Diwali Pooja Vidhi – दिवाली पूजन विधि, मंत्र सहित संपूर्ण दीपावली पूजा, विधि विधान के अनुसार लक्ष्मी पूजा

 

Diwali Lakshmi Pujan In Hindi

Deepawali Pooja In Hindi

 

Diwali Pooja Vidhi, श्री महालक्ष्मी पूजन  – भगवती महालक्ष्मी चल एवं अचल, दृश्य एवं अदृश्य सभी सम्पत्तियों, सिद्धियों एवं निधियों की अधिष्ठात्री साक्षात् नारायणी हैं। भगवान् श्रीगणेश सिद्धि, बुद्धि के एवं शुभ और लाभ के स्वामी तथा सभी अमङ्गलों एवं विघ्नोंके नाशक हैं, ये सत्-बुद्धि प्रदान करनेवाले हैं। अतः इनके समवेत-पूजन से सभी कल्याण-मङ्गल एवं आनन्द प्राप्त होते हैं।

कार्तिक कृष्ण अमावास्या को भगवती श्रीमहालक्ष्मी एवं भगवान गणेश की नूतन प्रतिमाओं का प्रतिष्ठापूर्वक विशेष पूजन किया जाता है। पूजन के लिये किसी चौकी अथवा कपड़े के पवित्र आसन पर गणेशजी के दाहिने भाग में माता महालक्ष्मी को स्थापित करना चाहिये। पूजन के दिन घर को स्वच्छ कर पूजन स्थान को भी पवित्र कर लेना चाहिये और स्वयं भी पवित्र होकर श्रद्धा और भक्तिपूर्वक सायंकाल में इनका पूजन करना चाहिये। मूर्तिमयी श्रीमहालक्ष्मीजी के पास ही किसी पवित्र पात्र में केसरयुक्त चन्दन से अष्टदल कमल बनाकर उस पर द्रव्य-लक्ष्मी (रुपयों) को भी स्थापित करके एक साथ ही दोनों की पूजा करनी चाहिये । पूजन-सामग्री को यथास्थान रख ले।

 

दिवाली पूजा का सामान

  • एक लकड़ी की चौकी
  • एक लाल कपड़ा
  • एक लक्ष्मी-गणेश की मूर्ति
  • द्रव्यलक्ष्मी – सोने, चांदी के सिक्के या आभूषण
  • कलश के लिए लोटा
  • श्रंगार सामग्री
  • कुमकुम
  • चावल
  • अष्टगंध
  • चन्दन
  • रक्त चन्दन
  • सिन्दूर
  • हल्दी की गांठ
  • रोली
  • सुपारी
  • पान
  • लौंग
  • अगरबत्ती
  • धूपबत्ती
  • दीपक
  • दिए
  • बत्ती
  • माचिस
  • दूध
  • दही
  • घी
  • शहद
  • शक्कर
  • इतर
  • गंगा जल
  • पंचामृत
  • दुर्बा
  • फूल
  • फल
  • पान
  • मिठाई
  • कपूर
  • गेहूं
  • दूर्वा
  • खील बताशे
  • चांदी के सिक्के
  • कलावा

 

दिवाली की पूजा मुहूर्त

दीपावली के दिन प्रदोष काल में लक्ष्मी-गणेश जी की पूजा करना शुभ माना जाता है। उज्जैन के पंडितों ने यह जानकारी दी है कि यह 2 मुहूर्त लक्ष्मी पूजन के लिए सर्वोत्तम हैं।

अमावस्या तिथि प्रारंभ: 20 अक्टूबर 2025, दोपहर 3:44 बजे
अमावस्या तिथि समाप्त: 21 अक्टूबर 2025, दोपहर 5:54 बजे
लक्ष्मी पूजा मुहूर्त: 20 अक्टूबर 2025, शाम 7:08 बजे से 8:18 बजे तक
प्रदोष काल: शाम 5:46 बजे से 8:18 बजे तक
वृषभ काल: शाम 7:08 बजे से 9:03 बजे तक

 

दिवाली की पूजा

सर्वप्रथम पूर्वाभिमुख अथवा उत्तराभिमुख हो आचमन, पवित्री- धारण, मार्जन-प्राणायाम कर अपने ऊपर तथा पूजा सामग्री पर निम्न मन्त्र पढ़कर जल छिड़के:-

                ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।

                यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥

आसन-शुद्धि और स्वस्ति-पाठ कर हाथ में जल-अक्षतादि लेकर पूजन का संकल्प करे-

 

संकल्प

ॐ विष्णुः …. मासोत्तमे मासे कार्तिकमासे कृष्णपक्षे पुण्यायाममावास्यायां

              तिथौ अमुक वासरे अमुक गोत्रोत्पन्नः अमुक नाम शर्मा (वर्मा, गुप्तः, दासः)

             अहं श्रुतिस्मृतिपुराणोक्तफलावाप्तिकामनया ज्ञाता-

             ज्ञातकायिकवाचिकमानसिकसकलपापनिवृत्तिपूर्वकं स्थिरलक्ष्मी प्राप्तये

            श्रीमहालक्ष्मीप्रीत्यर्थं महालक्ष्मीपूजनं कुबेरादीनां च पूजन करिष्ये ।

            तदङ्गत्वेन गौरीगणपत्यादिपूजनं च करिष्ये ।

यह संकल्प वाक्य पढ़कर जलाक्षतादि गणेश जीके समीप छोड़ दे। अनन्तर सर्वप्रथम गणेशजी का पूजन करे। गणेश पूजन से पूर्व उस नूतन प्रतिमा की निम्न-रीति से प्राण-प्रतिष्ठा कर ले।

