Somnath Jyotirling Story – सोमनाथ के ज्योतिर्लिंग की कथा और महत्त्व
Somnath Jyotirlinga Katha
Somnath Temple Story In Hindi
शिवपुराण के अनुसार
Somnath Jyotirling Story – प्रथम ज्योतिर्लिंग सोमनाथ के प्रकट होने एवं उसकी महिमा की कथा
सूतजी ने कपिल नगरी के कालेश्वर, रामेश्वर आदि की महिमा बताते हुए समुद्र के तट पर गोकर्ण क्षेत्र के शिव लिंगों की महिमा का वर्णन किया। फिर उन्होंने महाबल नामक शिव लिंग का अद्भुत माहात्म्य बताकर तथा अन्य अनेक लिंगों के विचित्र माहात्म्य का वर्णन करके ऋषियों के पूछने पर ज्योतिर्लिंगों का वर्णन प्रारम्भ किया।
सूतजी बोले- ब्राह्मणो ! मैंने सद्गुरु से जो कुछ सुना है, वह ज्योतिर्लिङ्गों का माहात्म्य तथा उनके प्राकट्यका प्रसङ्ग अपनी बुद्धिके अनुसार संक्षेप से ही सुनाऊँगा।
तुम सब लोग सुनो। मुने ! ज्योतिर्लिङ्गों में सबसे पहले सोमनाथ का नाम आता है; अतः पहले उन्हींके माहात्म्य को सावधान होकर सुनो। मुनीश्वरो !
Somnath Mandir Katha
प्रजापति दक्ष ने अपनी अश्विनी आदि सत्ताईस कन्याओं का विवाह चन्द्रमा के साथ किया था। चन्द्रमा को स्वामी के रूप में पाकर वे दक्ष कन्याएँ विशेष शोभा पाने लगीं तथा चन्द्रमा भी उन्हें पत्नी के रूप में पाकर निरन्तर सुशोभित होने लगे।
उन सब पत्नियों में भी जो रोहिणी नाम की पत्नी थी, एकमात्र वही चन्द्रमा को जितनी प्रिय थी, उतनी दूसरी कोई पत्नी कदापि प्रिय नहीं हुई। इससे दूसरी स्त्रियोंको बड़ा दुःख हुआ। वे सब अपने पिता की शरण में गई।
वहाँ जाकर उन्होंने जो भी दुःख था, उसे पिता को निवेदन किया। द्विजो ! वह सब सुनकर दक्ष भी दुःखी हो गये और चन्द्रमाके पास आकर शान्तिपूर्वक बोले। दक्षने कहा- कलानिधे ! तुम निर्मल कुलमें उत्पन्न हुए हो। तुम्हारे आश्रयमें रहने वाली जितनी स्त्रियाँ हैं, उन सबके प्रति तुम्हारे मन में न्यूनाधिकभाव क्यों है ? तुम किसी को अधिक और किसीको कम प्यार क्यों करते हो ? अब तक जो किया, सो किया, अब आगे फिर कभी ऐसा विषमता-पूर्ण बर्ताव तुम्हें नहीं करना चाहिये; क्योंकि उसे नरक देने वाला बताया गया है।
सूतजी कहते हैं- महर्षियो ! अपने दामाद चन्द्रमा से स्वयं ऐसी प्रार्थना करके प्रजापति दक्ष घर को चले गये। उन्हें पूर्ण निश्चय हो गया था कि अब फिर आगे ऐसा नहीं होगा। पर चन्द्रमा ने प्रबल भावी से विवश होकर उनकी बात नहीं मानी। वे रोहिणी में इतने आसक्त हो गये थे कि दूसरी किसी पत्नी का कभी आदर नहीं करते थे।
इस बात को सुनकर दक्ष दुःखी हो फिर स्वयं आकर चन्द्रमा को उत्तम नीति से समझाने तथा न्यायोचित बर्ताव के लिये प्रार्थना करने लगे। दक्ष बोले- चन्द्रमा ! सुनो, मैं पहले अनेक बार तुमसे प्रार्थना कर चुका हूँ। फिर भी तुमने मेरी बात नहीं मानी। इसलिये आज शाप देता हूँ कि तुम्हें क्षय का रोग हो जाय।
सूतजी कहते हैं- दक्ष के इतना कहते ही क्षणभर में चन्द्रमा क्षयरोग से ग्रस्त हो गये। उनके क्षीण होते ही उस समय सब ओर महान् हाहाकार मच गया। सब देवता और ऋषि कहने लगे कि ‘हाय ! हाय ! अब क्या करना चाहिये, चन्द्रमा कैसे ठीक होंगे ?
