Deepawali Saral Puja Vidhi – दिवाली की सरल पूजा विधि, संपूर्ण दीपावली पूजा विधि विधान के अनुसार
Diwali Lakshmi Pujan In Hindi
Deepawali Puja In Hindi
दीपावली की पूजा, श्री महालक्ष्मी पूजन – भगवती महालक्ष्मी चल एवं अचल, दृश्य एवं अदृश्य सभी सम्पत्तियों, सिद्धियों एवं निधियों की अधिष्ठात्री साक्षात् नारायणी हैं। भगवान् श्रीगणेश सिद्धि, बुद्धि के एवं शुभ और लाभ के स्वामी तथा सभी अमङ्गलों एवं विघ्नोंके नाशक हैं, ये सत्-बुद्धि प्रदान करनेवाले हैं। अतः इनके समवेत-पूजन से सभी कल्याण-मङ्गल एवं आनन्द प्राप्त होते हैं।
कार्तिक कृष्ण अमावास्या को भगवती श्रीमहालक्ष्मी एवं भगवान गणेश की नूतन प्रतिमाओं का प्रतिष्ठापूर्वक विशेष पूजन किया जाता है। पूजन के लिये किसी चौकी अथवा कपड़े के पवित्र आसन पर गणेशजी के दाहिने भाग में माता महालक्ष्मी को स्थापित करना चाहिये। पूजन के दिन घर को स्वच्छ कर पूजन स्थान को भी पवित्र कर लेना चाहिये और स्वयं भी पवित्र होकर श्रद्धा और भक्तिपूर्वक सायंकाल में इनका पूजन करना चाहिये। मूर्तिमयी श्रीमहालक्ष्मीजी के पास ही किसी पवित्र पात्र में केसरयुक्त चन्दन से अष्टदल कमल बनाकर उस पर द्रव्य-लक्ष्मी (रुपयों) को भी स्थापित करके एक साथ ही दोनों की पूजा करनी चाहिये । पूजन-सामग्री को यथास्थान रख ले।
दिवाली पूजा का सामान
- एक लकड़ी की चौकी
- एक लाल कपड़ा
- एक लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति
- द्रव्यलक्ष्मी – सोने, चांदी के सिक्के या आभूषण
- कलश के लिए लोटा
- श्रंगार सामग्री
- कुमकुम
- चावल
- अष्टगंध
- चन्दन
- रक्त चन्दन
- सिन्दूर
- हल्दी की गांठ
- रोली
- सुपारी
- पान
- लौंग
- अगरबत्ती
- धूपबत्ती
- दीपक
- दिए
- बत्ती
- माचिस
- दूध
- दही
- घी
- शहद
- शक्कर
- इतर
- गंगा जल
- पंचामृत
- दुर्बा
- फूल
- फल
- पान
- मिठाई
- कपूर
- गेहूं
- दूर्वा
- खील बताशे
- चांदी के सिक्के
- कलावा
दिवाली की पूजा मुहूर्त
दीपावली के दिन प्रदोष काल में लक्ष्मी-गणेश जी की पूजा करना शुभ माना जाता है। उज्जैन के पंडितों ने यह जानकारी दी है की इस बार कार्तिक अमावस्या तिथि दो दिन पड़ रही है। इस बार दिवाली अमावस्या तिथि की शुरुआत गुरुवार (31 अक्टूबर) दोपहर 3.11 बजे से हो रही है। 1 नवंबर सुबह 5.12 बजे तक रहेगी। इसलिए 31 अक्टूबर को दिवाली पूजन का स्थिर लग्न शाम 6.11 बजे से रात 8 बजे तक है। फिर रात में 12.40 बजे से 2.50 बजे तक रहेगा। यह 2 मुहूर्त लक्ष्मी पूजन के लिए सर्वोत्तम हैं।
दिवाली की पूजा