अमुक – यह रिक्त स्थान है यहाँ आपको दिन, गोत्र और नाम बोलना है।

 

प्रतिष्ठा

बायें हाथमें अक्षत लेकर निम्न मन्त्रों को पढ़ते हुए दाहिने हाथ से उन अक्षतों को गणेशजी की प्रतिमा पर छोड़ते जाय।

              ॐ मनो जूतिर्जुषतामाज्यस्य बृहस्पतिर्यज्ञमिमं तनोत्वरिष्टं यज्ञ समिमं दधातु । विश्वे देवास इह मादयन्तामो३ म्प्रतिष्ठ ।

                         ॐ अस्यै प्राणाः प्रतिष्ठन्तु अस्यै प्राणाः क्षरन्तु च ।

                         अस्यै देवत्वमर्चायै मामहेति च कश्चन ॥

इस प्रकार प्रतिष्ठा कर भगवान् गणेशका षोडशोपचार पूजन करे। तदनन्तर नवग्रह षोडशमातृका तथा कलश-पूजन के अनुसार करे।

इसके बाद प्रधान-पूजा में भगवती महालक्ष्मी का पूजन करे। पूजन से पूर्व नूतन प्रतिमा तथा द्रव्यलक्ष्मी की ‘ॐ मनो जूति०’ तथा ‘अस्यै प्राणाः’ इत्यादि मन्त्र पढ़कर पूर्वोक्त रीति से प्राण-प्रतिष्ठा कर ले।

 

ध्यान

सर्वप्रथम भगवती महालक्ष्मी का हाथ में फूल लेकर इस प्रकार ध्यान करे –

या सा पद्मासनस्था विपुलकटितटी पद्मपत्रायताक्षी 

            गम्भीरावर्तनाभिस्तनभरनमिता शुभ्रवस्त्रोत्तरीया ।

           या लक्ष्मीर्दिव्यरूपैर्मणिगणखचितैः स्नापिता हेमकुम्भैः

           सा नित्यं पद्महस्ता मम वसतु गृहे सर्वमाङ्गल्ययुक्ता ।।

          ॐ हिरण्यवर्णां हरिणीं सुवर्णरजतस्रजाम् ।

          चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ।।

    ॐ महालक्ष्म्यै नमः। ध्यानार्थे पुष्याणि समर्पयामि । (ध्यान के लिये पुष्प अर्पित करे।)

 

आवाहन

सर्वलोकस्य जननीं सर्वसौख्यप्रदायिनीम् ।

                सर्वदेवमयीमीशां देवीमावाहयाम्यहम् ।।

               ॐ तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।

                यस्यां हिरण्यं विन्देयं गामश्वं पुरुषानहम् ।।

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । महालक्ष्मीमावाहयामि, आवाहनार्थे ॐ पुष्पाणि समर्पयामि । (आवाहन के लिये पुष्प दे।)

 

आसन

तप्तकाञ्चनवर्णाभं मुक्तामणिविराजितम् ।

             अमलं कमलं दिव्यमासनं प्रतिगृह्यताम् ।।

            ॐ अश्वपूर्वां रथमध्यां हस्तिनादप्रमोदिनीम् ।

            श्रियं देवीमुप ह्वये श्रीर्मा देवी जुषताम् ।।

ॐ महालक्ष्म्यै नमः। आसनं समर्पयामि। (आसन के लिये कमलादि के पुष्प अर्पण करे।)

 

पाद्य

गङ्गादितीर्थसम्भूतं गन्धपुष्पादिभिर्युतम् ।

          पाद्यं ददाम्यहं देवि गृहाणाशु नमोऽस्तु ते ।।

ॐ कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारामार्द्रा ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम्।

     पद्मस्थितां पद्मवर्णां तामिहोप ह्वये श्रियम् ।।

    ॐ महालक्ष्म्यै नमः। पादयोः पाद्यं समर्पयामि। (चन्दन, पुष्पादियुक्त जल अर्पित करे ।)

 

अर्घ्य

अष्टगन्धसमायुक्तं स्वर्णपात्रप्रपूरितम् ।

          अर्घ्य गृहाण मद्दत्तं महालक्ष्मि नमोऽस्तु ते ॥

         ॐ चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देवजुष्टामुदाराम् ।

         तां पद्मनीमीं शरणं प्र पद्येऽलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणे ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । हस्तयोरर्घ्यं समर्पयामि। (अष्टगन्धमिश्रित जल अर्घ्यपात्र से देवी के हाथों में दे।)

 

आचमन

सर्वलोकस्य या शक्तिर्ब्रह्मविष्ण्वादिभिः स्तुता ।

               ददाम्याचमनं तस्यै महालक्ष्म्यै मनोहरम् ॥

              ॐ आदित्यवर्णे तपसोऽधि जातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽथ बिल्वः ।

              तस्य फलानि तपसा नुदन्तु या अन्तरा याश्च बाह्या अलक्ष्मीः ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः। आचमनीयं जलं समर्पयामि । (आचमन के लिये जल चढ़ाये।)

 

स्नान

मन्दाकिन्याः समानीतैर्हेमाम्भोरुहवासितैः ।

          स्नानं कुरुष्व देवेशि सलिलैश्च सुगन्धिभिः ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । स्नानं समर्पयामि। (स्नानीय जल अर्पित करे।)

स्नानान्ते आचमनीयं जलं समर्पयामि। (स्नान के बाद ‘ॐ महालक्ष्म्यै नमः’ ऐसा उच्चारण कर आचमन के लिये जल दे।)

 