हे मुने ! इस प्रकार दुःखमें पड़कर वे सब लोग विह्वल हो गये। चन्द्रमा ने इन्द्र आदि सब देवताओं तथा ऋषियों को अपनी अवस्था सूचित की। तब इन्द्र आदि देवता तथा वसिष्ठ आदि ऋषि ब्रह्माजी की शरण में गये। उनकी बात सुनकर ब्रह्माजी ने कहा-देवताओ ! जो हुआ, सो हुआ। अब वह निश्चय ही पलट नहीं सकता। अतः उसके निवारण के लिये मैं तुम्हें एक उत्तम उपाय बताता हूँ। आदरपूर्वक सुनो।
चन्द्रमा देवताओं के साथ प्रभास नामक शुभ क्षेत्र में जायँ और वहाँ मृत्युञ्जयमन्त्र का विधिपूर्वक अनुष्ठान करते हुए भगवान् शिव की आराधना करें। अपने सामने शिवलिङ्गकी स्थापना करके वहाँ चन्द्रदेव नित्य तपस्या करें। इससे प्रसन्न होकर शिव उन्हें क्षयरहित कर देंगे। तब देवताओं और ऋषियों के आदेश पर, ब्रह्मा की आज्ञा के अनुसार, चंद्रमा ने वहां छह महीने तक लगातार तपस्या की और मृत्युंजय मंत्र के साथ भगवान वृषभध्वज की पूजा की।
चंद्रमा दस करोड़ मंत्रों का जप करते हुए और मृत्युंजय का ध्यान करते हुए स्थिर रूप से वहीं खड़े रहे। उन्हें तपस्या करते हुए देखकर, भगवान शिव, जो अपने भक्तों पर दया करते हैं, उनके सामने प्रकट हुए और अपने भक्त चंद्रमास से बात की। शंकरजीने कहा- चन्द्रदेव ! तुम्हारा कल्याण हो; तुम्हारे मनमें जो अभीष्ट हो, वह वर माँगो ! मैं प्रसन्न हूँ। तुम्हें सम्पूर्ण उत्तम वर प्रदान करूँगा।
चन्द्रमा बोले- देवेश्वर ! यदि आप प्रसन्न हैं तो मेरे लिये क्या असाध्य हो सकता है; तथापि प्रभो ! शंकर ! आप मेरे शरीरके इस क्षयरोग का निवारण कीजिये । मुझसे जो अपराध बन गया हो, उसे क्षमा कीजिये। शिवजीने कहा- चन्द्रदेव ! एक पक्ष में प्रतिदिन तुम्हारी कला क्षीण हो और दूसरे पक्षमें फिर वह निरन्तर बढ़ती रहे। तब चंद्रमा ने भक्तिपूर्वक भगवान शिव की स्तुति की।
यद्यपि वे पहले निराकार थे, फिर भी वे पुनः भगवान शिव बन गये। देवताओं को प्रसन्न करने तथा उस क्षेत्र का माहात्म्य बढ़ाने तथा चंद्रमा की कीर्ति बढ़ाने के लिए भगवान शिव उनके नाम पर वहां सोमेश्वर कहलाये और तीनों लोकों में सोमनाथ के नाम से प्रसिद्ध हुए। ब्राह्मणों! सोमनाथ की पूजा करने से वे उपासक के तपेदिक और कुष्ठ रोग जैसे रोगों को नष्ट कर देते हैं।
ये चंद्रमा धन्य हैं, धन्य हैं, जिनके नाम से तीनों लोकों के स्वामी भगवान शिव प्रभास क्षेत्र में उपस्थित होकर पृथ्वी को पवित्र करते हैं।
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का महत्व
संपूर्ण देवताओं ने भी सोमकुंड की स्थापना की है, जिसमें शिव और ब्रह्मा भी हैं सदा निवास माना जाता है। चन्द्रकुण्ड इस भूतल पर पापनाशन तीर्थ के रूप में प्रसिद्ध पापों से मुक्त हो जाता है। क्षय आदि जो है। जो मनुष्य उसमें स्नान करता है, वह सब असाध्य रोग होते हैं, वे सब उस कुण्डमें छः मास तक स्नान करने मात्र से नष्ट हो जाते हैं।
मनुष्य जिस फलके उद्देश्य से इस उत्तम तीर्थ का सेवन करता है, उस फल को सर्वथा प्राप्त कर लेता है – इसमें संशय नहीं है। कार्य सँभालने लगे। इस प्रकार मैंने चन्द्रमा नीरोग होकर अपना पुराना सोमनाथ की उत्पत्तिका सारा प्रसङ्ग सुना दिया । मुनीश्वरो ! इस तरह सोमेश्वर लिङ्ग का प्रादुर्भाव हुआ है। जो मनुष्य सोमनाथ के प्रादुर्भाव की इस कथा को सुनता अथवा दूसरों को सुनाता है, वह सम्पूर्ण अभीष्ट को पाता और सब पापों से मुक्त हो जाता है।
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