सर्वप्रथम पूर्वाभिमुख अथवा उत्तराभिमुख हो आचमन, पवित्री- धारण, मार्जन-प्राणायाम कर अपने ऊपर तथा पूजा सामग्री पर निम्न मन्त्र पढ़कर जल छिड़के:-
आसन-शुद्धि और स्वस्ति-पाठ कर हाथ में जल-अक्षतादि लेकर पूजन का संकल्प करे-
संकल्प
पूजा का संकल्प लेकर जलाक्षतादि गणेश जीके समीप छोड़ दे। अनन्तर सर्वप्रथम गणेशजी का पूजन करे। गणेश पूजन से पूर्व उस नूतन प्रतिमा की निम्न-रीति से प्राण-प्रतिष्ठा कर ले।
प्रतिष्ठा
बायें हाथमें अक्षत लेकर दाहिने हाथ से उन अक्षतों को गणेशजी की प्रतिमा पर छोड़ते जाय।
इस प्रकार प्रतिष्ठा कर भगवान् गणेशका षोडशोपचार पूजन करे। तदनन्तर नवग्रह षोडशमातृका तथा कलश-पूजन के अनुसार करे।
इसके बाद प्रधान-पूजा में भगवती महालक्ष्मी का पूजन करे। पूजन से पूर्व नूतन प्रतिमा तथा द्रव्यलक्ष्मी की ‘ॐ मनो जूति०’ तथा ‘अस्यै प्राणाः’ इत्यादि मन्त्र पढ़कर पूर्वोक्त रीति से प्राण-प्रतिष्ठा कर ले।
ध्यान
सर्वप्रथम भगवती महालक्ष्मी का हाथ में फूल लेकर ध्यान करे –
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
ध्यान के लिये पुष्प अर्पित करे।
आवाहन
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
आवाहन के लिये पुष्प दे।
आसन
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
आसन के लिये कमलादि के पुष्प अर्पण करे।
पाद्य
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
चन्दन, पुष्पादियुक्त जल अर्पित करे ।
अर्घ्य
ॐ महालक्ष्म्यै नमः ।
अष्टगन्धमिश्रित जल अर्घ्यपात्र से देवी के हाथों में दे।
आचमन
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
आचमन के लिये जल चढ़ाये।
स्नान
ॐ महालक्ष्म्यै नमः ।
स्नानीय जल अर्पित करे।
स्नान के बाद ‘ॐ महालक्ष्म्यै नमः’ ऐसा उच्चारण कर आचमन के लिये जल दे।
दुग्ध-स्नान
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
गौ के कच्चे दूध से स्नान कराये, पुनः शुद्ध जल से स्नान कराये।
दधिस्नान
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
दधिसे स्नान कराये, फिर शुद्ध जलसे स्नान कराये।
घृतस्नान
ॐ महालक्ष्म्यै नमः ।
घृत से स्नान कराये तथा फिर शुद्ध जलसे स्नान कराये।
मधुस्नान
ॐ महालक्ष्म्यै नमः ।
मधु (शहद) से स्नान कराये, पुनः शुद्ध जलसे स्नान कराये।
शर्करास्नान
ॐ महालक्ष्म्यै नमः ।
शर्करा से स्नान कराकर पश्चात् शुद्ध जल से स्नान कराये।
पञ्चामृतस्नान
एकत्र मिश्रित पञ्चामृत से स्नान कराये-
ॐ महालक्ष्म्यै नमः ।
पञ्चामृतस्नानके अनन्तर शुद्ध जलसे स्नान कराये।
