Vaibhav Laxmi Vrat Puja Vidhi – श्री वैभव लक्ष्मी व्रत पूजा विधि, कथा, सामग्री, मंत्र, भोग, नियम और उद्यापन की पूर्ण जानकारी
Vaibhav Laxmi Vrat in Hindi
Vaibhav Laxmi Puja in Hindi
यह व्रत शीघ्र फलदायी है। किन्तु फल न दे तो तीन माह के बाद फिर से यह व्रत शुरु करना चाहिये और जब तक मनवांछित फल न मिले, तब तक यह व्रत तीन-तीन महीने पर करते रहना चाहिये। तो कभी भी इस का फल अवश्य मिलता ही है।
वैभवलक्ष्मी व्रत करने के नियम
- यह व्रत सौभाग्यशाली स्त्रियां करें तो उनको अति उत्तम फल मिलता है। पर घर में यदि सौभाग्यशाली स्त्रियां न हों तो कोई भी स्त्री एवं कुमारिका भी यह व्रत कर सकती है।
- स्त्री के बदले पुरूष भी यह व्रत करें तो उसे भी उत्तम फल अवश्य मिलता है।
- यह व्रत पूरी श्रद्धा और पवित्र भाव से करना चाहिये। खिन्न होकर या बिना भाव से यह व्रत उहीं करना चाहिये।
- यह व्रत शुक्रवार को किया जाता है। व्रत शुरू करते वक्त 11 या 21 शुक्रवार की मन्नत रखनी पड़ती है। और पुस्तक में लिखी शास्त्रीय विधि अनुसार ही व्रत करना चाहिये।
- लेकिन मलमास या खरमास में व्रत की शुरुआत या उद्यापन ना करें.
- मन्नत के शुक्रवार पूरे होने पर विधिपूर्वक और शास्त्रीय रीति अनुसार उद्यापन विधि करनी चाहिये। यह विधि सरल है। किन्तु शास्त्रीय विधि अनुसार व्रत न करने पर व्रत का जरा भी फल नहीं मिलता है।
- एक बार व्रत पूरा करने के पश्चात फिर मन्नत कर सकते है और फिर से व्रत कर सकते हैं।
- माताा लक्ष्मी देवी के अनेक स्वरूप हैं। उनमें उनका ‘धनलक्ष्मी स्वरूप’ ही ‘वैभवलक्ष्मी’ है और माता लक्ष्मी को श्रीयंत्र अति प्रिय है। व्रत करते वक्त पुस्तक में दिये हुए मां लक्ष्मीजी के हर स्वरूप को और श्रीरयंत्र को प्रणाम करना चाहिये। तभी व्रत का फल मिलता है। अगर हम इतनी भी मेहनत नहीं कर सकते हैं तो लक्ष्मी देवी भी हमारे लिये कुछ करने को तैयार नहीें होगी। और हम पर मॉं की कृपा नहीं होगी।
- व्रत के दिन सुबह से ही ‘जय मां लक्ष्मी’‘जय मां लक्ष्मी’ का रटन मन ही मन करना चाहिये और मां का पूरे भाव से स्मरण करना चाहिये।
- शुक्रवार के दिन यदि आप प्रवास या यात्रा पर गये हो तो वह शुक्रवार छोड़कर उनके बाद के शुक्रवार को व्रत करना चाहिये। पर व्रत अपने ही घर में करना चाहिये। सब मिलाकर जितने शुक्रवार की मन्नत ली हो, उतने शुक्रवार पूरे करने चाहिये।
- घर में सोना न हो तो चांदी की चीज पूजा में रखनी चाहिये। अगर वह भी हो तो रोकड़ रूपया रखना चाहिये।
- व्रत होने पर कम से कम सात स्त्रियों को या आपकी इच्छा अनुसार जैसे 11, 21, 51, 101 स्त्रियों का वैभवलक्ष्मी व्रत की पुसतक कुमकुम का तिलक करके भेंट के रूप में देनी चाहिये। जितनी ज्यादा पुस्तक आप देंगे उतनी मां लक्ष्मी की ज्यादा कृपा होगी ओर मां लक्ष्मी जी का यह अद्भुत व्रत का ज्यादा प्रचार होगा।
- व्रत के शुक्रवार को स्त्री रजस्वला हो या सूतकी हो तो वह शुक्रवार छोड़ देना चाहिये। पर जितने शुक्रवार की मन्नत मानी हो, उतने शुक्रवार पूरे करने चाहिये।
- व्रत की विधि शुरू करते वक्त ‘लक्ष्मी स्तवन’ का एक बार पाठ करना चाहिये।
- व्रत के दिन हो सके तो उपवास करना चाहिये और शाम को व्रत की विधि करके मों का प्रसाद लेकर शुक्रवार करना चाहिये। अगर व्रतधारी का शरीर बहुत कमजोर हो तो ही दो बार भोजन ले सकते हैं। सबसे महत्व की बात यही है कि व्रतधारी मां लक्ष्मीजी पर पूरी-पूरी श्रद्धा और भावना रखें और मेरी मनोकामना मां पूरी करेगी ही ऐसा दृढ़ संकल्प करें।
