Kalashtami Vrat Puja Vidhi – कालाष्टमी व्रत, पूजा विधि, मुहूर्त, सामग्री, कथा, भोग, मंत्र और सम्पूर्ण जानकारी
Kalashtami 2025
Kalashtami Puja Vidhi Hindi
कालाष्टमी पूजा के बारे में
Kalashtami Vrat Puja Vidhi – कालाष्टमी हिन्दुओं के मुख्य त्यौहारों में से एक है। कालाष्टमी प्रत्येक महीने के अष्टमी तिथि को पड़ता है इसलिए त्यौहार एक साल में कुल 12 बार होते है अगर किसी साल में अधिक मास पड़ जाता है तो ऐसी स्थिति में एक साल में 13 बार मनाया जाता है। जो भी व्यक्ति कालभैरव के भक्त होते है वे साल की सभी कालाष्टमी के दिन उनकी पूजा और उनके लिए उपवास करते हैं। माघ माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि कालाष्टमी भगवान शिव के ही एक रौद्र रूप भगवान भैरव को समर्पित है। इस पूजा में काल भैरव को पूजे जाने के वजह से इसे काल भैरव अष्टमी अथवा भैरव अष्टमी भी कहा जाता है। कालाष्टमी को काल भैरवाष्टमी भी कहते हैं। वैसे तो भारत में काल भैरव के अनेक मंदिर हैं लेकिन सबसे प्रसिद्ध मंदिर काशी में स्थित है और इसके बाद दूसरा कालभैरव का मंदिर उज्जैन नगर के क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित है। काशी में काल भैरव को कोतवाल कहा जाता है। यहाँ ऐसा कहा जाता है कालभैरव के दर्शन के बिना बाबा विश्वनाथ की पूजा अधूरी मानी जाती है।
कालाष्टमी व्रत के लाभ
कालाष्टमी व्रत का अपना महत्व है जो कोई व्यक्ति कालाष्टमी व्रत को सच्चे मन से करता है। उसके जीवन में सुख-शांति आती है और मृत्यु के बाद उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। कालाष्टमी का व्रत यदि पूरे विधि-विधान से की जाए तो इस व्रत का फल विशेष फलदायी होता है। उस व्यक्ति के घर में सुख-शांति और समृद्धि का वास होता है।
इस व्रत को खासकर तांत्रिक और साधक लोग भगवान काल भैरव की साधना करते हैं, क्योंकि यह दिन तंत्र साधना के लिए बहुत ही अच्छा माना जाता है। तंत्र-मंत्र सीखने वाले साधक कालाष्टमी की रात में ही विशेष सिद्धि प्राप्ति की आराधना करते हैं। कहा जाता है की भगवान काल भैरव की पूजा अर्चना करने से शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है और जीवन के हर क्षेत्र में सफलता मिलती है।
इस दिन भगवान भैरव की पूजा करने से आपको कभी भय दोष नहीं लगेगा, अगर आपको कोई रोग परेशान कर रहा है तो आपको रोग से मुक्ति पाने के लिए कुत्ते को रोटी खिलाएं, क्योकि भगवान भैरव का सवारी कुत्ता है। इस दिन कुत्ते को रोटी खिलाने से भगवान भैरव बेहद प्रसन्न रहते है। आपकी सारी मनोकामना पूर्ण होती है।
कालाष्टमी व्रत का कथा
कालभैरव अष्टमी पर ही भगवान कालभैरव पृथ्वी पर अवतरित हुए थे। पौराणिक कथा में यह बताया गया है की जब ब्रह्मा, विष्णु, महेश में बहस छिड गई थी की सबसे पूजनीय कौन है? तब उसके निवारण के लिए भगवान शिव भगवान विष्णु को बुलाया।
तब इन दोनों में कहासुनी हो गई। इसके बाद बहस को लेकर भगवान शिव को बहुत ज्यादा क्रोध आया और शिव भगवान ने रौद्र रूप धारण कर ब्रह्मा जी के पांचव सिर में से एक सिर को धड़ से अलग कर दिया।
