Dev Uthani Ekadashi Puja Vidhi – विधि विधान के अनुसार पूजा विधि, सामग्री, महत्व, नियम और मुहूर्त

 

Dev Uthani Ekadashi Vrat Vidhi

Devuthani Gyaras Puja Vidhi

 

देवउठनी एकादशी के बारे में

Dev Uthani Ekadashi Puja Vidhi – कार्तिक माह में पड़ने वाले सभी त्योहारों में एक है  देवउठनी एकादशी। ये त्योहार हिंदू धर्म में सभी महत्वपूर्ण त्योहारों में एक है। कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष के एकादशी को देवउठनी या देव प्रबोधिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। ये दीपावली के बाद आती है। वैसे तो हर महीने में दो एकादशी आती है यानि की साल में 24 एकादशी पड़ता है लेकिन इन सभी एकादशी में देवउठनी एकादशी ,को काफी खास माना जाता है। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है इसलिए देवउठनी एकादशी विष्णु भगवान को समर्पित हैं। भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की पूजा-अर्चना करते हैं। एकादशी को व्रत भी रखा जाता है जिसको करने से सभी तरह के पापों से छुटकारा मिलता सुख-समृद्धि प्राप्ति होती है।

 

देवउठनी एकादशी पूजा सामग्री

  • श्री विष्णु जी का चित्र अथवा मूर्ति
  • पुष्प
  • नारियल
  • सुपारी
  • फल
  • लौंग
  • धूप
  • दीप
  • घी
  • पंचामृत
  • अक्षत
  • तुलसी दल
  • चंदन
  • मिष्ठान

 

देवउठनी एकादशी का महत्व

Dev Uthani Ekadashi Puja Vidhi

  • देवउठनी एकादशी करने भगवान विष्णु की असीम कृपा प्राप्त होती हैं।
  • संतान प्राप्ति का सुख मिलता हैं।
  • विवाह की कामना पूरी होती हैं।
  • जीवन में सुख और समृधि की प्राप्ति होती हैं।
  • व्रत करने वाले को मोक्ष की भी प्राप्ति होती हैं।
  • सभी पापों से छुटकारा मिलता हैं।

 

Dev Uthani Ekadashi Puja Muhurat 2025

उज्जैन स्थिति महर्षि पाणिनि संस्कृत एवं वैदिक विश्वविद्यालय के ज्योतिषाचार्य जी ने बताया देव उठनी एकादशी की तारीख और शुभ मुहूर्त

इस साल देव उठनी एकादशी की तिथि की शुरूआत 1 नवंबर को सुबह 9 बजकर 11 मिनट से हो जाएगी और यह 2 नवंबर को सुबह 7 बजकर 31 मिनट तक रहेगी।

कार्तिक शुक्ल एकादशी तिथि दोनों दिन मिल रही है, लेकिन व्रत के लिए उदयातिथि की मान्यता है, ऐसे में देव उठनी एकादशी का व्रत 2 नवंबर को होना चाहिए, लेकिन हरि वासर का समापन 2 नवंबर को दोपहर में ही 12:55 पी एम पर हो रहा है।

ऐसे में देव उठनी एकादशी का व्रत 1 नवंबर को गृहस्थ लोग करेंगे और 2 नवंबर को देव उठनी एकादशी का व्रत वैष्णव लोग करेंगे।

 

गृहस्थ लोगों के लिए देव उठनी एकादशी का मुहूर्त सुबह 07:56 ए एम से लेकर 09:19 ए एम तक है।  इस समय में भगवान विष्णु की पूजा कर लें। उस दिन रवि योग 06:33 ए एम से 06:20 पी एम तक रहेगा। ब्रह्म मुहूर्त 04:50 ए एम से 05:41 ए एम तक और अभिजीत मुहूर्त 11:42 ए एम से 12:27 पी एम तक है। ध्रुव योग प्रात:काल से लेकर 2 नवंबर को 02:10 ए एम तक है, वहीं शतभिषा नक्षत्र 06:20 पी एम तक है।