मॉं वैभवलक्ष्मी आप पर प्रसन्न हों।
वैभव लक्ष्मी व्रत के फायदे
- वैभवलक्ष्मी व्रत करने से आध्यात्मिक और सकारात्मक विचारों को बढ़ावा मिलता है।
- घर से बुरी शक्तियां का प्रवेश नहीं होता।
- मन को शांत और स्थिर रखता है।
- गृह कलेश शांति के लिए इस व्रत को करना चाहिए।
- दरिद्रता और आर्थिक संकटों को दूर करने के लिए इस व्रत को करते है।
- अपनी कोई भी मनोकामना को पूरा करने के लिए भी यह व्रत किया जाता हैं।
- इस व्रत को स्त्री पुरुष दोनों कर सकते हैं।
वैभव लक्ष्मी व्रत सामग्री
- मां लक्ष्मी की प्रतिमा
- फूल चंदन
- पुष्प माला
- लाल फूल
- अक्षत
- जल
- मौली
- कुमकुम
- हल्दी
- कलश
- कपूर
- घंटी
- धूपबत्ती
- प्रसाद
- दीपक
महालक्ष्मी व्रत विधि शुरु करने से पहले की विधि
- ‘श्री यंत्र’ के सामने देख कर ‘श्रीयंत्र को प्रमाण।’ ऐसा बोलकर श्रीयंत्र को प्रणाम करें।
- बाद में लक्ष्मी जी के नीचे मुताबिक आठ स्वश्रप की छवियों को प्रणाम करें।
1. धनलक्ष्मी एवं वैभवलक्ष्मी स्वरूप।
2. श्री गजलक्ष्मी मॉं।
3. श्री अधि लक्ष्मी मॉं।
4. विजयालक्ष्मी मॉं।
5. श्री ऐश्वर्यलक्ष्मी मॉं।
6. श्री वीरलक्ष्मी मॉं।
7. श्री धान्यलक्ष्मी माँँ।
8. श्री संतानलक्ष्मी मॉं।
9. बाद में नीचे दिया हुआ ‘लक्ष्मी स्तवन’ का पाठ करें।
गहने की पूजा करते समय बोलना है।
लक्ष्मी स्तवन
श्लोक
या रक्ताम्बुजवासिनी विलसनी चण्डांशु तेजस्विनी।
या रक्ता रुधिराम्बरा हरिसखी या श्री मनोल्हादिनी ॥
या रत्नाकरमन्थनात्प्रगंंटिता विष्णोस्वया गेहिनी।
सा माँ पातु मनोरमा भगवती लक्ष्मीश्च पद्मावती॥
लक्ष्मी स्तवन का हिन्दी में भावार्थ :
जो लाल कमल में रहती है, जो अपूर्व कांंतिवाली है, जो असह्य(असहनीय) तेजवाली है, जो पूर्ण रूप से लाल है, जिसने रक्तरूप वस्त्रा पहने है, जो भगवान विष्णु को अति प्रिय है, जो लक्ष्मी मन को आनंद देती है, जो समुद्रमंथन से प्रकट हुई है, जो विष्णु भगवान की पत्नी है, जो कमल से जन्मी है और जो अतिशय पूज्य है, वैसी हे लक्ष्मी देवी! आप मेरी रक्षा करें।
वैभव लक्ष्मी व्रत पूजा विधि
- शुक्रवार के दिन स्नानादि कर स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
- एक चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर माता लक्ष्मी की प्रतिमा रखें।
- कलश रखें और कलश पर एक कटोरी रखें।
- कटोरी में एक सोने या चांदी आभूषण या रूपये रखें।
- फिर घी का दीपक और धूप जलाएं।
- माता को श्वेत या लाल पुष्प अर्पित करते हुए व्रत का संकल्प लें।
- इसके बाद माँ लक्ष्मी को हल्दी कुमकुम और चावल का तिलक लगाएं।
- इसके उपरान्त माता वैभव लक्ष्मी को अक्षत, फल, कमलगट्टा चढ़ाएं।
- प्रसाद अर्पण करें।
- वैभवलक्ष्मी व्रत कथा पढ़े।
- माता लक्ष्मी की आरती करें।
- अब आसन पर बैठकर माँ लक्ष्मी बीज मंत्र का 108 बार जाप स्फटिक माला से करें।
- ”ऊँ श्रींह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ऊँ महालक्ष्मी नम:।।”
- महालक्ष्मी जी से प्रार्थना करें
माता लक्ष्मी की विधिपूर्वक उपासना करने से माँ अवश्य ही अपने भक्तों से प्रसन्न होती हैं।
वैभवलक्ष्मी व्रत में मांं लक्ष्मी जी को क्या भोग लगाएं?