(यदि अभिषेक करना अभीष्ट हो तो शुद्ध जल या दुग्धादिसे ‘श्रीसूक्त’ का पाठ करते हुए अखण्ड जलधारासे स्नान (अभिषेक) कराये। मृण्मय प्रतिमा अखण्ड जलधारासे क्षरित न हो जाय इस आशयसे धातु की मूर्ति या द्रव्य लक्ष्मी पर अभिषेक किया जाता है, इसे पृथक् पात्र में कराना चाहिये ।)
गन्धोदकस्नान
गन्ध (चन्दन) मिश्रित जल से स्नान कराये ।
शुद्धोदक-स्नान
ॐ महालक्ष्म्यै नमः ।
गङ्गाजल अथवा शुद्ध जल से स्नान कराये, तदनन्तर प्रतिमाका अङ्ग-प्रोक्षण कर (पोंछकर) उसे यथास्थान आसन पर स्थापित करे और निम्नरूप से उत्तराङ्ग-पूजन करे।)
आचमन – शुद्धोदकस्नानके बाद ‘ॐ महालक्ष्म्यै नमः’ ऐसा कहकर आचमनीय जल अर्पित करे ।
वस्त्र
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
वस्त्र अर्पित करे, आचमनीय जल दे।
उपवस्त्र
ॐ महालक्ष्म्यै नमः ।
कञ्चुकी आदि उत्तरीय वस्त्र चढ़ाये, आचमन के लिये जल दे।
मधुपर्क
ॐ महालक्ष्म्यै नमः ।
काँस्य पात्रमें स्थित मधुपर्क समर्पित कर आचमनके लिये जल दे।
आभूषण
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
आभूषण समर्पित करे ।
गन्ध
ॐ महालक्ष्म्यै नमः ।
अनामिका अँगुली से केसरादिमिश्रित चन्दन अर्पित करे।
रक्तचन्दन
ॐ महालक्ष्म्यै नमः ।
अनामिका से रक्त चन्दन चढ़ाये ।
सिन्दूर
ॐ महालक्ष्म्यै नमः ।
देवीजी को सिन्दूर चढ़ाये ।
कुङ्कुम
ॐ महालक्ष्म्यै नमः ।
कुङ्कुम अर्पित करे ।
पुष्पसार (इतर)
ॐ महालक्ष्म्यै नमः ।
सुगन्धित तेल एवं इतर चढ़ाये ।
अक्षत
ॐ महालक्ष्म्यै नमः ।
कुङ्कुमाक्त अक्षत अर्पित करे ।)
पुष्य एवं पुष्पमाला
ॐ महालक्ष्म्यै नमः ।
देवीजी को पुष्पों तथा पुष्पमालाओं से अलङ्कृत करे, यथासम्भव लाल कमल के फूलों से पूजा करे ।
दूर्वा
ॐ महालक्ष्म्यै नमः ।
(दूर्वाङ्कर अर्पित करे।)
अङ्गपूजा
रोली, कुङ्कुममिश्रित अक्षत-पुष्पों से निम्नाङ्कित एक-एक नाम-मन्त्र पढ़ते हुए अङ्गपूजा करे –
ॐ चपलायै नमः, पादौ पूजयामि ।
ॐ चञ्चलायै नमः, जानुनी पूजयामि ।
ॐ कमलायै नमः, कटिं पूजयामि ।
ॐ कात्यायन्यै नमः, नाभिं पूजयामि ।
ॐ जगन्मात्रे नमः, जठरं पूजयामि ।
ॐ विश्ववल्लभायै नमः, वक्षःस्थलं पूजयामि ।
ॐ कमलवासिन्यै नमः, हस्तौ पूजयामि ।
ॐ पद्माननायै नमः, मुखं पूजयामि ।
ॐ कमलपत्राक्ष्यै नमः, नेत्रत्रयं पूजयामि ।
ॐ श्रियै नमः, शिरः पूजयामि ।
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, सर्वाङ्गः पूजयामि ।
अष्टसिद्धि-पूजन
इस प्रकार अङ्गपूजा के अनन्तर पूर्वादि-क्रम से आठों दिशाओं में आठों सिद्धियों की पूजा कुङ्कुमाक्त अक्षतों से देवी महालक्ष्मी के पास निम्नाङ्कित मन्त्रों से करे –