दुग्ध-स्नान

कामधेनुसमुत्पन्नं सर्वेषां जीवनं परम् ।

                 पावनं यज्ञहेतुश्च पयः स्नानार्थमर्पितम् ।।

                ॐ पयः पृथिव्यां पय ओषधीषु पयो दिव्यन्तरिक्षे पयो धाः ।

  पयस्वतीः प्रदिशः सन्तु मह्यम् ।।

ॐ महालक्ष्म्यै नमः। पयः स्नानं समर्पयामि। पयःस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।

(गौ के कच्चे दूध से स्नान कराये, पुनः शुद्ध जल से स्नान कराये।)

 

दधिस्नान

पयसस्तु समुद्भूतं मधुराम्लं शशिप्रभम् ।

                 दध्यानीतं मया देवि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ।।

ॐ दधिक्राव्णो अकारिषं जिष्णोरश्वस्य वाजिनः सुरभि नो मुखा करत्प्र ण आयू षि तारिषत् ।

ॐ महालक्ष्म्यै नमः। दधिस्नानं समर्पयामि। दधिस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।

(दधिसे स्नान कराये, फिर शुद्ध जलसे स्नान कराये।)

 

घृतस्नान

नवनीतसमुत्पन्नं सर्वसंतोषकारकम् ।

               घृतं तुभ्यं प्रदास्यामि स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ।।

              ॐ घृतं घृतपावानः पिबत वसां वसापावानः पिबतान्तरिक्षस्य हविरसि स्वाहा।

              दिशः प्रदिश आदिशो विदिश उद्दिशो दिग्भ्यः स्वाहा ।।

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । घृतस्नानं समर्पयामि । घृतस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।

(घृत से स्नान कराये तथा फिर शुद्ध जलसे स्नान कराये।)

 

मधुस्नान

तरुपुष्पसमुद्भूतं सुस्वादु मधुरं मधु ।

                तेजः पुष्टिकरं दिव्यं स्नानार्थ प्रतिगृह्यताम् ।।

               ॐ मधु वाता ऋतायते मधु क्षरन्ति सिन्धवः। माध्वीर्नः सन्त्वोषधीः ।।

               मधु नक्तमुतोषसो मधुमत्पार्थिव रजः । मधु द्यौरस्तु नः पिता ।। 

               मधुमान्नो वनस्पतिर्मधुमाँ२ अस्तु सूर्यः । माध्वीर्गावो भवन्तु नः ।।

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । मधुस्नानं समर्पयामि। मधुस्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।

(मधु (शहद) से स्नान कराये, पुनः शुद्ध जलसे स्नान कराये।)

 

शर्करास्नान

इक्षुसारसमुद्भूता शर्करा पुष्टिकारिका ।

                    मलापहारिका दिव्या स्नानार्थ प्रतिगृह्यताम् ।।

                   ॐ अपारसमुद्वयस सूर्ये सन्त समाहितम्।

                 अपारसस्य यो रसस्तं वो गृह्णाम्युत्तममुपयामगृहीतोऽसीन्द्राय त्वा जुष्टं गृह्णाम्येष ते योनिरिन्द्राय त्वा जुष्टतमम् ।।

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । शर्करास्नानं समर्पयामि, शर्करास्नानान्ते पुनः शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि ।

(शर्करा से स्नान कराकर पश्चात् शुद्ध जल से स्नान कराये।)

 

पञ्चामृतस्नान

एकत्र मिश्रित पञ्चामृत से एकतन्त्र से निम्न मन्त्र से स्नान कराये-

                        पयो दधि घृतं चैव मधुशर्करयान्वितम् ।

                       पञ्चामृतं मयानीतं स्नानार्थं प्रतिगृह्यताम् ।।

                      ॐ पञ्च नद्यः सरस्वतीमपि यन्ति सस्रोतसः ।

                      सरस्वती तु पञ्चधा सो देशेऽभवत् सरित् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । पञ्चामृतस्नानं समर्पयामि, पञ्चामृत- स्नानान्ते शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि।

(पञ्चामृतस्नानके अनन्तर शुद्ध जलसे स्नान कराये।)

(यदि अभिषेक करना अभीष्ट हो तो शुद्ध जल या दुग्धादिसे ‘श्रीसूक्त’ का पाठ करते हुए अखण्ड जलधारासे स्नान (अभिषेक) कराये। मृण्मय प्रतिमा अखण्ड जलधारासे क्षरित न हो जाय इस आशयसे धातु की मूर्ति या द्रव्य लक्ष्मी पर अभिषेक किया जाता है, इसे पृथक् पात्र में कराना चाहिये ।)

 

गन्धोदकस्नान

मलयाचलसम्भूतं चन्दनागरुसम्भवम् ।

                        चन्दनं देवदेवेशि स्नानार्थ प्रतिगृह्यताम् ।।

ॐ महालक्ष्म्यै नमः। गन्धोदकस्नानं समर्पयामि। (गन्ध (चन्दन) मिश्रित जल से स्नान कराये ।)

 

शुद्धोदक-स्नान

मन्दाकिन्यास्तु यद्वारि सर्वपापहरं शुभम् ।

                          तदिदं कल्पितं तुभ्यं स्नानार्थ प्रतिगृह्यताम् ।।

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । शुद्धोदकस्नानं समर्पयामि । गङ्गाजल अथवा शुद्ध जल से स्नान कराये, तदनन्तर प्रतिमाका अङ्ग-प्रोक्षण कर (पोंछकर) उसे यथास्थान आसन पर स्थापित करे और निम्नरूप से उत्तराङ्ग-पूजन करे।)

आचमन – शुद्धोदकस्नानके बाद ‘ॐ महालक्ष्म्यै नमः’ ऐसा कहकर आचमनीय जल अर्पित करे ।)

