमित न जात बखानी ॥

अर्थ:- हिंगलाज की भी देवी आप ही हैं। आपकी महिमा का बखान तो हम में से कोई नहीं कर सकता है।

मातंगी अरु धूमावति माता । भुवनेश्वरी बगला सुखदाता ॥

अर्थ:- मातंगी देवी और धूमावाती भी आप ही हैं भुवनेश्वरी और बगलामुखी देवी के रूप में भी सुख की दाता आप ही हैं।

श्री भैरव तारा जग तारिणि । छिन्न भाल भव दुःख निवारिणि ॥

अर्थ:-  माँ भैरवी व माँ तारा के रूप में आप ही इस जगत का उद्धार कर रही हैं। माँ छिन्नमस्ता के रूप में आप ही इस सृष्टि का दुःख और कष्‍टों को दूर करती हैं।

केहरी वाहन सोह भवानी । लांगुर वीर चलत अगवानी ॥

अर्थ:- आपके वाहन शेर पर आप भवानी रूप में विराजमान हैं। स्वयं दुर्गा जी भी आपकी सेवा में तत्पर रहते है।

कर में खप्पर खड्ग विराजे । जाको देख काल डर भाजे ॥

अर्थ:- आपके हाथों में राक्षसों की खोपड़ियाँ व तलवार होती है जिसे देख कर तो स्वयं काल भी भयभीत हो जाते हैं।

सोहे अस्त्र और त्रिशूला । जाते उठत शत्रु हिय शूला ॥

अर्थ:- आपके हाथों में तरह-तरह के अस्त्र व त्रिशूल बहुत सुहाते है। जिन्‍हें देख कर तो सभी दुष्ट व राक्षस भयभीत हो उठते हैं।

नगर कोटि में तुम्हीं विराजत । तिहूं लोक में डंका बाजत ॥

अर्थ:- आप हर नगर में बसती हैं व साथ ही तीनो लोकों में आपकी जय-जयकार होती है।

शुम्भ निशुम्भ दानव तुम मारे । रक्त बीज शंखन संहारे ॥

अर्थ:- शुम्भ व निशुम्भ नामक राक्षसों का वध आपने ही किया था। रक्तबीज और शंख नामक भयंकर राक्षस का संहार भी आपके ही हाथों हुआ था। का वध भी आपने ही किया था।

महिषासुर नृप अति अभिमानी । जेहि अध भार मही अकुलानी ॥

अर्थ:- एक समय में अभिमानी महिषासुर राक्षस के पापों के भार से जब धरती व्याकुल हो उठी।

रूप कराल कालिका धारा । सेन सहित तुम तिहि संहारा ॥

अर्थ:- तब काली का विकराल रूप धारण कर आपने उस पापी राक्षस (महिषासुर) का सेना सहित संहार कर दिया।

परी गाढ़ सन्तन पर जब जब । भई सहाय मातु तुम तब तब ॥

अर्थ:- इस सृष्टि में जब कभी भी आपके भक्तों पर किसी तरह का संकट या विपदा आई है, तब-तब आपने माता के रूप में उन्हें सहारा दिया है।

अमरपुरी अरु बासव लोका । तब महिमा सब रहे अशोका ॥

अर्थ:-  हे माता! जब तक देवों की अमरपुरी और तीनों लोकों का अस्तित्व है, तब तक आपके भक्तों को कोई शोक नहीं घेर सकता है।

ज्वाला में है ज्योति तुम्हारी । तुम्हें सदा पूजें नर नारी ॥

अर्थ:- ज्वाला की ज्योति में आपके समाहित होने से अनंत काल से ज्योति जलती चली आ रही है। सभी नर-नारी हमेशा आपकी पूजा करते रहें।

प्रेम भक्ति से जो यश गावे । दुःख दारिद्र निकट नहिं आवे ॥

अर्थ:- जो भी प्रेम व भक्ति भाव के साथ आपके गुणगान गाता है, दुख एवं दरिद्रता उसके नजदीक नहीं आती है।

ध्यावे तुम्हें जो नर मन लाई । जन्म-मरण ताकौ छुटि जाई ॥

अर्थ:- जो भी सच्चे मन से आपकी आराधना करता है, वह जन्म-मरण के सभी बंधन से मुक्ति पाकर मोक्ष को प्राप्त करता है।

जोगी सुर मुनि कहत पुकारी । योग न हो बिन शक्ति तुम्हारी ॥

अर्थ:- हे मॉं सभी योगी, देवता व ऋषि-मुनि भी आपको पुकारते कहते हैं कि आपके बिना तो योग भी नहीं किया जा सकता है।