१-ॐ अणिम्ने नमः (पूर्वे), २-ॐ महिम्ने नमः (अग्निकोणे), ३-ॐ गरिम्णे नमः (दक्षिणे), ४-ॐ लघिम्ने नमः (नैऋत्ये), ५-ॐ प्राप्त्यै नमः (पश्चिमे), ६-ॐ प्राकाम्यै नमः (वायव्ये), ७-ॐ ईशितायै नमः (उत्तरे) तथा ८-ॐ वशितायै नमः (ऐशान्याम्) ।
अष्टलक्ष्मी-पूजन
तदनन्तर पूर्वादि-क्रम से आठों दिशाओं में महालक्ष्मी के पास कुङ्कुमाक्त अक्षत तथा पुष्पों से एक-एक नाम-मन्त्र पढ़ते हुए आठ लक्ष्मियों का पूजन करे –
१-ॐ आद्यलक्ष्म्यै नमः, २-ॐ विद्यालक्ष्म्यै नमः, ३-ॐ सौभाग्यलक्ष्म्यै नमः, ४-ॐ अमृतलक्ष्यै नमः, ५-ॐ कामलक्ष्म्यै नमः, ६-ॐ सत्यलक्ष्म्यै नमः, ७-ॐ भोगलक्ष्म्यै नमः ८-ॐ योगलक्ष्म्यै नमः ।
धूप
ॐ महालक्ष्म्यै नमः, धूपमाघ्रापयामि। (धूप आघ्रापित करे।)
दीप
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
दीपक दिखाये और फिर हाथ धो ले।
नैवेद्य
ॐ महालक्ष्म्यै नमः।
देवीजीको नैवेद्य निवेदित कर पानीय जल एवं हस्तादि प्रक्षालन के लिये भी जल अर्पित करे।
करोद्वर्तन
‘ॐ महालक्ष्म्यै नमः’ यह कहकर करोद्वर्तनके लिये हाथों में चन्दन उपलेपित करे ।
आचमन
ॐ महालक्ष्म्यै नमः
नैवेद्य निवेदन करनेके अनन्तर आचमनके लिये जल दे।
ऋतुफल
ॐ महालक्ष्म्यै नमः
ऋतुफल अर्पित करे तथा आचमनके लिये जल दे।
ताम्बूल-पूगीफल
ॐ महालक्ष्म्यै नमः
एला, लवंग, पूगीफलयुक्त ताम्बूल अर्पित करे।
दक्षिणा
ॐ महालक्ष्म्यै नमः
दक्षिणा चढ़ाये।
नीराजन
ॐ महालक्ष्म्यै नमः
आरती करे तथा जल छोड़े, हाथ धो ले।
प्रदक्षिणा
ॐ महालक्ष्म्यै नमः
प्रदक्षिणा करे।
प्रार्थना
हाथ जोड़कर महालक्ष्मी से प्रार्थना करे
ॐ महालक्ष्म्यै नमः
प्रार्थना करते हुए नमस्कार करे।
समर्पण
पूजनके अन्त में समस्त पूजन-कर्म भगवती महालक्ष्मी को समर्पित करे तथा जल गिराये ।
भगवती महालक्ष्मी के यथालब्धोपचार पूजन के अनन्तर महालक्ष्मी- पूजन के अङ्ग-रूप, श्रीदेहलीविनायक, मसिपात्र, लेखनी, सरस्वती, कुबेर, तुला-मान तथा दीपकों की पूजा की जाती है। संक्षेपमें उन्हें भी यहाँ दिया जा रहा है। सर्वप्रथम ‘देहलीविनायक’ की पूजा की जाती है।
देहलीविनायक-पूजन
व्यापारिक प्रतिष्ठानादि में दीवालों पर ‘ॐ श्रीगणेशाय नमः’, ‘स्वस्तिक चिह्न’, ‘शुभ-लाभ’ आदि माङ्गलिक एवं कल्याणकर शब्द सिन्दूरादि से लिखे जाते हैं। इन्हीं शब्दों पर ‘ॐ देहलीविनायकाय नमः’ इस नाम-मन्त्रद्वारा गन्ध-पुष्पादि से पूजन करे।
श्रीमहाकाली (दावात) – पूजन
स्याही-युक्त दावात को भगवती महालक्ष्मी के सामने पुष्प तथा अक्षतपुञ्ज में रखकर उसमें सिन्दूर से स्वस्तिक बना दे तथा मौली लपेट दे। ‘ॐ श्रीमहाकाल्यै नमः’ इस नाम-मन्त्र से गन्ध-पुष्पादि पञ्चोपचारों से या षोडशोपचारों से दावात में भगवती महाकाली का पूजन करे और अन्त में इस प्रकार प्रार्थना-पूर्वक उन्हें प्रणाम करे –