 

वस्त्र

दिव्याम्बरं नूतनं हि क्षौमं त्वतिमनोहरम् ।

          दीयमानं मया देवि गृहाण जगदम्बिके ।।

         ॐ उपैतु मां देवसखः कीर्तिश्च मणिना सह ।

        प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन् कीर्तिमृद्धिं ददातु मे ।।

ॐ महालक्ष्म्यै नमः। वस्त्रं समर्पयामि, आचमनीयं जलं च समर्पयामि । (वस्त्र अर्पित करे, आचमनीय जल दे।)

 

उपवस्त्र

कञ्चकीमुपवस्त्रं च नानारत्नैः समन्वितम् ।

                गृहाण त्वं मया दत्तं मङ्गले जगदीश्वरि ।।

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । उपवस्त्रं समर्पयामि, आचमनीयं जलं च समर्पयामि। (कञ्चुकी आदि उत्तरीय वस्त्र चढ़ाये, आचमन के लिये जल दे।)

 

मधुपर्क

कांस्ये कांस्येन पिहितो दधिमध्वाज्यसंयुतः ।

               मधुपर्को मयानीतः पूजार्थं प्रतिगृह्यताम् ।।

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । मधुपर्क समर्पयामि, आचमनीयं जलं च समर्पयामि । (काँस्य पात्रमें स्थित मधुपर्क समर्पित कर आचमनके लिये जल दे।)

 

आभूषण

रत्नकङ्कणवैदूर्यमुक्ताहारादिकानि च ।

               सुप्रसन्नेन मनसा दत्तानि स्वीकुरुष्व भोः ॥

               क्षुत्पिपासामलां ज्येष्ठामलक्ष्मीं नाशयाम्यहम् ।

              अभूतिमसमृद्धिं च सर्वां निर्णद मे गृहात् ।।

ॐ महालक्ष्म्यै नमः। नानाविधानि कुण्डलकटकादीनि आभूषणानि समर्पयामि । (आभूषण समर्पित करे ।)

 

गन्ध

श्रीखण्डं चन्दनं दिव्यं गन्धाढ्यं सुमनोहरम् ।

          विलेपनं सुरश्रेष्ठे चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ।।

         ॐ गन्धद्वारां दुराधर्षां नित्यपुष्टां करीषिणीम् ।

         ईश्वरीं सर्वभूतानां तामिहोप ह्वये श्रियम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । गन्धं समर्पयामि। (अनामिका अँगुली से केसरादिमिश्रित चन्दन अर्पित करे।)

 

रक्तचन्दन

रक्तचन्दनसम्मिश्र पारिजातसमुद्भवम् ।

                  मया दत्तं महालक्ष्मि चन्दनं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । रक्तचन्दनं समर्पयामि। (अनामिका से रक्त चन्दन चढ़ाये ।)

 

सिन्दूर

सिन्दूरं रक्तवर्णं च सिन्दूरतिलकप्रिये ।

             भक्त्या दत्तं मया देवि सिन्दूरं प्रतिगृह्यताम् ।।

            ॐ सिन्धोरिव प्राध्वने शूधनासो वात प्रमियः पतयन्ति यह्वाः ।

            घृतस्य धारा अरुषो न वाजी काष्ठा भिन्दन्नूर्मिभिः पिन्वमानः ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । सिन्दूरं समर्पयामि। (देवीजी को सिन्दूर चढ़ाये ।)

 

कुङ्कुम

कुङ्कुमं कामदं दिव्यं कुङ्कुमं कामरूपिणम् ।

               अखण्डकामसौभाग्यं कुङ्कुमं प्रतिगृह्यताम् ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । कुङ्कुमं समर्पयामि। (कुङ्कुम अर्पित करे ।)

 

पुष्पसार (इतर)

तैलानि च सुगन्धीनि द्रव्याणि विविधानि च ।

                           मया दत्तानि लेपार्थ गृहाण परमेश्वरि ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । सुगन्धिततैलं पुष्पसारं च समर्पयामि। (सुगन्धित तेल एवं इतर चढ़ाये ।)

 

अक्षत

अक्षताश्च सुरश्रेष्ठे कुङ्कुमाक्ताः सुशोभिताः ।

            मया निवेदिता भक्त्या गृहाण परमेश्वरि ।।

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । अक्षतान् समर्पयामि । (कुङ्कुमाक्त अक्षत अर्पित करे ।)

 

पुष्य एवं पुष्पमाला

माल्यादीनि सुगन्धीनि मालत्यादीनि वै प्रभो ।

                               मयानीतानि पुष्याणि पूजार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥

                              ॐ मनसः काममाकूतिं वाचः सत्यमशीमहि ।

                              पशूनां रूपमन्नस्य मयि श्रीः श्रयतां यशः ।।

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । पुष्पं पुष्पमालां च समर्पयामि । (देवीजी को पुष्पों तथा पुष्पमालाओं से अलङ्कृत करे, यथासम्भव लाल कमल के फूलों से पूजा करे ।)

 

दूर्वा

विष्ण्वादिसर्वदेवानां प्रियां सर्वसुशोभनाम् ।

        क्षीरसागरसम्भूते दूर्वां स्वीकुरु सर्वदा ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः । दूर्वाङ्करान् समर्पयामि । (दूर्वाङ्कर अर्पित करे।)

 

अङ्गपूजा

रोली, कुङ्कुममिश्रित अक्षत-पुष्पों से निम्नाङ्कित एक-एक नाम-मन्त्र पढ़ते हुए अङ्गपूजा करे –