वैभवलक्ष्मी व्रत में मांं लक्ष्मी जी को घर पर बनी कोई भी मीठी चीज का भोग लगाना चाहिए। अगर आप कुछ नहीं बना पाने में सक्षम नहीं है तो गुड़, शक्कर का भोग भी लगा सकते हैं।
वैभव लक्ष्मी व्रत की कथा
एक बड़ा शहर था। इस शहर में लाखों लोग रहते थे। पहले के जमाने के लोग साथ-साथ रहते थे और एक दूसरे के काम आते थे। पर नये जमाने के लोगों का स्वरूप ही अलग सा है। सब अपने अपने काम में रत रहते हैं। किसी को किसी की परवाह नहीं। घर के सदस्यों को भी एक-दूसरे की परवाह नहीं होती। भजन-कीर्तन, भक्ति-भाव, दया-माया, परोपकार जैसे संस्कार कम हो गये हैं। शहर में बुराइयाँ बढ़ गई थी। शराब, जुआ, रेस, व्यभिचार, चोरी-डकैती बगैरह बहुत से गुनाह शहर में होते थे।
कहावत है कि ‘हजारों निराशा में एक अमर आशा छिपी हुई है।’ इसी तरह सारी बुराइयों के बावजूद शहर में कुछ अच्छे लोग भी रहते थे।
ऐसे अच्छे लोगों में शीला और उनके पति की गृहस्थी मानी जाती थी। शीला धार्मिक प्रकृति की और संतोषी थी। उनका पति भी विवेकी और सुशील था।
शीला और उनका पति ईमानदारी से जीते थे। वे किसी की बुराई करते न थे और प्रभु भजन में अच्छी तरह समय व्यतीत कर रहे थे। उनकी गृहस्थी आदर्श गृहस्थी थी और शहर के लोग उनकी गृहस्थी की सराहना करते थे।
शीला की गृहस्थी इसी तरह खुशी-खुशी चल रही थी। पर कहा जाता है कि ‘कर्म की गति अकल है’, विधाता के लिखे लेख कोई नहीं समझ सकता है। इन्सान का नसीब पल भर में राजा को रंक बना देता है और रंक को राजा। शीला के पति के अगले जन्म के कर्म भोगने बाकी रह गये होंगे कि वह बुरे लोगों से दोस्ती कर बैठा। वह जल्द से जल्द ‘करोड़पति’ होने के ख्वाब देखने लगा। इसलिए वह गलत रास्ते पर चढ़ गया और ‘करोड़पति’ के बजाय ‘रोड़पति’ बन गया। याने रास्ते पर भटकते भिखारी जैसी उसकी स्थिति हो गयी थी।
शहर में शराब, जुआ, रेस, चरस-गांजा आदि बदियां फैली हुई थीं। उसमें शीला का पति भी फँस गया। दोस्तों के साथ उसे भी शराब की आदत हो गई। जल्द से जल्द पैसे वाला बनने की लालच में दोस्तों के साथ रेस जुआ भी खेलने लगा। इस तरह बचाई हुई धनराशि, पत्नी के गहने, सब कुछ रेस-जुए में गँवा दिया था।
इसी तरह एक वक्त ऐसा भी आया था कि वह सुशील पत्नि शीला के साथ मजे में रहता था और प्रभु भजन में सुख शांति से वक्त व्यतीत करता था। उसके बजाय घर में दरिद्रता और भूखमरी फैल गई। सुख से खाने के बजाय दो वक्त के भोजन के लाले पड़ गये और शीला को पति की गालियाँ खाने का वक्त आ गया था।
शीला सुशील और संस्कारी स्त्री थी। उसको पति के बर्ताव से बहुत दुख हुआ। किन्तु वह भगवान पर भरोसा करके बड़ा दिल रख कर दुख सहने लगी। कहा जाता है कि ‘सुख के पीछे दुख और दुख के पीछे सुख’ आता ही है। इसलिए दुख के बाद सुख आयेगा ही, ऐसी श्रद्धा के साथ शीला प्रभु भक्ति में लीन रहने लगी।
इस तरह शीला असहाय दुख सहते-सहते प्रभुभक्ति में वक्त बिताने लगी। अचानक एक दिन दोपहर में उनके द्वार पर किसी ने दस्तक दी।
शीला सोच में पड़ गई कि मुझ जैसे गरीब के घर इस वक्त कौन आया होगा?
फिर भी द्वार पर आये हुए अतिथि का आदर करना चाहिये, ऐसे आर्यधर्म के संस्कार वाली शीला ने खड़े होकर द्वार खोला।
देखा तो एक माँ जी खड़ी थी। वे बड़ी उम्र की लगती थीं। किन्तु उनके चेहरे पर अलौकिक तेज निखर रहा था। उनकी आँखों में से मानो अमृत बह रहा था। उनका भव्य चेहरा करुणा और प्यार से छलकता था। उनको देखते ही शीला के मन में अपार शांति छा गई। वैसे शीला इस माँ जी को पहचानती न थी, फिर भी उनको देखकर शीला के रोम-रोम में आनन्द छा गया। शीला माँ जी को आदर के साथ घर में ले आयी। घर में बिठाने के लिए कुछ भी नहीं था। अतः शीला ने सकुचा कर एक फटी हुई चादर पर उनको बिठाया।
माँ जी ने कहा: ‘क्यों शीला! मुझे पहचाना नहीं?’
