मन के मंदिर में कृष्ण पूजन – कृष्ण लीला कहानी
Krishna Leela Kahani
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मन के मंदिर में कृष्ण पूजन
भक्ति-रसामृत-सिंधु में एक कहानी है। वहाँ वर्णित है कि एक ब्राह्मण- वह एक महान भक्त था।
वह मंदिर की पूजा में बहुत शानदार सेवा पेश करना चाहता था। लेकिन उसके पास धन नहीं था ।
लेकिन एक दिन की बात है वह एक भागवत पाठ में बैठा हुआ था और उसने सुना कि कृष्ण मन के भीतर भी पूजे जा सकते हैं।
तो उसने इस अवसर का लाभ उठाया क्योंकि वह एक लंबे समय से सोच रहा था कि कैसे बहुत शान से कृष्ण की पूजा करूं, लेकिन उसके धन पैसे नहीं था।
तो वह, जब वह यह समझ गया, कि मन के भीतर कृष्ण की पूजा कर सकते हैं,
तो गोदावरी नदी में स्नान करने के बाद, वह एक पेड़ के नीचे बैठा हुआ था
और अपने मन के भीतर वह बहुत गहनों के साथ लदे खूबसूरत सिंहासन का निर्माण कर रहा था।
सिंहासन पर भगवान के अर्च विग्रह को रखते हुए, वह अर्च विग्रह का गंगा, यमुना, गोदावरी, नर्मदा, कावेरी के जल के साथ अभिषेक कर रहा था।
फिर बहुत अच्छी तरह से फूल, माला के साथ अर्च विग्रह का श्रृंगार और पूजा कर रहा था।
फिर वह बहुत अच्छी तरह से भोजन पका रहा था, वह परमान्ना, मीठे चावल पका रहा था ।
तो वह परखना चाहता था, क्या वह बहुत गर्म था। क्योंकि परमान्ना ठंडा लिया जाता है ।
परमान्ना बहुत गर्म नहीं लिया जाता है। तो उसने परमान्ना में अपनी उंगली डाली और उसकी उंगली जल गई।
तब उसका ध्यान टूटा क्योंकि वहाँ कुछ भी नहीं था। केवल अपने मन के भीतर वह सब कुछ कर रहा था।
तो … लेकिन उसने अपनी उंगली जली हुइ देखी। तो वह चकित रह गया।इस तरह,
वैकुन्ठ से नारायण, मुस्कुरा रहे थे। देवी लक्ष्मीजी ने पूछा, “आप क्यों मुस्कुरा रहे हैं ?”
“मेरा एक भक्त इस तरह पूजा करता है । तो मेरे दूतों को तुरंत भेजो उसे वैकुन्ठ लाने के लिए।”
तो भक्ति-योग इतना अच्छा है कि भले ही आपके पास भगवान की भव्य पूजा के लिए साधन न हो,
आप मन के भीतर यह कर सकते हो। यह भी संभव है।
हरे कृष्ण
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