लेखनी-पूजन
लेखनी (कलम) पर मौली बाँधकर सामने रख ले और
‘ॐ लेखनीस्थायै देव्यै नमः’ इस नाम-मन्त्र द्वारा गन्ध-पुष्पाक्षत आदि से पूजन कर इस प्रकार प्रार्थना करे
सरस्वती – (पञ्जिका-बही-खाता) पूजन
पञ्जिका – बही, बसना तथा थैली में रोली या केसरयुक्त चन्दन से स्वस्तिक चिह्न बनाये तथा थैली में पाँच हल्दी की गाँठें, धनिया, कमलगट्टा, अक्षत, दूर्वा और द्रव्य रखकर उसमें सरस्वती का पूजन करे। सर्वप्रथम सरस्वतीजी का ध्यान करे-
‘ॐ वीणापुस्तकधारिण्यै श्रीसरस्वत्यै नमः’ – इस नाम- मन्त्र से गन्धादि उपचारों द्वारा पूजन करे ।
कुबेर-पूजन
तिजोरी अथवा रुपये रखे जाने वाले संदूक आदि को स्वस्तिकादि से अलङ्कत कर उसमें निधिपति कुबेर का आवाहन करे
आवाहनके पश्चात् ‘ॐ कुबेराय नमः’ इस नाम-मन्त्र से यथालब्धोपचार-पूजन कर अन्त में प्रार्थना करे
प्रार्थना कर पूर्वपूजित हल्दी, धनिया, कमलगट्टा, द्रव्य, दूर्वादि से युक्त थैली तिजोरी में रखे।
तुला तथा मान-पूजन
सिन्दूर से तराजू आदि पर स्वस्तिक बना ले। मौली लपेटकर तुलाधिष्ठातृदेवता का ध्यान करना चाहिये –
ध्यानके बाद ‘ॐ तुलाधिष्ठातृदेवतायै नमः’ इस नाम-मन्त्र से गन्धाक्षतादि उपचारों द्वारा पूजन कर नमस्कार करे।
दीपमालिका – (दीपक-) पूजन
किसी पात्र में ग्यारह, इक्कीस या उससे अधिक दीपकों को प्रज्वलित कर महालक्ष्मी के समीप रखकर उस दीप-ज्योतिका ‘ॐ दीपावल्यै नमः’ इस नाम-मन्त्र से गन्धादि उपचारों द्वारा पूजन कर प्रार्थना करे
दीपमालिकाओं का पूजन कर अपने आचार के अनुसार संतरा, ईख, पानीफल, धान का लावा इत्यादि पदार्थ चढ़ाये। धान का लावा (खील) गणेश, महालक्ष्मी तथा अन्य सभी देवी-देवताओं को भी अर्पित करे। अन्त में अन्य सभी दीपकों को प्रज्वलित कर सम्पूर्ण गृह अलङ्कृत करें।
प्रधान आरती
इस प्रकार भगवती महालक्ष्मी तथा उनके सभी अङ्ग-प्रत्यङ्गों एवं उपाङ्गों का पूजन कर लेने के अनन्तर प्रधान आरती करनी चाहिये। इसके लिये एक थाली में स्वस्तिक आदि माङ्गलिक चिह्न बनाकर अक्षत तथा पुष्पों के आसन पर किसी दीपक आदि में घृतयुक्त बत्ती प्रज्वलित करे। एक पृथक् पात्र में कर्पूर भी प्रज्वलित कर वह पात्र भी थाली में यथास्थान रख ले, आरती-थालका जल से प्रोक्षण कर ले। पुनः आसन पर खड़े होकर अन्य पारिवारिक जनों के साथ घण्टानादपूर्वक निम्न आरती गाते हुए साङ्ग-महालक्ष्मीजीकी मङ्गल आरती करे-
श्रीलक्ष्मीजीकी आरती
ॐ जय लक्ष्मी माता, (मैया) जय लक्ष्मी माता ।