ॐ चपलायै नमः, पादौ पूजयामि ।

ॐ चञ्चलायै नमः, जानुनी पूजयामि ।

ॐ कमलायै नमः, कटिं पूजयामि ।

ॐ कात्यायन्यै नमः, नाभिं पूजयामि ।

ॐ जगन्मात्रे नमः, जठरं पूजयामि ।

ॐ विश्ववल्लभायै नमः, वक्षःस्थलं पूजयामि ।

ॐ कमलवासिन्यै नमः, हस्तौ पूजयामि ।

ॐ पद्माननायै नमः, मुखं पूजयामि ।

ॐ कमलपत्राक्ष्यै नमः, नेत्रत्रयं पूजयामि ।

ॐ श्रियै नमः, शिरः पूजयामि ।

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, सर्वाङ्गः पूजयामि ।

 

अष्टसिद्धि-पूजन

इस प्रकार अङ्गपूजा के अनन्तर पूर्वादि-क्रम से आठों दिशाओं में आठों सिद्धियों की पूजा कुङ्कु‌माक्त अक्षतों से देवी महालक्ष्मी के पास निम्नाङ्कित मन्त्रों से करे –
१-ॐ अणिम्ने नमः (पूर्वे), २-ॐ महिम्ने नमः (अग्निकोणे), ३-ॐ गरिम्णे नमः (दक्षिणे), ४-ॐ लघिम्ने नमः (नैऋत्ये), ५-ॐ प्राप्त्यै नमः (पश्चिमे), ६-ॐ प्राकाम्यै नमः (वायव्ये), ७-ॐ ईशितायै नमः (उत्तरे) तथा ८-ॐ वशितायै नमः (ऐशान्याम्) ।

अष्टलक्ष्मी-पूजन

तदनन्तर पूर्वादि-क्रम से आठों दिशाओं में महालक्ष्मी के पास कुङ्कुमाक्त अक्षत तथा पुष्पों से एक-एक नाम-मन्त्र पढ़ते हुए आठ लक्ष्मियों का पूजन करे –
१-ॐ आद्यलक्ष्म्यै नमः, २-ॐ विद्यालक्ष्म्यै नमः, ३-ॐ सौभाग्यलक्ष्म्यै नमः, ४-ॐ अमृतलक्ष्यै नमः, ५-ॐ कामलक्ष्म्यै नमः, ६-ॐ सत्यलक्ष्म्यै नमः, ७-ॐ भोगलक्ष्म्यै नमः ८-ॐ योगलक्ष्म्यै नमः ।

 

धूप

वनस्पतिरसोद्भूतो गन्धाढ्यः सुमनोहरः ।

        आग्रेयः सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ॥

        ॐ कर्दमेन प्रजा भूता मयि संभव कर्दम ।

        श्रियं वासय मे कुले मातरं पद्ममालिनीम् ।।

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, धूपमाघ्रापयामि। (धूप आघ्रापित करे।)

 

दीप

कार्यासवर्तिसंयुक्तं घृतयुक्तं मनोहरम्।

         तमोनाशकरं दीपं गृहाण परमेश्वरि ।।

        ॐ आपः सृजन्तु स्निग्धानि चिक्लीत वस मे गृहे ।

         निच देवीं मातरं श्रियं वासय मे कुले ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः। दीपं दर्शयामि। (दीपक दिखाये और फिर हाथ धो ले।)

 

नैवेद्य

नैवेद्यं गृह्यतां देवि भक्ष्यभोज्यसमन्वितम् ।

           षड्रसैरन्वितं दिव्यं लक्ष्मि देवि नमोऽस्तु ते ।।

           ॐ आर्द्रा पुष्करिणीं पुष्टिं पिङ्गलां पद्ममालिनीम् ।

           चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आ वह ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः। नैवेद्यं निवेदयामि, मध्ये पानीयम्, उत्तरापोऽशनार्थ हस्तप्रक्षालनार्थं मुखप्रक्षालनार्थं च जलं समर्पयामि ।

(देवीजीको नैवेद्य निवेदित कर पानीय जल एवं हस्तादि प्रक्षालन के लिये भी जल अर्पित करे।)

 

करोद्वर्तन

‘ॐ महालक्ष्म्यै नमः’ यह कहकर करोद्वर्तनके लिये हाथों में चन्दन उपलेपित करे ।

 

आचमन

शीतलं निर्मलं तोयं कर्पूरेण सुवासितम् ।

               आचम्यतां जलं होतत् प्रसीद परमेश्वरि ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, आचमनीयं जलं समर्पयामि। (नैवेद्य निवेदन करनेके अनन्तर आचमनके लिये जल दे।)

 

ऋतुफल

फलेन फलितं सर्व त्रैलोक्यं सचराचरम् ।

                तस्मात् फलप्रदानेन पूर्णाः सन्तु मनोरथाः ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, अखण्डऋतुफलं समर्पयामि, आचमनीयं त्र समर्पयामि। (ऋतुफल अर्पित करे तथा आचमनके लिये जल दे।)

 

ताम्बूल-पूगीफल

पूगीफलं महद्दिव्यं नागवल्लीदलैर्युतम् ।

                             जलं एलाचूर्णादिसंयुक्तं ताम्बूलं प्रतिगृह्यताम् ।।

                            ॐ आर्द्रा यः करिणीं यष्टिं सुवर्णां हेममालिनीम् ।

                           सूर्या हिरण्मयीं लक्ष्मीं जातवेदो म आवह ॥

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, मुखवासार्थे ताम्बूलं समर्पयामि। (एला, लवंग, पूगीफलयुक्त ताम्बूल अर्पित करे।)

 