शंकर आचारज तप कीनो । काम अरु क्रोध जीति सब लीनो ॥

अर्थ:- शंकराचार्यजी ने आचारज नामक तप करके काम, क्रोध, मद, लोभ आदि सबको जीत लिया।

निशिदिन ध्यान धरो शंकर को । काहु काल नहिं सुमिरो तुमको ॥

अर्थ:- उन्होंने हर दिन भगवान शंकर का ध्यान किया मगर आपको स्मरण नहीं किया।

शक्ति रूप को मरम न पायो । शक्ति गई तब मन पछतायो ॥

अर्थ:- वे आपके शक्ति रूप को समझ नहीं पाए। जब उनकी शक्तियां छिन गई, तब मन ही मन उन्हें पछतावा हुआ।

शरणागत हुई कीर्ति बखानी । जय जय जय जगदम्ब भवानी ॥

अर्थ:- आपकी शरण आकार उन्‍होंने आपकी कीर्ति का बखान करके जय जय जय जगदम्बा भवानी का गुणगान किया।

भई प्रसन्न आदि जगदम्बा । दई शक्ति नहिं कीन विलम्बा ॥

अर्थ:- उनके इस कृत्य से आप बहुत प्रसन्न हो गयी और आपने उन्हें पुनः सभी शक्तियां बिना किसी देरी के दे दी।

मोको मात कष्ट अति घेरो । तुम बिन कौन हरे दुःख मेरो ॥

अर्थ:- हे माँ दुर्गा! मेरे जीवन में भी बहुत संकट हैं जिन्होंने मुझे हर ओर से घेर रखा है। आपके सिवा कौन ही मेरा यह दुःख दूर कर सकता है।

आशा तृष्णा निपट सतावै । मोह मदादिक सब विनशावै ॥

अर्थ:- आशा व इच्‍दा मुझे हर समय सताती है। मुझे क्रोध, मोह, अहंकार, काम और ईर्ष्या जैसे भाव परेशान करते हैं।

शत्रु नाश कीजै महारानी । सुमिरों इकचित तुम्हें भवानी ॥

अर्थ:- हे भवानी! अब आप ही मेरे इन शत्रुओं का नाश कीजिये। मैं एकचित होकर हर समय आपका ध्यान करता हूँ।

करो कृपा हे मात दयाला । ऋद्धि-सिद्धि दे करहु निहाला ॥

अर्थ:- हे दुर्गा मॉं!अब आप अपने इस भक्त पर कृपा कीजिये। आप मुझे रिद्धि व सिद्धि प्रदान कर मेरा उद्धार कीजिये।

जब लगी जियौ दया फल पाऊं । तुम्हारो यश मैं सदा सुनाऊं ॥

अर्थ:- मैं जब तक इस सृष्टि में जीवित हूँ, तब तक मैं आपकी दया का पात्र बना रहूँ। आपका यश सबको सुनाता रहूँगा।

दुर्गा चालीसा जो जन गावे । सब सुख भोग परमपद पावे ॥

अर्थ:- जो व्यक्ति नियमित दुर्गा चालीसा का पाठ करता है, वह हर सुख भोगता है और परम आनंद प्राप्‍त करता है।

देवीदास शरण निज जानी । करहु कृपा जगदम्ब भवानी ॥

अर्थ:- हे जगदम्‍बा भवानी! इस देवी के दास को अपनी शरण में जानकर इस पर अपनी कृपा बनाए रखिए।

* इति श्री दुर्गा चालीसा *

दुर्गामाता की जय ॥

 

 

मां दुर्गा मंत्र

* ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी।
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुते।।

 

* या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

 

* या देवी सर्वभूतेषु लक्ष्मीरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

 

* या देवी सर्वभूतेषु तुष्टिरूपेण संस्थिता,
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।

 

सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते।।

 

* दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तोः। सवर्स्धः स्मृता मतिमतीव शुभाम् ददासि।।

 

* दुर्गे देवि नमस्तुभ्यं सर्वकामार्थसाधिके। मम सिद्धिमसिद्धिं वा स्वप्ने सर्वं प्रदर्शय।।

 

दुर्गा चालीसा पढ़ने के फायदे

दुर्गा चालीसा पढ़ने से क्या फल मिलता है?

