Pradosh Vrat Katha – प्रदोष व्रत कथा, नाम और उसके महत्व, त्रयोदशी व्रत कथा

 

Pradosh Vrat Katha PDF
Trayodashi Vrat Katha in Hindi
Pradosh Vrat Kahani in Hindi

 

त्रयोदशी (प्रदोष व्रत) के नाम, कथा और उसके महत्व

सप्ताह के सातों दिनों के नाम पर प्रदोष व्रत के नाम भी रखे गए है सभी व्रतों का अपना महत्व अलग-अलग होता है उनका फल भी अलग-अलग होता है। त्रयोदशी के दिन जो दिन पड़ता हो उसी का (त्रयोदशी प्रदोष व्रत) करना चाहिए और उसी दिन की कथा पढ़नी व सुननी चाहिए। तो इस प्रदोष व्रत के कथा इस प्रकार है:-

 

रवि प्रदोष व्रत कथा

एक गाँव में एक गरीब ब्राह्मण रहता था। उसके पत्‍नी को धर्म के प्रति बड़ी ही निष्ठ थी वह त्रयोदशी (प्रदोष व्रत) करती थी। उस गरीब ब्राह्मण को एक बेटा भी था। एक बार की बात है उसका बेटा गंगाजी में स्नान करने के लिए गया। वह स्नान करने के लिए जा ही रहा था की उसे रास्ते में चोरों ने घेर लिया और डरा धमाकर उससे पूछने लगे कि बताओ की तुम्हारे पिता ने गुप्त धन कहां रखा है?

उस ब्राह्मण के लड़के ने बताया कि वह बहुत ही गरीब हैं। तो उनसे पास गुप्त धन कहां से आयेगा। उन चोरों को उस लड़के पर दया आ गयी और  उसकी हालत पर तरस खाकर उसे छोड़ दिया। तो वह बालक फिर वहाँ से चल दिया। चलते-चलते वह बालक बहुत ही ज्यादा थक गया और वह बरगद के एक वृक्ष के नीचे बैठ गया थकान की वजह से उसे नींद आ गया और वह वही पर सो गया।

तभी उस शहर की पुलिस चोरों की तलाश कर रहे थे तलाश करते-करते पुलिस वहाँ पर आ गई। पुलिस को लगा की वह बालक कोई चोर है और वह उस ब्राह्मण के बालक को चोर समझकर पकड़ लिया और राजा के पास लेकर गए। राजा ने उस बालक के बात को बिना सुने ही उसे कारागार में डाल दिया। जब उस ब्राह्मण का लड़का घर नहीं लौटा तो उसकी माँ बहुत ही चिंता करने लगी।

अगले दिन प्रदोष व्रत था। उसकी माँ को तुरंत प्रदोष का ध्यान आया और उन्होंने प्रदोष का व्रत किया। वह मन ही मन अपने बेटे की सलामती के लिए भगवान शंकर से प्रार्थना करने लगी। उसी रात राजा को यह सपना आया कि जिस बालक को उन्होंने कारागार में डाला है वह बालक निर्दोष है। यदि राजा उस बालक को नहीं छोड़ेंगे तो राजा का समस्त राज्य और वैभव नष्ट हो जाएगा।

जैसे ही सुबह हुआ तो राजा ने उस बालक को बुलवाया। बालक ने राजा को सभी सच्चाई बताई। सच सुनने के बाद राजा ने उस बालक के माता-पिता को दरबार में बुलवाया। गरीब ब्राह्मण और उसकी पत्नी बहुत ही डरे हुए थे उन्हें डरा हुआ देखकर राजा ने मुस्कुराते हुए कहा- ‘तुम्हारा बालक निडर और निर्दोष है । तुम्हारी दरिद्रता और गरीबी के कारण हम तुम्हें पांच गांव दान में देते हैं। इस तरह ब्राह्मण, उसकी पत्नी और उनका बेटा हँसी-खुशी से जीवन व्यतीत करने लगे। भगवान शिव जी की कृपा से उनकी सारी दरिद्रता दूर हो गई।

 

Pradosh / Trayodashi Vrat – प्रदोष / त्रयोदशी व्रत पूजन विधि, पूजन सामग्री, विधि विधान के अनुसार प्रदोष व्रत विधि

 

सोम प्रदोष व्रत कथा

सभी प्रदोष व्रतों में सोम प्रदोष व्रत सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना गया है। भगवान शंकर जी को प्रसन्‍न करने के लिए प्रदोष व्रत रखा जाता है। जब यह प्रदोष व्रत सोमवार के दिन पड़ता है तो इसका महत्व और अधिक बढ़ जाती है। अगर आप सोम प्रदोष व्रत करते है  तो इस दिन सोम प्रदोष व्रत के कथा को सुनना या पढना चाहिए। तो सोम प्रदोष व्रत के कथा इस प्रकार है जो नीचे दिया गया है:-

एक गाँव में एक बहुत ही गरीब ब्राह्मणी रहती थी। उसके पति स्वर्गवास हो गया था जिसके वजह से वह बहुत ही दुखी रहती थी। उसका अब कोई सहारा नहीं था। उस ब्राह्मणी के पुत्र थे। इसलिए वह सुबह होते ही वह अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी। भिक्षा माँग कर ही वह अपना और अपने पुत्र का पेट पालती थी।