दक्षिणा

हिरण्यगर्भगर्भस्थं हेमबीजं विभावसोः ।

               अनन्तपुण्यफलदमतः शान्तिं प्रयच्छ ये ॥

              ॐ तां म आ वह जातवेदो लक्ष्मीमनपगामिनीम् ।

              यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् ‌विन्देयं पुरुषानहम् ।।

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, दक्षिणां समर्पयामि। (दक्षिणा चढ़ाये।)

 

नीराजन

चक्षुदै सर्वलोकानां तिमिरस्य निवारणम् ।

              आर्तिक्यं कल्पितं भक्त्या गृहाण परमेश्वरि ।।

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, नीराजनं समर्पयामि। (आरती करे तथा जल छोड़े, हाथ धो ले।)

 

प्रदक्षिणा

यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च ।

                तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिणपदे पदे ।।

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, प्रदक्षिणां समर्पयामि। (प्रदक्षिणा करे।)

 

प्रार्थना

हाथ जोड़कर प्रार्थना करे-

सुरासुरेन्द्रादिकिरीटमौक्तिकै-

                   र्युक्तं सदा यत्तव पादपङ्कजम् ।

परावरं पातु वरं सुमङ्गलं

                  नमामि भक्त्याखिलकामसिद्धये ।।

भवानि त्वं महालक्ष्मीः सर्वकामप्रदायिनी ।

सुपूजिता प्रसन्ना स्यान्महालक्ष्मि ! नमोऽस्तु ते ॥

नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरिप्रिये ।

या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात् त्वदर्चनात् ।।

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, प्रार्थनापूर्वकं नमस्कारान् समर्पयामि । (प्रार्थना करते हुए नमस्कार करे।)

समर्पण

पूजनके अन्तमें – ‘कृतेनानेन पूजनेन भगवती महालक्ष्मीदेवी प्रीयताम्, न मम।’

(यह वाक्य उच्चारण कर समस्त पूजन-कर्म भगवती महालक्ष्मी को समर्पित करे तथा जल गिराये ।)

 

भगवती महालक्ष्मी के यथालब्धोपचार पूजन के अनन्तर महालक्ष्मी- पूजन के अङ्ग-रूप, श्रीदेहलीविनायक, मसिपात्र, लेखनी, सरस्वती, कुबेर, तुला-मान तथा दीपकों की पूजा की जाती है। संक्षेपमें उन्हें भी यहाँ दिया जा रहा है। सर्वप्रथम ‘देहलीविनायक’ की पूजा की जाती है।

 

देहलीविनायक-पूजन

व्यापारिक प्रतिष्ठानादि में दीवालों पर ‘ॐ श्रीगणेशाय नमः’, ‘स्वस्तिक चिह्न’, ‘शुभ-लाभ’ आदि माङ्गलिक एवं कल्याणकर शब्द सिन्दूरादि से लिखे जाते हैं। इन्हीं शब्दों पर ‘ॐ देहलीविनायकाय नमः’ इस नाम-मन्त्रद्वारा गन्ध-पुष्पादि से पूजन करे।

 

श्रीमहाकाली (दावात) – पूजन

स्याही-युक्त दावात को भगवती महालक्ष्मी के सामने पुष्प तथा अक्षतपुञ्ज में रखकर उसमें सिन्दूर से स्वस्तिक बना दे तथा मौली लपेट दे। ‘ॐ श्रीमहाकाल्यै नमः’ इस नाम-मन्त्र से गन्ध-पुष्पादि पञ्चोपचारों से या षोडशोपचारों से दावात में भगवती महाकाली का पूजन करे और अन्त में इस प्रकार प्रार्थना-पूर्वक उन्हें प्रणाम करे –
  कालिके ! त्वं जगन्मातर्मसिरूपेण वर्तसे ।
                                                उत्पन्ना त्वं च लोकानां व्यवहारप्रसिद्धये ।।
                                या कालिका रोगहरा सुवन्द्या भक्तैः समस्तैर्व्यवहारदक्षैः ।

                               जनैर्जनानां भयहारिणी च सा लोकमाता मम सौख्यदास्तु ।।  

 

लेखनी-पूजन

लेखनी (कलम) पर मौली बाँधकर सामने रख ले और –

लेखनी निर्मिता पूर्वं ब्रह्मणा परमेष्ठिना ।

लोकानां च हितार्थाय तस्मात्तां पूजयाम्यहम् ॥

‘ॐ लेखनीस्थायै देव्यै नमः’ इस नाम-मन्त्र द्वारा गन्ध-पुष्पाक्षत आदिसे पूजन कर इस प्रकार प्रार्थना करे-

शास्त्राणां व्यवहाराणां विद्यानामाप्नुयाद्यतः ।

अतस्त्वां पूजयिष्यामि मम हस्ते स्थिरा भव ।।

 

सरस्वती – (पञ्जिका-बही-खाता) पूजन

पञ्जिका – बही, बसना तथा थैली में रोली या केसरयुक्त चन्दन से स्वस्तिक चिह्न बनाये तथा थैली में पाँच हल्दी की गाँठें, धनिया, कमलगट्टा, अक्षत, दूर्वा और द्रव्य रखकर उसमें सरस्वती का पूजन करे। सर्वप्रथम सरस्वतीजी का ध्यान इस प्रकार करे-

ध्यान – या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता

           या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना ।

           या ब्रह्माच्युतशङ्करप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता

           सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा ।।

‘ॐ वीणापुस्तकधारिण्यै श्रीसरस्वत्यै नमः’ – इस नाम- मन्त्र से गन्धादि उपचारों द्वारा पूजन करे ।

 