दुर्गा चालीसा का नियमित रूप से जाप करने से देवी मां का आशीर्वाद जीवन भर मिलता रहता है। दुर्गा चालीसा का पढ़ने से मां प्रसन्न होती हैं और मनोवांछित आशीर्वाद देती हैं। दुर्गा चालीसा के पाठ से सकारात्मक विचार आते है, जिससे मन शांत रहता है।

क्या हमें दुर्गा चालीसा रोज पढ़ना चाहिए?

दुर्गा चालीसा का जाप नियमित रूप से करने से देवी का आशीर्वाद जीवन में विद्यमान रहता है। कई लोगों का मानना ​​है कि दुर्गा चालीसा का नियमित पाठ शारीरिक और आध्यात्मिक दोनों तरह के नकारात्मक प्रभावों से सुरक्षा प्रदान कर सकता है और बुरी ताकतों को दूर रखने में मदद कर सकता है।

दुर्गा चालीसा पढ़ने से क्या फायदा होता है?
दुर्गा चालीसा का नियमित पाठ करने से जातक के आत्मविश्वास में वृद्धि होती है और उसके सभी कार्य सफल होते हैं। दुर्गा चालीसा का पाठ करने से जीवन में बुरी शक्तियों से निजात मिलती है और बुरी शक्तियों से परिवार का भी बचाव होता है। दुर्गा चालीसा का पाठ करने से आर्थिक लाभ की प्राप्ति होती है और घर में लक्ष्मी जी का वास होता है।

श्री दुर्गा चालीसा को 11 बार करने से क्‍या होता है?

नवरात्रो में माँ दुर्गा की चालीसा का 11 बार पाठ सुनने से घर परिवार के सभी दुःख दूर हो जाते है |

 

दुर्गा चालीसा का पाठ कैसे करें?

दुर्गा चालीसा का पाठ करने से पहले सूर्योदय से पूर्व स्नान करके साफ़ सुथरे वस्त्र धारण करें।
अब एक लकड़ी की चौकी पर लाल रंग का कपड़ा बिछा कर, उस पर माता दुर्गा की प्रतिमा स्थापित करें।
सबसे पहले माता दुर्गा की फूल, रोली, धूप, दीप आदि से पूजा अर्चना करें।
पूजा के दौरान दुर्गा यंत्र का प्रयोग आपके लिए लाभकारी साबित हो सकता है।
अब दुर्गा चालीसा का पाठ शुरू करें।

 

दुर्गा चालीसा के कुछ महत्‍वपूर्ण प्रश्‍न

प्र.1 दुर्गा चालीसा की शक्ति क्या है?

उ. दुर्गा चालीसा आपको बुरी आत्माओं से लड़ने की ऊर्जा देता है । ऐसा माना जाता है कि प्रतिदिन दुर्गा चालीसा पढ़ने से आप और आपके परिवार को वित्तीय नुकसान नहीं होता है। यह आपको सभी प्रकार की कठिनाइयों और हानियों से बचाने में भी मदद करता है।

 

प्र.2 दुर्गा चालीसा के रचयिता कौन है?

उ.दुर्गा चालीसा में मां भगवती आदि शक्ति का गुणगान किया गया है। दुर्गा चालीसा की रचना देवीदास जी ने की थी। माना जाता है कि कलिकाल में दुर्गा चालीसा के पाठ से व्यक्ति सभी प्रकार के भवबंधनों से पार होकर मुक्त हो जाता है।

 

प्र.3 माँ दुर्गा के अस्त्र कौन-कौन से हैं?

उ. त्रिशूल, चक्र, गदा, धनुष, शंख, तलवार,कमल, तीर, अभयहस्त , परशु, रस्सी , पाश , भाला , ढाल , डमरू , खप्पर , अग्निकटोरी आदि।

 

प्र.4 दुर्गा चालीसा की उत्पत्ति कैसे हुई?

उ. दुर्गा चालीसा की रचना देवी-दास जी ने की थी, जिनके संदर्भ में ये माना जाता है कि वो माँ दुर्गा के सबसे बड़े उपासक थे और उन्होनें दुर्गा चालीसा में माँ दुर्गा के सभी रूपों के साथ ही उनकी महिमा का भी वर्णन विस्तार में किया है। कई पौराणिक कथाओं में अनुसार देवी दुर्गा को इस संसार का संचालक भी बताया गया है क्योंकि उनमें ब्रह्मा, विष्णु और महेश तीनों के गुण विद्यमान हैं।

 

प्र.5 दुर्गा चालीसा कब पढ़ना चाहिए?

उ. दुर्गा चालीसा नवरात्र में अवश्‍य पढ़नी चाहिए, इससे माता रानी जल्‍दी प्रसन्‍न होती है।

 

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