जिसके बाद उन पर ब्रह्मा हत्या का पाप लग गया। इसलिए भगवान शिव जी के रौद्र रूप को ही काल भैरव कहा जाता है। लेकिन ब्रह्मा हत्या का पाप लगने के कारण काल भैरव को काशी की धरती पर जाना पड़ा।
Kalashtami February 2025 Muhurt
फरवरी में अष्टमी तिथि:- कृष्ण पक्ष अष्टमी शुक्रवार, 21 फरवरी 2025
20 फरवरी 2025 प्रातः 09:58 बजे – 21 फरवरी 2025 प्रातः 11:58 बजे
कालाष्टमी पूजा सामग्री:-
- भगवान शिव जी की मूर्ति
- धूप
- दीप
- फूल (काले या नीले रंग के)
- अक्षत
- रोली
- चंदन
- नैवेद्य (भोग)
- कपूर
- पंचमृत से स्नान के लिए जल
- पूजा कलश
- कलश स्थापना सामग्री
- कुश घास, दूर्वा
- बेलपत्र
- दूध
- ऋतु फल
- चंदन
- पान
- सुपारी
- लौंग
- इलायची
- काला कपड़ा
- सरसों का तेल
- मिट्टी का दीपक
- काल भैरव कथा की पुस्तक
कालाष्टमी भोग
कालाष्टमी पर काल भैरव का प्रिय भोग
बाबा भैरव के प्रिय भोग इमरती, जलेबी, पान, नारियल अर्पित करें। यदि हो सके तो उड़द की दाल से बने दही भल्ले, पकोड़े आदि बनाकर भैरव बाबा को भोग लगाकर किसी गरीब को खिलाना चाहिए। काल भैरव मंदिर में मदिरा का भी भोग लगाया जाता है। माना जाता है कि शराब को भोग के रूप में चढ़ाने पर सारी समस्याओं से निजात मिलता है। मदिरा को संकल्प और शक्ति का प्रतीक मानकर भी इसे भोग के रूप में चढ़ाया जाता है।
कालाष्टमी पूजा विधि
कालाष्टमी पर काल भैरव की पूजा विधि
- कालाष्टमी व्रत के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- सूर्यदेव को जल चढ़ाए।
- इसके बाद अपने घर के मंदिर की साफ- सफाई करें और भगवान शिव जी की मूर्ति को आसन पर स्थापित करें।
- पूजा की शुरुआत में कलश स्थापित करें।
- इसके लिए एक लोटा या कलश को सजाकर उसमें गंगाजल और फूल भरकर उसके ऊपर कलश के ढक्कन को रखें।
- इसके ऊपर एक स्वस्तिक बनाएं।
- अब उन्हें फूल, बेलपत्र और फल अर्पित करें।
- सरसों के तेल का दीपक जलाऐ।
- फल भोग लगाएं
- इसके बाद दीपक जलाकर आरती करें और काल भैरव चालीसा का पाठ करें।
- फिर ’ॐ काल भैरवाय नमः ‘मंत्र का जाप करें।
- इसके बाद अपनी मनोकामना पूर्ण हेतु कामना करें।
नोट:- पूजा करते समय पूजा करने वाले का मुख पूर्व दिशा की ओर हो। काल भैरव की मूर्ति घर में नहीं रखी जाती है। इसलिए कालाष्टमी व्रत के दिन घर में भगवान शिव जी और मंदिर में काल भैरव की पूजा करते है।
कालाष्टमी पूजा में ध्यान रखने योग्य बातें
कालाष्टमी में काल भैरव की पूजा में कुछ बातों का ध्यान रखें
काल भैरव की पूजा में खासकर काला तिल, उड़द और सरसों तेल काल भैरव को जरुर चढ़ाऐ। इस दिन काल भैरव कथा का पाठ अवश्य करें और ’ॐ काल भैरवाय नमः ‘मंत्र का जाप करें। भगवान भैरव का वाहन काला कुत्ता को माना जाता है, इसलिए इस दिन काला कुत्ता को रोटी, दूध, दही और मिठाई जरुर खिलाएं। इस दिन सरसों के तेल का दीपक जलाना चाहिए।
कालाष्टमी पूजन मंत्र
काल भैरव मंत्र
ॐ ह्रीं बटुकाय आपदुद्धारणाय कुरू कुरू बटुकाय ह्रीं ।