शीला ने सकुचा कर कहा: ‘माँ! आपको देखते ही बहुत खुशी हो रही है। बहुत शांति हो रही है। ऐसा लगता है कि मैं बहुत दिनों से जिसे ढूढ़ रही थी वे आप ही हैं, पर मैं आपको पहचान नहीं सकती।’
माँ जी ने हँसकर कहा : क्यों? भूल गई? हर शुक्रवार को लक्ष्मी जी के मंदिर में भजन-कीर्तन होते हैं, तब मैं भी वहाँ आती हूँ। वहाँ हर शुक्रवार को हम मिलते हैं।
पति गलत रास्ते पर चढ़ गया, तब से शीला बहुत दु:खी हो गई थी और दु:ख की मारी वह लक्ष्मीजी के मंदिर में भी नहीं जाती थी। बाहर के लोगों के साथ नजर मिलाते भी उसे शर्म लगती थी। उसने याददाश्त पर जोर दिया पर यह माँ जी याद नहीं आ रही थीं।
तभी माँ जी ने कहा, तू लक्ष्मी जी के मंदिर में कितने मधुर भजन गाती थी। अभी-अभी तू दिखाई नहीं देती थी, इसलिए मुझे हुआ कि तू क्यों नहीं आती है? कहीं बीमार तो नहीं हो गई है न? ऐसा सोचकर मैं तुझसे मिलने चली आई हूँ।
माँ जी के अति प्रेम भरे शब्दों से शीला का हृदय पिघल गया। उसकी आँखों में आँसू आ गये। माँ जी के सामने वह बिलख-बिलख कर रोने लगी। यह देख कर माँ जी शीला के नजदीक आयीं और उसकी सिसकती पीठ पर प्यार भरा हाथ फेर कर सांत्वना देने लगीं।
माँ जी ने कहा: बेटी! सुख और दुख तो धूप छांव जैसे होते हैं। सुख के पीछे दु:ख आता है, तो दु:ख के पीछे सुख भी आता है। धैर्य रखो बेटी! और तुझे क्या परेशानी है? तेरे दुख की बात मुझे सुना। तेरा मन हलका हो जायेगा और तेरे दु:ख का कोई उपाय भी मिल जायेगा।
माँ जी की बात सुनकर शीला के मन को शांति मिली। उसने माँ जी को कहा, माँ ! मेरी गृहस्थी में भरपूर सुख और खुशियाँ थीं। मेरे पति भी सुशील थे। भगवान की कृपा से पैसे की बातबात में भी हमें संतोष था। हम शांति से गृहस्थी चलाते ईश्वर-भक्ति में अपना वक्त व्यतीत करते थे। यकायक हमारा भाग्य हमसे रूठ गया। मेरे पति की बुरी दोस्ती हो गयी। बुरी दोस्ती के वजह से शराब, जुआ, रेस, चरस-गांजा बगैरह खराब आदतों के शिकार हो गये और अपना सब-कुछ गंंवा दिया और हम रास्ते के भिखारी जैसे बन गये।
यह सुन कर माँ जी ने कहा : सुख के पीछे दु:ख और दु:ख के पीछे सुख आता हीे रहता है। ऐसा कहा जाता है कि , ‘कर्म की गति न्यारी होती है।’ हर इंसान को अपने कर्म भुगतने ही पड़ते हैं। इसलिए तू चिंता मत कर। अब तू कर्म भुगत चुकी है। अब तुम्हारे सुख के दिन अवश्य आयेंगे। तू तो माँ लक्ष्मी जी की भक्त है। माँ लक्ष्मी जी तो प्रेम और करुणा की अवतार हैं। वे अपने भक्तों पर हमेशा ममता रखती हैं। इसलिए तू धैर्य रख के ‘माँ लक्ष्मी जी का व्रत’ कर। इससे सब कुछ ठीक हो जायेगा।
‘माँ लक्ष्मी जी का व्रत’ करने की बात सुनकर शीला के चेहरे पर चमक आ गई। उसने पूछा : माँ! लक्ष्मी जी का व्रत कैसे किया जाता है, वह मुझे समझाइये। मैं यह व्रत अवश्य करूँगी।
माँ जी ने कहा: बेटी! माँ लक्ष्मी जी का व्रत बहुत सरल है। उसे ‘वरदलक्ष्मी व्रत’ या ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ कहा जाता है। यह व्रत करने वाले की सब मनोकामना पूर्ण होती है। वह सुख-सम्पत्ति और यश प्राप्त करता है। ऐसा कहकर माँ जी ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ की विधि कहने लगी।
बेटी! वैभवलक्ष्मी व्रत वैसे तो सीधा-सादा व्रत है। किन्तु कई लोग यह व्रत गलत तरीके से करते हैं। अतः उसका फल नहीं मिलता। कई लोग कहते हैं कि सोने के गहने की हल्दी-कुमकुम से पूजा करो बस व्रत हो गया। पर ऐसा नहीं है। कोई भी व्रत शास्त्रीय विधिपूर्वक करना चाहिये। तभी उसका फल मिलता है। सिर्फ सोने के गहने की पूजा करने से फल मिल जाता हो तो सभी आज लखपति बन गये होते। सच्ची बात यह है कि सोने के गहनों का विधि पूजन करना चाहिये। व्रत की उद्यापन विधि भी शास्त्रीय विधि मुताबिक करना चाहिये। तभी यह ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ फल देता है।