वैष्णव लोगों के लिए देव उठनी एकादशी का मुहूर्त सुबह 07:56 ए एम से लेकर दोपहर 12:04 पी एम तक है। इस समय में आप विष्णु पूजा करें. उस दिन त्रिपुष्कर योग 07:31 ए एम से 05:03 पी एम तक है और सर्वार्थ सिद्धि योग शाम 05:03 पी एम से लेकर 3 नवंबर को 06:34 ए एम तक है। इस दिन ब्रह्म मुहूर्त 04:50 ए एम से 05:42 ए एम तक और अभिजीत मुहूर्त 11:42 ए एम से 12:26 पी एम तक है।

 

देवउठनी एकादशी की कथा

धार्मिक मान्यता है की आषढ़ शुक्ल पक्ष के एकादशी के दिन देव विश्राम करने चले जाते है और फिर कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष के एकादशी यानि प्रबोधिनी एकादशी के दिन ही उठते है। इसलिए इसे देवउठनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। ऐसी मान्यता है की देवउठनी एकादशी के दिन ही भगवान विष्णु क्षीरसागर में चार माह की योग निद्रा से जागते हैं इसी कारण भगवान विष्णु के शयनकाल की अवधि चार माह तक ग्रहप्रवेश, विवाह इससे सबन्धित कोई भी मांगलिक कार्य नहीं किये जाते हैं। देवउठनी एकादशी के दिन ही देव अपनी उठते है इसलिए इसे देवउठनी एकादशी कहा जाता हैं। यही वजह है की देवउठनी एकादशी के भगवान के जागने के बाद ही मांगलिक कार्यो की शुरुआत होती है। इस दिन से ही सभी शुभ कार्य दुबारा से शुरु हो जाते हैं।

 

देवउठनी एकादशी पूजा विधि

जैसे सभी व्रत और त्योहारों में पूजा करने के लिए पूजा विधि अलग है वैसे ही देवउठनी एकादशी का भी पूजा करने के लिए पूजा विधि अलग है जो इस प्रकार है:-

  • एकादशी को व्रत करने के लिए सबसे पहले सुबह जल्दी उठकर स्नान करें।
  • इसके बाद भगवान विष्णुजी के व्रत के लिए संकल्प लें।
  • अपने घर के मंदिर की साफ-सफाई करें।
  • फिर उसके बाद भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का ध्यान करें।
  • फिर भगवान को पंचामृत से स्नान कराएं।
  • तब हल्दी या चंदन का तिलक लगाएं।
  • तिलक लगाने के बाद भगवान विष्णु को पीले फूलों की माला, मिठाई, फल और तुलसी के पत्ते चढ़ाएं।
  • ऊँ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र को जपें जो भगवान विष्णु का है।
  • विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करें।
  • इसके बाद भगवान विष्णुजी का आरती गाएं।
  • पूरे दिन उपवास रहे।
  • इसके बाद सुबह पूजा पाठ करने बाद जिस समय पारण का सही समय हो तब अपने व्रत को तोड़ें।

 

तुलसी जी विवाह शालिग्राम जी के साथ कैसे करे?

Dev Uthani Ekadashi Puja Vidhi

कार्तिक का महीना विष्णु भगवान का सबसे प्रिय महीना है। देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु जी के जागने के बाद शाम के समय इसी दिन तुलसी जी का विवाह भी करते है शालिग्राम जी के साथ। अगर आप व्रत नहीं भी रखना चाहते है तो भी आप तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ रचा सकते है। तुलसी जी का विवाह शालिग्राम जी के साथ इस प्रकार किया जाता है:-