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रों ह्रीं ह्रों क्षं क्षेत्रपालाय कालभैरवाय नमः । ।
ॐ कालभैरवाय नमः
काल भैरव चालीसा
दोहा
श्री गणपति गुरु गौरी पद प्रेम सहित धरि माथ।
चालीसा वंदन करो श्री शिव भैरवनाथ॥
श्री भैरव संकट हरण मंगल करण कृपाल।
श्याम वरण विकराल वपु लोचन लाल विशाल॥
चालीसा
जय जय श्री काली के लाला। जयति जयति काशी-कुतवाला॥
जयति बटुक-भैरव भय हारी। जयति काल-भैरव बलकारी॥
जयति नाथ-भैरव विख्याता। जयति सर्व-भैरव सुखदाता॥
भैरव रूप कियो शिव धारण। भव के भार उतारण कारण॥
भैरव रव सुनि हवै भय दूरी। बटुक नाथ हो काल गंभीरा। श्वेत रक्त अरु श्याम शरीरा॥
करत नीनहूं रूप प्रकाशा। भरत सुभक्तन कहं शुभ आशा॥
रत्न जड़ित कंचन सिंहासन। व्याघ्र चर्म शुचि नर्म सुआनन॥
तुमहि जाइ काशिहिं जन ध्यावहिं। विश्वनाथ कहं दर्शन पावहिं॥
जय प्रभु संहारक सुनन्द जय। जय उन्नत हर उमा नन्द जय॥
भीम त्रिलोचन स्वान साथ जय। वैजनाथ श्री जगतनाथ जय॥
महा भीम भीषण शरीर जय। रुद्र त्रयम्बक धीर वीर जय॥
अश्वनाथ जय प्रेतनाथ जय। स्वानारुढ़ सयचंद्र नाथ जय॥
निमिष दिगंबर चक्रनाथ जय। गहत अनाथन नाथ हाथ जय॥
त्रेशलेश भूतेश चंद्र जय। क्रोध वत्स अमरेश नन्द जय॥
श्री वामन नकुलेश चण्ड जय। कृत्याऊ कीरति प्रचण्ड जय॥
रुद्र बटुक क्रोधेश कालधर। चक्र तुण्ड दश पाणिव्याल धर॥
करि मद पान शम्भु गुणगावत। चौंसठ योगिन संग नचावत॥
करत कृपा जन पर बहु ढंगा। काशी कोतवाल अड़बंगा॥
देयं काल भैरव जब सोटा। नसै पाप मोटा से मोटा॥
जनकर निर्मल होय शरीरा। मिटै सकल संकट भव पीरा॥
श्री भैरव भूतों के राजा। बाधा हरत करत शुभ काजा॥
ऐलादी के दुख निवारयो। सदा कृपाकरि काज सम्हारयो॥
सुन्दर दास सहित अनुरागा। श्री दुर्वासा निकट प्रयागा॥
श्री भैरव जी की जय लेख्यो। सकल कामना पूरण देख्यो॥
दोहा
जय जय जय भैरव बटुक स्वामी संकट टार।
कृपा दास पर कीजिए शंकर के अवतार॥
काल भैरव आरती
॥ श्री काल भैरव आरती ॥
जय भैरव देवा, प्रभु जय भैरव देवा ।
जय काली और गौर देवी कृत सेवा ॥
॥ जय भैरव देवा…॥
तुम्ही पाप उद्धारक दुःख सिन्धु तारक ।
भक्तो के सुख कारक भीषण वपु धारक ॥
॥ जय भैरव देवा…॥
वाहन श्वान विराजत कर त्रिशूल धारी ।
महिमा अमित तुम्हारी जय जय भयहारी ॥
॥ जय भैरव देवा…॥
तुम बिन देवा सेवा सफल नहीं होवे ।
चौमुख दीपक दर्शन दुःख खोवे ॥
॥ जय भैरव देवा…॥
तेल चटकी दधि मिश्रित भाषावाली तेरी ।
कृपा कीजिये भैरव, करिए नहीं देरी ॥
॥ जय भैरव देवा…॥
पाँव घुँघरू बाजत अरु डमरू दम्कावत ।
बटुकनाथ बन बालक जल मन हरषावत ॥
॥ जय भैरव देवा…॥
बटुकनाथ जी की आरती जो कोई नर गावे ।
कहे धरनी धर नर मनवांछित फल पावे ॥
॥ जय भैरव देवा…॥
कालाष्टमी व्रत कैसे किया जाता है?
कालाष्टमी व्रत अष्टमी तिथि को दिन भर का उपवास रखर अगली सुबह घर पर एक बार फिर कालभैरव पूजा के बाद समाप्त होता है। जो कोई भी इस व्रत को करता है व्रत के दौरान सुबह से शाम तक कुछ भी नहीं खाना चाहिए। इस दिन की रात को लोग पूरी रात जागरण करते हैं।अगले दिन सुबह अन्न ग्रहण कर व्रत का पारण करें।
कालाष्टमी 2025 कब है?