यह व्रत शुक्रवार को करना चाहिये। सुबह में स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहनो और सारा दिन ‘जय माँ लक्ष्मी’, ‘जय माँ लक्ष्मी’ का रटन करते रहो। किसी की चुगली नहीं करनी चाहिये। शाम को पूर्व दिशा में मुँह रख सकें, इसी तरह आसन पर बैठ जाओ।
सामने पाटा रखकर उस पर रुमाल रखो। रुमाल पर चावल का छोटा सा ढेर करो। उस ढेर पर पानी से भरा तांबे का कलश रखकर, कलश पर एक कटोरी रखो। उस कटोरी में एक सोने का गहना रखो। सोने का न हो तो चांदी का भी चलेगा। चांदी का न हो तो नकद रुपया भी चलेगा। बाद में घी का दीपक जलाकर धूपसली (अगरबत्ती) सुलगा कर रखो।
माँ लक्ष्मी जी के बहुत स्वरूप हैं और माँ लक्ष्मी जी को ‘श्री यंत्र’ अति प्रिय है। अतः ‘वैभवलक्ष्मी’ के पूजन विधि करते वक्त सर्वप्रथम ‘श्री यंत्र’ और लक्ष्मी जी के विविध स्वरूपों का सच्चे दिल से दर्शन करो। उसके बाद ‘लक्ष्मी स्तवन’ का पाठ करो। बाद में कटोरी में रखे हुए गहने या रूपये को हल्दी-कुमकुम और चावल चढ़ाकर पूजा करो और लाल रंग का फूल चढ़ाओ। शाम को कोई मीठी चीज बना कर उसका प्रसाद रखो। न हो सके तो शक्कर या गुड़ भी चल सकता है। फिर आरती करके ग्यारह बार सच्चे हृदय से ‘जय माँ लक्ष्मी’ बोलो। बाद में ग्यारह या इक्कीस शुक्रवार यह व्रत करने का दृढ़ संकल्प माँ के सामने करो और आपकी जो मनोकामना हो वह पूरी करने को माँ लक्ष्मी जी से विनती करो। फिर माँ का प्रसाद बाँट दो और थोड़ा प्रसाद अपने लिए रखो। अगर आप में शक्ति हो तो सारा दिन उपवास रखो और सिर्फ प्रसाद खाकर शुक्रवार का व्रत करो। न शक्ति हो तो एक बार शाम को प्रसाद ग्रहण करते समय खाना खा लो। अगर थोड़ी शक्ति भी न हो तो दो बार भोजन कर सकते हैं। बाद में कटोरी में रखा गहना या रूपया ले लो। कलश का पानी तुलसी की क्यारी में डाल दो और चावल पक्षियों को डाल दो। इसी तरह शास्त्रीय विधि अनुसार व्रत करने से उसका फल अवश्य मिलता है। इस व्रत के प्रभाव से सब प्रकार की विपत्ति दूर हो कर आदमी मालामाल हो जाता है। संतान न हो तो संतान प्राप्ति होती है। सौभाग्वती स्त्री का सौभाग्य अखण्ड रहता है। कुमारी लड़की को मनभावन पति मिलता है।
शीला यह सुनकर आनन्दित हो गई। फिर पूछा: माँ! आपने ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ की जो शास्त्रीय विधि बताई है, वैसे मैं अवश्य करूंगी। किन्तु इसकी उद्यापन विधि किस तरह करनी चाहिये? यह भी कृपा करके सुनाइये।
माँ जी ने कहा : ग्यारह या इक्कीस जो मन्नत मानी हो उतने शुक्रवार यह ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ पूरी श्रद्धा और भावना से करना चाहिये। व्रत के आखिरी शुक्रवार को जो शास्त्रीय विधि अनुसार उद्यापन विधि करनी चाहिये वह मैं तुझे बताती हूँ।आखिरी शुक्रवार को खीर या नैवेद्य रखो। पूजन विधि हर शुक्रवार को करते हैं वैसे ही करनी चाहिये। पूजन विधि के बाद श्रीफल फोड़ो और कम से कम सात कुंवारी या सौभाग्यशाली स्त्रियों को कुमकुम का तिलक करके ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ की एक-एक पुस्तक उपहार में देनी चाहिये और सब को खीर का प्रसाद देना चाहिये। फिर धनलक्ष्मी स्वरूप, वैभवलक्ष्मी स्वरूप, माँ लक्ष्मी जी की छवि को प्रणाम करें। माँ लक्ष्मी जी का यह स्वरूप वैभव देने वाला है। प्रणाम करके मन ही मन भावुकता से माँ की प्रार्थना करते वक्त कहें कि , ‘हे माँ धनलक्ष्मी! हे माँ वैभवलक्ष्मी! मैंने सच्चे हृदय से आपका ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ पूर्ण किया है। तो हे माँ! हमारी (जो मनोकामना की हो वह बोलो) मनोकामना पूर्ण करो। हमारा सबका कल्याण करो। जिसे संतान न हो उसे संतान देना। सौभाग्यशाली स्त्री का सौभाग्य अखण्ड रखना। कुंवारी लड़की को मनभावन पति देना। आपका यह चमत्कारी वैभवलक्ष्मी व्रत जो करे उसकी सब विपत्ति दूर करना। सब को सुखी करना। हे माँ! आपकी महिमा अपरंंपार है।