कुबेर-पूजन

तिजोरी अथवा रुपये रखे जाने वाले संदूक आदि को स्वस्तिकादि से अलङ्कत कर उसमें निधिपति कुबेर का आवाहन करे-
                                                                              आवाहयामि देव त्वामिहायाहि कृपां कुरु ।

                                                                              कोशं वर्द्धय नित्यं त्वं परिरक्ष सुरेश्वर ।।

आवाहनके पश्चात् ‘ॐ कुबेराय नमः’ इस नाम-मन्त्र से यथालब्धोपचार-पूजन कर अन्त में इस प्रकार प्रार्थना करे –

 धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।

भगवन् त्वत्प्रसादेन धनधान्यादिसम्पदः ।।

इस प्रकार प्रार्थना कर पूर्वपूजित हल्दी, धनिया, कमलगट्टा, द्रव्य, दूर्वादि से युक्त थैली तिजोरी में रखे।

 

तुला तथा मान-पूजन

सिन्दूर से तराजू आदि पर स्वस्तिक बना ले। मौली लपेटकर तुलाधिष्ठातृदेवता का इस प्रकार ध्यान करना चाहिये –

नमस्ते सर्वदेवानां शक्तित्वे सत्यमाश्रिता ।

साक्षीभूता जगद्धात्री निर्मिता विश्वयोनिना ।।

ध्यानके बाद ‘ॐ तुलाधिष्ठातृदेवतायै नमः’ इस नाम-मन्त्र से गन्धाक्षतादि उपचारों द्वारा पूजन कर नमस्कार करे।

 

दीपमालिका – (दीपक-) पूजन

किसी पात्र में ग्यारह, इक्कीस या उससे अधिक दीपकों को प्रज्वलित कर महालक्ष्मी के समीप रखकर उस दीप-ज्योतिका ‘ॐ दीपावल्यै नमः’ इस नाम-मन्त्र से गन्धादि उपचारों द्वारा पूजन कर इस प्रकार प्रार्थना करे-
                                                           

                                                            त्वं ज्योतिस्त्वं रविश्चन्द्रो विद्युदग्निश्च तारकाः ।

                                                            सर्वेषां ज्योतिषां ज्योतिर्दीपावल्यै नमो नमः ॥

दीपमालिकाओं का पूजन कर अपने आचार के अनुसार संतरा, ईख, पानीफल, धान का लावा इत्यादि पदार्थ चढ़ाये। धान का लावा (खील) गणेश, महालक्ष्मी तथा अन्य सभी देवी-देवताओं को भी अर्पित करे। अन्त में अन्य सभी दीपकों को प्रज्वलित कर सम्पूर्ण गृह अलङ्कृत करें।

 

प्रधान आरती

इस प्रकार भगवती महालक्ष्मी तथा उनके सभी अङ्ग-प्रत्यङ्गों एवं उपाङ्गों का पूजन कर लेने के अनन्तर प्रधान आरती करनी चाहिये। इसके लिये एक थाली में स्वस्तिक आदि माङ्गलिक चिह्न बनाकर अक्षत तथा पुष्पों के आसन पर किसी दीपक आदि में घृतयुक्त बत्ती प्रज्वलित करे। एक पृथक् पात्र में कर्पूर भी प्रज्वलित कर वह पात्र भी थाली में यथास्थान रख ले, आरती-थालका जल से प्रोक्षण कर ले। पुनः आसन पर खड़े होकर अन्य पारिवारिक जनों के साथ घण्टानादपूर्वक निम्न आरती गाते हुए साङ्ग-महालक्ष्मीजीकी मङ्गल आरती करे-

                                                                              श्रीलक्ष्मीजीकी आरती

                                                         ॐ जय लक्ष्मी माता, (मैया) जय लक्ष्मी माता ।

                                                         तुमको निसिदिन सेवत हर-विष्णू-धाता ॥ ॐ ॥

                                                         उमा, रमा, ब्रह्माणी, तुम ही जग-माता ।

                                                         सूर्य-चन्द्रमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ।। ॐ ॥

                                                         दुर्गारूप निरञ्जनि, सुख-सम्पति-दाता ।

                                                        जो कोइ तुमको ध्यावत, ऋधि-सिधि-धन पाता ॥ ॐ ॥

                                                        तुम पाताल-निवासिनि, तुम ही शुभदाता ।

                                                        कर्म-प्रभाव-प्रकाशिनि, भवनिधिकी त्राता ।। ॐ ॥

                                                        जिस घर तुम रहती, तहँ सब सद्‌गुण आता ।

                                                        सब सम्भव हो जाता, मन नहिं घबराता ।। ॐ ॥

                                                        तुम बिन यज्ञ न होते, वस्त्र न हो पाता।

                                                        खान-पानका वैभव सब तुमसे आता ॥ ॐ ॥

                                                       शुभ-गुण-मन्दिर सुन्दर, क्षीरोदधि-जाता ।

                                                       रत्न चतुर्दश तुम बिन कोई नहिं पाता ॥ ॐ ॥

                                                       महालक्ष्मी (जी) की आरति, जो कोई नर गाता ।

                                                       उर आनन्द समाता, पाप उतर जाता ॥ ॐ ॥

 

मन्त्र-पुष्पाञ्जलि

दोनों हाथोंमें कमल आदिके पुष्प लेकर हाथ जोड़े और निम्न मन्त्रोंका पाठ करे –

 

ॐ यज्ञेन यज्ञमयजन्त देवास्तानि धर्माणि प्रथमान्यासन् ।

ते ह नाकं महिमानः सचन्त यत्र पूर्वे साध्याः सन्ति देवाः ॥

ॐ राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने नमो वयं वैश्रवणाय कुर्महे ।