तुमको निसिदिन सेवत हर-विष्णू-धाता ॥ ॐ ॥
उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता ।
सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ।। ॐ ॥
दुर्गारूप निरञ्जनि, सुख-सम्पति-दाता ।
जो कोइ तुमको ध्यावत, ऋधि-सिधि-धन पाता ॥ ॐ ॥
तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता ।
कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनि, भवनिधिकी त्राता ।। ॐ ॥
जिस घर तुम रहती, तहँ सब सद्गुण आता ।
सब सम्भव हो जाता, मन नहिं घबराता ।। ॐ ॥
तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता।
खान-पानका वैभव सब तुमसे आता ॥ ॐ ॥
शुभ-गुण-मन्दिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता ।
रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहिं पाता ॥ ॐ ॥
महालक्ष्मी (जी) की आरति, जो कोई नर गाता ।
उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता ॥ ॐ ॥
मन्त्र-पुष्पाञ्जलि
दोनों हाथों में कमल आदिके पुष्प लेकर हाथ जोड़े –
ॐ महालक्ष्म्यै नमः
हाथमें लिये फूल महालक्ष्मीपर चढ़ा दे।
प्रदक्षिणा कर साष्टाङ्ग प्रणाम करे, पुनः हाथ जोड़कर क्षमा-प्रार्थना करे-
क्षमा-प्रार्थना
पुनः प्रणाम करके ‘ॐ अनेन यथाशक्त्यर्चनेन श्रीमहालक्ष्मीःप्रसीदतु’ यह कहकर जल छोड़ दे।
ब्राह्मण एवं गुरुजनोंको प्रणाम कर चरणामृत तथा प्रसाद वितरण करे ।
विसर्जन
पूजनके अन्तमें हाथमें अक्षत लेकर नूतन गणेश एवं महालक्ष्मीकी प्रतिमाको छोड़कर अन्य सभी आवाहित, प्रतिष्ठित एवं पूजित देवताओंको अक्षत छोड़ते हुए विसर्जित करे।
दीपावली लक्ष्मी पूजा विधि के कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न
प्र.1 लक्ष्मी जी की पूजा कैसे की जाती है?
उ. लक्ष्मी जी की पूजा विधि ऊपर मंत्रो के साथ दी गई है।
प्र.2 लक्ष्मी जी की पूजा में क्या नहीं चढ़ाना चाहिए?
उ. लक्ष्मी मां को तुलसी और दुर्वा भेंट करना शुभ नहीं माना जाता है। मां लक्ष्मी को सफ़ेद रंग के फूल भी नहीं चढ़ाने चाहिए।
प्र.3 मां लक्ष्मी का प्रिय मंत्र कौन सा है?
उ. ऊँ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ऊँ महालक्ष्मी नम:। यह मां लक्ष्मी का बीज मंत्र है।
प्र.4 लक्ष्मी पूजा से पहले क्या होता है?
उ. पूजा स्थल पर रंगोली बनानी चाहिए। पूजा चौकी पर कच्चे चावल रखने चाहिए। लक्ष्मी जी की मूर्ति को गणेश जी के दाहिनी ओर रखना चाहिए। दो बड़े दीपक रखने चाहिए, एक में तेल और दूसरे में घी भरना चाहिए। एक साफ़ स्वच्छ कलश में पानी भरकर रखना चाहिए।
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