इस तरह मॉं की प्रार्थना करके मॉं लक्ष्मीजी का ‘धनलक्ष्मी स्वरूप’ को भाव से वदन करो।
माँ जी के पास से ‘वैभवलक्ष्मी व्रत ‘ की शास्त्रीय विधि सुन कर शीला भावविभोर हो उठी। उसे लगा मानो सुख का रास्ता मिल गया। उसने आँखें बंद करके मन ही मन उसी क्षण संकल्प लिया कि, ‘हे वैभवलक्ष्मी माँ! मैं भी माँ जी के कहे अनुसार श्रद्धापूर्वक शास्त्रीय विधि से ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ इक्कीस शुक्रवार तक करूंगी और व्रत की शास्त्रीय विधि अनुसार उद्यापन विधि करूँगी।
शीला ने संकल्प करके आँखें खोली तो सामने कोई न था। वह विस्मित हो गई कि माँ जी कहां गयी? यह माँ जी कोई दूसरा न था…. साक्षात् लक्ष्मी जी ही थीं। शीला लक्ष्मी जी की भक्त थी इसलिए अपने भक्त को रास्ता दिखाने के लिए माँ लक्ष्मी देवी मां जी का स्वरूप धारण करके शीला के पास आई थी।
दूसरे दिन शुक्रवार था। सवेरे स्नान करके स्वच्छ कपड़े पहन कर शीला मन ही मन श्रद्धा से और पूरे भाव से ‘जय माँ लक्ष्मी जय मॉं लक्ष्मी’ का मन ही मन रटन करने लगी। सारा दिन किसी की चुगली नहीं की। शाम हुई तब हाथ-पांव, मुंह धो कर शीला पूर्व दिशा में मुंह करके बैठी। घर में पहले तो सोने के बहुत से गहने थे पर पतिदेव ने गलत रास्ते पर चलकर सब गिरवी रख दिये। पर नाक की चुन्नी बच गई थी। नाक की चुन्नी निकाल कर, उसे धोकर शीला ने कटोरी में रख दी। सामने पाटे पर रुमाल रख कर मुठ्ठी भर चावल का ढेर किया। उस पर तांबे का कलश पानी भरकर रखा। उसके ऊपर चुन्नी वाली कटोरी रखी। फिर मां जी ने कही थी, वह शास्त्रीय विधि अनुसार वंदन, स्तवन, पूजा वगैरह किया और घर में थोड़ी शक्कर थी, वह प्रसाद में रख कर ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ किया।
यह प्रसाद पहले पति को खिलाया। प्रसाद खाते ही पति के स्वभाव में फर्क पड़ गया। उस दिन उसने शीला को मारा नहीं, सताया भी नहीं। शीला को बहुत आनन्द हुआ। उसके मन में ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ के लिए श्रद्धा बढ़ गई।
शीला ने पूर्ण श्रद्धा-भक्ति से इक्कीस शुक्रवार तक ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ किया। इक्कीसवे शुक्रवार को मां जी के कहे मुताबिक उद्यापन विधि करके सात स्त्रियों को ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ की सात पुस्तकें उपहार में दीं। फिर माता जी के ‘धनलक्ष्मी स्वरूप’ की छवि को वंदन करके भाव से मन ही मन प्रार्थना करने लगी। ‘हे माँ धनलक्ष्मी! मैंने आपका वैभवलक्ष्मी व्रत करने की मन्नत मानी थी वह व्रत आज पूर्ण किया है। हे माँ! मेरी हर विपत्ति दूर करो। हमारा सबका कल्याण करो। जिसे संतान न हो, उसे संतान देना। सौभाग्यवती स्त्री का सौभाग्य अखण्ड रखना। कुवारी लड़की को मनभावन पति देना। जो कोई आपका यह चमत्कारी वैभवलक्ष्मी व्रत करे, उसकी सब विपत्ति दूर करना। सब को सुखी करना। हे माँ! आपकी महिमा अपार है।’ ऐसा बोलकर लक्ष्मीजी के ‘धनलक्ष्मी स्वरूप’ की छवि को प्रणाम किया।