माघ महीने में कृष्ण पक्ष को आने वाली कालाष्टमी सबसे अधिक प्रसिद्ध है जिसे कालभैरव जयंती के नाम से जाना जाता है। माघ महीने में कृष्ण पक्ष के अष्टमी तिथि को ही भगवान शिव के काल भैरव स्वरुप की उत्पत्ति हुआ था। अबकी बार मंगलवार 21 जनवरी 2025 को पड़ रहा है। ऐसा कहा जाता है की अगर कालाष्टमी रविवार या मंगलवार को पड़ती है, तो यह दिन बहुत अच्छा माना जाता है। ये दिन कल भैरव को समर्पित हैं। जो भी व्यक्ति काल भैरव के भक्त है इस दिन वे उपासना रखते है और उनकी पूजा-अर्चना करते है। इसके अलावा 2025 में कालाष्टमी तिथि कब पड़ रहा है उसके बारे में नीचे दिया गया है:-
कालाष्टमी तिथि की सूची 2025
जनवरी में अष्टमी तिथि:- कृष्ण पक्ष अष्टमी बुधवार, 21जनवरी 2025
21 जनवरी 2025 दोपहर 12:40 बजे – 22 जनवरी 2025 दोपहर 03:18 बजे
फरवरी में अष्टमी तिथि:- कृष्ण पक्ष अष्टमी शुक्रवार, 21 फरवरी 2025
20 फरवरी 2025 प्रातः 09:58 बजे – 21 फरवरी 2025 प्रातः 11:58 बजे
मार्च में अष्टमी तिथि:- कृष्ण पक्ष अष्टमी शनिवार, 22 मार्च 2025
22 मार्च 2025 प्रातः 04:24 बजे – 23 मार्च 2025 प्रातः 05:23 बजे
अप्रैल में अष्टमी तिथि:- कृष्ण पक्ष अष्टमी सोमवार, 21 अप्रैल 2025
20 अप्रैल 2025 शाम 07:01 बजे – 21 अप्रैल 2025 शाम 06:59 बजे
मई में अष्टमी तिथि:- कृष्ण पक्ष अष्टमी मंगलवार, 20 मई 2025
20 मई 2025 प्रातः 05:52 बजे – 21 मई 2025 प्रातः 04:55 बजे
जून में अष्टमी तिथि:- कृष्ण पक्ष अष्टमी गुरुवार, 19 जून 2025
18 जून 2025 दोपहर 01:35 बजे – 19 जून 2025 सुबह 11:56 बजे
जुलाई में अष्टमी तिथि:- कृष्ण पक्ष अष्टमी शुक्रवार, 18 जुलाई 2025
17 जुलाई 2025 शाम 07:09 बजे – 18 जुलाई 2025 शाम 05:02 बजे बजे
अगस्त में अष्टमी तिथि:- कृष्ण पक्ष अष्टमी (कृष्ण जन्माष्टमी) शनिवार, 16 अगस्त 2025
15 अगस्त 2025 रात्रि 11:50 बजे – 16 अगस्त 2025 रात्रि 09:35 बजे
सितंबर में अष्टमी तिथि:- कृष्ण पक्ष अष्टमी रविवार, 14 सितम्बर 2025
14 सितंबर 2025 प्रातः 05:04 बजे – 15 सितंबर 2025 प्रातः 03:06 बजे
अक्टूबर में अष्टमी तिथि:- कृष्ण पक्ष अष्टमी (अहोई अष्टमी) मंगलवार, 14 अक्टूबर 2025
13 अक्टूबर 2025 दोपहर 12:24 बजे – 14 अक्टूबर 2025 सुबह 11:10 बजे
नवंबर में अष्टमी तिथि:- कृष्ण पक्ष अष्टमी बुधवार, 12 नवंबर 2025
11 नवंबर 2025 रात 11:09 बजे – 12 नवंबर 2025 रात 10:58 बजे
दिसंबर में अष्टमी तिथि:- कृष्ण पक्ष अष्टमी शुक्रवार, 12 दिसंबर 2025
11 दिसंबर 2025 दोपहर 01:57 बजे – 12 दिसंबर 2025 बजे दोपहर 02:57 बजे
Kalashtami Vrat Puja Vidhi के कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न
प्र.1 कालाष्टमी व्रत की पूजा कैसे करते हैं?
उ. कालाष्टमी व्रत की पूजा विधि ऊपर बताई गई है।
प्र.2 कालाष्टमी व्रत में क्या खाना चाहिए?
उ. कालाष्टमी व्रत में सात्विक भोजन में हलवा, खीर, गुलगुले (मीठे पुए) जलेबी, फल खा सकते है।
प्र.3 कालाष्टमी का व्रत कैसे रखें?
उ. कालाष्टमी के व्रत में सुबह से लेकर शाम तक उपवास रखा जाता है।
प्र.4 कालाष्टमी के व्रत के दिन क्या नहीं खाना चाहिए?
उ. कालाष्टमी के व्रत में लहसुन और प्याज के अलावा अन्य सब्जियों को भी नहीं खा सकते है।
प्र.5 काल भैरव बाबा को प्रसाद में क्या चढ़ाना चाहिए?
उ. काल भैरव बाबा को प्रसाद में इमरती, जलेबी, पान व नारियल चढ़ाना चाहिए क्योंकि यह इनका प्रिय भोग है।
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