स मे कामान् कामकामाय मह्यं कामेश्वरो वैश्रवणो ददातु ॥

कुबेराय वैश्रवणाय महाराजाय नमः ।

ॐ स्वस्ति साम्राज्यं भौज्यं स्वाराज्यं वैराज्यं पारमेष्ट्यं राज्यं महाराज्यमाधिपत्यमयं समन्तपर्यायी स्यात् सार्वभौमः सार्वायुषान्ता- दापरार्धात् । पृथिव्यै समुद्रपर्यन्ताया एकराडिति तदप्येष श्लोकोऽभिगीतो मरुतः परिवेष्टारो मरुत्तस्यावसन् गृहे। आविक्षितस्य कामप्रेर्विश्वेदेवाः सभासद इति ।

ॐ विश्वतश्चक्षुरुत विश्वतोमुखो विश्वतोबाहुरुत विश्वतस्यात् ।

सं बाहुभ्यां धमति सं पतत्रैर्घावाभूमी जनयन् देव एकः ॥

महालक्ष्म्यै च विद्महे विष्णुपल्यै च धीमहि तन्नो लक्ष्मीः प्रचोदयात् ।

ॐ या श्रीः स्वयं सुकृतिनां भवनेष्वलक्ष्मीः पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः ।

श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि विश्वम् ।।

ॐ महालक्ष्म्यै नमः, मन्त्रपुष्पाञ्जलिं समर्पयामि। (हाथमें लिये फूल महालक्ष्मीपर चढ़ा दे।) प्रदक्षिणा कर साष्टाङ्ग प्रणाम करे, पुनः हाथ जोड़कर क्षमा-प्रार्थना करे-

 

क्षमा-प्रार्थना

                       नमस्ते सर्वदेवानां वरदासि हरिप्रिये ।

                      या गतिस्त्वत्प्रपन्नानां सा मे भूयात्त्वर्द्धनात् ।।

                     आवाहनं न जानामि न जानामि विसर्जनम् ।

                     पूजां चैव न जानामि क्षमस्व परमेश्वरि ।।

                     मन्त्रहीनं क्रियाहीनं भक्तिहीनं सुरेश्वरि ।

                     यत्पूजितं मया देवि परिपूर्णं तदस्तु मे ॥

                    त्वमेव माता च पिता त्वमेव

                               त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।

                   त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव

                             त्वमेव सर्वं मम देवदेव ॥

                  पापोऽहं पापकर्माहं पापात्मा पापसम्भवः ।

                  त्राहि मां परमेशानि सर्वपापहरा भव ॥

                 अपराधसहस्राणि क्रियन्तेऽहर्निशं मया ।

                 दासोऽयमिति मां मत्वा क्षमस्व परमेश्वरि ।।

सरसिजनिलये सरोजहस्ते धवलतरांशुकगन्धमाल्यशोभे ।

भगवति हरिवल्लभे मनोज्ञे त्रिभुवनभूतिकरि प्रसीद मह्यम् ॥

पुनः प्रणाम करके ‘ॐ अनेन यथाशक्त्यर्चनेन श्रीमहालक्ष्मीःप्रसीदतु’ यह कहकर जल छोड़ दे। ब्राह्मण एवं गुरुजनोंको प्रणाम कर चरणामृत तथा प्रसाद वितरण करे ।

 

विसर्जन

पूजनके अन्तमें हाथमें अक्षत लेकर नूतन गणेश  एवं महालक्ष्मीकी प्रतिमाको छोड़कर अन्य सभी आवाहित, प्रतिष्ठित एवं पूजित देवताओंको अक्षत छोड़ते हुए निम्न मन्त्रसे विसर्जित करे –
                                                                             यान्तु देवगणाः सर्वे पूजामादाय मामकीम् ।

                                                                             इष्टकामसमृद्ध्यर्थं पुनरागमनाय च ॥

 

 

Diwali Pooja लक्ष्मी पूजा विधि के कुछ महत्‍वपूर्ण प्रश्‍न

प्र.1 लक्ष्मी जी की पूजा कैसे की जाती है?

उ. लक्ष्मी जी की पूजा विधि ऊपर मंत्रो के साथ दी गई है।

 

प्र.2 लक्ष्मी जी की पूजा में क्या नहीं चढ़ाना चाहिए?

उ. लक्ष्मी मां को तुलसी और दुर्वा भेंट करना शुभ नहीं माना जाता है। मां लक्ष्मी को सफ़ेद रंग के फूल भी नहीं चढ़ाने चाहिए।

 

प्र.3 मां लक्ष्मी का प्रिय मंत्र कौन सा है?

उ. ऊँ श्रीं ह्रीं श्रीं कमले कमलालये प्रसीद प्रसीद श्रीं ह्रीं श्रीं ऊँ महालक्ष्मी नम:। यह मां लक्ष्मी का बीज मंत्र है।

 

प्र.4 लक्ष्मी पूजा से पहले क्या होता है?

उ. पूजा स्थल पर रंगोली बनानी चाहिए। पूजा चौकी पर कच्चे चावल रखने चाहिए। लक्ष्मी जी की मूर्ति को गणेश जी के दाहिनी ओर रखना चाहिए। दो बड़े दीपक रखने चाहिए, एक में तेल और दूसरे में घी भरना चाहिए। एक साफ़ स्वच्छ कलश में पानी भरकर रखना चाहिए।

 

Diwali Shubhkamnaye 2025 – धन ऐश्वर्य की देवी माता महालक्ष्मी जी एवं धन के इष्ट देवता कुबेर …

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