इस तरह शास्त्रीय विधिपूर्वक शीला ने श्रद्धा से व्रत किया और तुरन्त ही उसे फल मिला। उसका पति-गलत रास्ते पर चला गया था, वह अच्छा आदमी हो गया और कड़ी मेहनत करके व्यवसाय करने लगा। मां लक्ष्मीजी के ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ के प्रभाव से उसको ज्यादा मुनाफा होने लगा। उसने तुरन्त शीला के गिरवी रखे गहने छुड़ा लिये। घर में धन की बाढ़ सी आ गई। घर में पहले जैसी सुख-शांति छा गई।
‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ का प्रभाव देख कर मोहल्ले की दूसरी स्त्रियाँ भी शास्त्रीय विधिपूर्वक ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ करने लगीं।
हे माँ धनलक्ष्मी! आप जैसे शीला पर प्रसन्न हुईं, उसी तरह आपका व्रत करने वाले सब पर प्रसन्न होना। सबको सुख-शांति देना। जय धनलक्ष्मी माँ! जय वैभवलक्ष्मी माँ!
श्री महालक्ष्मी जी की स्तुति
महादेवी महालक्ष्मी नमस्ते त्वं विष्णु प्रिये।
शक्तिदायी महालक्ष्मी नमस्ते दुःख भंजनि।1।
श्रेया प्राप्ति निमित्ताय महालक्ष्मी नमाम्यहम्।
पतितो द्धारिणी देवी नमाम्यहं पुनः पुनः।2।
वेदांस्त्वां संस्तुवन्ति ही शास्त्राणि चं मृर्हुमः।
देवास्त्वां प्रणमन्तिही लक्ष्मीदेवी नमोस्तुते।3।
नमस्ते महालक्ष्मी नमस्ते भवभंजनी।
भुक्तिमुक्ति न लभ्यते महादेवी त्ययि कृपा बिना।4।
सुख सौभाग्यं ने प्राप्नोति पत्र लक्ष्मी न विधाते।
न तत्फलं समाप्नोति महालक्ष्मी नमाम्यहम।5।
देहि सौभाग्यमारोग्यं देहिमें परमं सुखम्।
नमस्ते आद्यशक्ति त्वं नमस्ते भीड़भंजनी ।6।
विधेहि देवी कल्याणं विधेहि परमां श्रियमं।
विधावन्तं यशस्वन्तं लक्ष्मवन्तं जनं कुरु ।7।
अचिन्त्य रूप-चरिते सर्वशत्रु विनाशीनी
नमस्तेतु महामाया सर्व सुख प्रदायिनी।।8।।
नमाम्यहं महालक्ष्मी नमाम्यहम सुरेश्वरी।
नमाम्यहं जगद्धात्रि नमाम्यहम परमेश्वरी।।9।।
श्री महालक्ष्मी महिमा
श्री ‘वैभवलक्ष्मी व्रत’ में आरती करने के बाद यह श्लोक का पठन करने से शीघ्र फल मिलता है।
यत्राभ्यावगदानमान चरण पक्षालनं भोजन।
सत्सेवा पितृदेववार्चन विधि: सत्यंगवां पालनम्।।
धान्या नामपि सम्रहो न कलहश्चित्ता तृरूप्रिया।
दृष्टा प्रहा हरि वसामि कमला तस्मिन गृहे निष्पफला।।
भावार्थ
जहॉं मेहमान की आव-भगत करने में आती है… उनको भोजन कराया जाता है, जहॉं सज्जनों की सेवा की जाती है, जहॉं निरंतर भाव से भगवान की पूजा और अन्य धार्मकार्य किये जाते हैं, जहॉं सत्य का पालन किया जाता है, जहॉं गलत कार्य नहीं होते, जहॉं गायों की रक्षा होती हे, जहॉं दान देने के लिये धान्य का संग्रह किया जाता है, जहॉं क्लेश नहीं होता, जहॉं पत्नी संतोषी और विनयी होती है, ऐसी जगह पर मैं सदा निश्चल रहती हूँ। इनके सिवा की जगह पर कभी कभार दृष्टि डालती हूँ।
मॉं वैभवलक्ष्मी जी की आरती
मॉं वैभवलक्ष्मी जी श्लोक
विष्णुप्रिये नमस्तुभ्यं नमस्तुभ्यं जगद्धते।
आर्त हंत्रि नमस्तुभ्यं समृद्धं कुरु में सदा।।
नमो नमस्ते महामाय श्री पीठे सुर पूजिते।
शंख चक्र गदा हस्ते महां लक्ष्मि नमोस्तुते।।
वैभव लक्ष्मी जी से यह प्रार्थना करें
पूजन समाप्त होने के बाद वैभव लक्ष्मी जी से यह प्रार्थना करें
हे माँ! जैसे आपने शीला पर पानी कृपा की है वैसे ही कृपया हमारी सभी इच्छाओं को पूरा करें।
हर विपत्ति को दूर करो, और हम सभी को समृद्धि लाओ। जो लोग चाहते हैं उन्हें संतान दें,
सौभाग्यशाली स्त्री का सौभाग्य अखंड रखें, और एक अविवाहित लड़की को प्यार करने वाला पति दें।
तुम्हारा, उनके सभी संकटों को दूर करो और उनके जीवन को खुशियों से भर दो।
हे माँ! आपकी महिमा अपार है। आपकी जय हो!” इसके बाद लक्ष्मीजी को प्रणाम करें।
वैभव लक्ष्मी व्रत का उद्यापन कैसे किया जाता है?