  • तुलसी विवाह से पहले तुलसी के पौधे को एक सुंदर गमले को सजाया जाता है।
  • केले के पत्तों और गन्‍ने से मंडप तैयार किया जाता है।
  • रंगोली बनाकर पूजा स्थल को सजाया जाता है।
  • तुलसी जी को दुल्हन की तरह सजाया जाता है।
  • रंग-बिरंगी चुनरी, श्रृंगार की सामग्री, फूलों की माला और सुहाग की सामग्री जैसे बिछुए, सिंदूर, बिंदी, सिंदूर आदि अर्पित की जाती हैं।
  • वहीं भगवान शालिग्राम की मूर्ति को दूल्हे के रूप में सजाया जाता है।
  • एक साफ कलश में जल भर लें और उसमें पांच या फिर सात आम के पत्ते डाल दें।
  • इसके बाद दीपक भी जलाये।
  • अब सावधानी से चौकी समेत शालिग्राम जी को हाथों में लेकर तुलसी की सात परिक्रमा कराएं।
  • विवाह की रस्में पूरी होने के बाद तुलसी जी को विभिन्न प्रकार के पकवान, मिठाई और विशेष प्रसाद अर्पित किया जाता है।
  • इसके बाद तुलसी जी का आरती करे।

Tulsi Mata Ki Aarti – तुलसी महारानी नमो-नमो, हरि की पटरानी नमो-नमो।, जय जय तुलसी माता मैया

 

व्रत के नियम

देवउठनी एकादशी को व्रत करने से पहले कुछ नियम है जिसको अवश्य करने चाहिए। इस दिन बिना लहसुन और प्याज वाले भोजन करना चाहिए। इस दिन चावल भी नहीं खाना चाहिए। जो पहली बार एकादशी का व्रत शुरू करना चाहते है। हरिप्रबोधिनी एकादशी से ही एकादशी का व्रत प्रारम्भ करना चाहिए।

 

व्रत में क्या खायें?

Dev Uthani Ekadashi Puja Vidhi

एकादशी के दिन दिन भर निर्जल व्रत करना होता है। शाम के समय भगवान विष्णु की पूजा करके फलाहार किया जा सकता है। इस दिन आलू, शकरकंद, दूध जैसे सात्विक चीजों का ही सेवन करना चाहिए।

 

देवउठनी एकादशी के व्रत पारण करने का सही समय

गृहस्थ लोग देव उठनी एकादशी व्रत का पारण 2 नवंबर को दोपहर में 01:11 पी एम से 03:23 पी एम के बीच कर सकते हैं।

वैष्णव लोग देव उठनी एकादशी व्रत का पारण 3 नवंबर सोमवार को सुबह 06:34 ए एम से 08:46 ए एम के बीच कर सकते हैं।

 

देवउठनी एकादशी के महत्वपूर्ण प्रश्न

प्र.1 देवउठनी एकादशी कैसे की जाती है?

उ. इसके बारे में ऊपर बताया गया है।

 

प्र.2 मैं एकादशी का व्रत कब शुरू कर सकता हूं?

उ. एकादशी व्रत की शुरुआत माघ महीने के कृष्ण पक्ष की एकादशी से करनी चाहिए जिसको उत्पन्ना एकादशी कहा जाता हैं।

 

प्र.3 एकादशी के दिन क्या नहीं करना चाहिए?

उ. इस दिन तामसिक भोजन नहीं करना चाहिए। इसके अलावा लहसुन, प्याज औए चावल नहीं खाना चाहिए और तुलसी के पत्ते भी नहीं तोड़ने चाहिए।

 

प्र.4 एकादशी के दिन व्रत में क्या खाना चाहिए?

उ. एकादशी के दिन आप फलाहार खा सकते है। जैसे साबूदाने की खीर, कुट्टू के आटे के पकोड़े, फल, मावा, बर्फ़ी और नारियल की बर्फ़ी खा सकते है।

 

प्र.5 एकादशी व्रत के क्या लाभ है?

उ. एकादशी व्रत करने से भगवान विष्णु का आशीर्वाद मिलता है। एकादशी का व्रत करने वाला मनुष्य सदा सुखी रहता है। उसके सम्पूर्ण पापों का नाश इस व्रत से हो जाता है।

 

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