वैभव लक्ष्मी के व्रत का उद्यापन किसी भी महीने के शुक्रवार को कर सकते हैं, लेकिन मलमास या खरमास में व्रत का उद्यापन ना करें। शास्त्रीय विधि के अनुसार ही उद्यापन करना चाहिये।
आखरी शुक्रवार को खीर या नैवेध का भोग बनायें।
हर शुक्रवार को जैसे वैभव लक्ष्मी का पूजन करते हैं उसी विधान से पूजन करें।
माँ की प्रार्थना करते समय सच्चे मन से यह कहे
‘हे माँ धनलक्ष्मी! हे माँ वैभवलक्ष्मी! यदि मैने सच्चे ह्रदय से आपका वैभवलक्ष्मी व्रत’ पूर्ण किया है । तो हे माँ! हमारी (जो मनकामना की हो वह बोलो) पूर्ण करो । हमारा सबका कल्याण करो । जिसे संतान न हो उसे संतान देना । सौभाग्यशाली स्त्री का सौभाग्य अखंड रखना । कंवारी लड़की को मनभावन पति देना । आपका यह चमत्कारी वैभवलक्ष्मी व्रत जो करे उनकी सब विपत्ति दूर करना । सब को सुखी करना । हे माँ! आपकी महिमा अपरंपार है।’ इस तरह माँ की प्रार्थना करके माँ लक्ष्मीजी का ‘धनलक्ष्मी स्वरूप’ को भाव से वंदन करें ।’
पूजा के बाद देवी के सामने एक श्रीफल तोड़कर कम से कम सात कुंवारी लड़कियों या सौभाग्यवती महिलाओं को कुमकुम का तिलक लगाएं।
इसके बाद सभी कुंवारी लड़कियों या सौभाग्यवती महिलाओं को “वैभव लक्ष्मी व्रत कथा” की पुस्तक के साथ उपहार दें और सुहागिन महिलाओं को श्रृंगार का सामान भेंट करें और उनका आशीर्वाद लें। अंत में आप भी इसका सेवन करें.
वैभवलक्ष्मी व्रत के कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न
प्र.1 वैभव लक्ष्मी व्रत कथा कैसे किया जाता है?
उ. धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक वैभव लक्ष्मी व्रत को शुक्रवार से शुरू करना होता है. ऐसे में जिस दिन आप व्रत की शुरुआत करें उस दिन से अगले 11 या 21 शुक्रवार के व्रत का संकल्प धारण करें। जितने शुक्रवार का संकल्प लिया है वो पूरे हो जाने पर व्रत धारण करके इसका उद्यापन भी किया जाता है। उद्यापन करके व्रत का समापन करें।
प्र.2 मैं वैभव लक्ष्मी व्रत कब शुरू कर सकता हूं?
उ. इस व्रत की शुरुआत शुक्रवार के दिन जल्दी उठकर स्नान करके और सुबह की पूजा करके की जाती है।
प्र.3 वैभव लक्ष्मी के व्रत में क्या नहीं खाना चाहिए?
उ. वैभव लक्ष्मी का व्रत करने वालों को और घर के सदस्यों को मांसाहारी भोजन नहीं करना चाहिए। उनको सात्विक भोजन ही करना चाहिए।
प्र.4 वैभव लक्ष्मी व्रत में नमक खा सकते हैं क्या?
उ. वैभव लक्ष्मी व्रत कथा में भी इस बात का कहीं जिक्र नहीं है कि हमें क्या खाना चाहिए। आप व्रत की पूजा करने के बाद जब खाना खाते हैं तो ले सकते है।
प्र.5 वैभव लक्ष्मी व्रत का क्या लाभ है?
उ. वैभव लक्ष्मी व्रत के फायदे ऊपर बताये गये हैं।
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