एक दिन ब्राह्मणी भिक्षा माँग कर अपने घर वापस आ रही थी तो उसे रास्ते में एक लड़का घायल अवस्था में दर्द से कराहता हुआ मिला। उस ब्राह्मणी को उस लड़के पर दया आ गई उसने उस लड़के को अपने साथ घर ले आई। वह लड़का विदर्भ का राजकुमार था। शत्रु सैनिकों ने उसके राज्य पर आक्रमण कर उसके पिता को बन्दी बना लिया था और राज्य पर नियंत्रण कर लिया था जिसके वजह से वह दर-दर भटक रहा था। वह राजकुमार उस ब्राह्मण के घर उसके पुत्र और ब्राह्मणी के साथ उसके घर में रहने लगा।

एक दिन की बात है जब एक अंशुमति नामक एक गंधर्व कन्या ने उस राजकुमार को देखा और उस पर मोहित हो गई। उस कन्या ने उस राजकुमार के बारे अपने माता-पिता को बताई और अगले ही दिन अंशुमति अपने माता-पिता को राजकुमार से मिलाने के लिए लाई। उसके माता-पिता को भी वह राजकुमार बहुत ही अच्छा लगा। कुछ दिनों बाद उस कन्या के माता-पिता को शंकर भगवान ने स्वप्न में कहा की  कि राजकुमार और अंशुमति का विवाह कर दें।

शंकर भगवान के आदेश को मानकर उन्होंने उन दोनों का विवाह करा दिया। ब्राह्मणी प्रदोष व्रत करती थी। उसके प्रदोष व्रत के प्रभाव से और गंधर्वराज की सेना की सहायता से राजकुमार ने विदर्भ से शत्रुओं को खदेड़ दिया और पिता के राज्य को पुनः प्राप्त कर आनन्दपूर्वक रहने लगा। उस राजकुमार ने उस ब्राह्मणी के पुत्र को अपना प्रधानमंत्री बनाया। जिस तरह ब्राह्मणी के प्रदोष व्रत के माहात्म्य से राजकुमार, ब्राह्मणी और उसके पुत्र के सुख भोगने के दिन आ गए उसी तरह भगवान भोलेनाथ अपने सभी भक्तों के मनोकामना को पूर्ण करते हैं।

 

मंगल प्रदोष व्रत कथा

एक गाँव में एक बूढी औरत अपने पुत्र के साथ रहा करती थी। उसके पुत्र का मंगलिया था। वह बूढी औरत नियमों की बड़ी ही पक्की थी। उस बूढी औरत को हनुमान जी के प्रति बहुत ही आस्था थी और वह हर मंगलवार बड़े ही कठिन नियमों का पालन करती थी। मंगलवार के दिन वह न तो अपना घर लीपती थी और न ही मिटटी को खोदा करती। वह बूढी औरत मंगलवार का व्रत करती थी।

व्रत करते हुए उसे बहुत ज्यादा समय हो चुका था। वह बूढी औरत बड़ी ही श्रद्धा से और भक्ति भाव से हनुमान जी की पूजा करती थी। उसकी इस निष्ठा और विश्वास के कारण हनुमान जी बहुत ही प्रसन्न हुए और उन्होंने उसकी परीक्षा लेने का मन बनाया। परीक्षा लेने के लिए हनुमान जी साधू का भेष धारण कर लिया और उस बूढी औरत के घर आए। उसके घर आने के बाद फिर वे कहने लगे कि यहाँ कोई हनुमान भक्त है जो मेरी सहायता करे? साधू की आवाज़ को सुन वह बूढी औरत घर के बाहर निकल आई और बोली आज्ञा करिए महाराज !

आपकी किस प्रकार से सहायता कर सकती हूँ? उस साधु भेष के हनुमान जी बूढी औरत से बोले कि मैं बहुत भूखा हूँ। तुम मुझे भोजन कराओ। भोजन कराने से तुम यह जमीन लीप दो। साधु की बात सुनकर बूढी औरत बड़ी सोच में पड़ गई क्योंकि नियम के अनुसार वह हर मंगलवार को जमीन नहीं लीपा करती है। कुछ देर सोचने के बाद साधु के सामने हाथ जोड़कर बोली हें महाराज जी! यह कम तो मैं नहीं कर सकती कृपया आप मुझे कोई दूसरा काम करने को आज्ञा दे दीजिये। उसे मैं किसी भी हालत में पूरा कर दूँगी।

इसके बाद हनुमान जी ने तीन बार प्रतिज्ञा की और फिर कहा कि तू! अपने बेटे को बुला मैं उसकी पीठ पर आग जलाकर भोजन करना चाहता हूँ। साधु के मुँह से ऐसी बात को सुनकर बूढी औरत के होश उड़ गए। उसके सोचने समझने की क्षमता खत्म हो गई लेकिन वह साधु की आज्ञा को तो टाल भी नहीं सकती थी। अपनी प्रतिज्ञा के चलते उसने अपने पुत्र मंगलिया को बुलाया और साधु को दे दिया। बूढी औरत की प्रतिज्ञाबद्धता देख हनुमान जी इतनी आसानी से हार मानने वालों में से नहीं थे।

उन्होंने बूढी औरत की और प्रतीक्षा लेनी चाही। फिर उन्होंने उसी बूढी औरत के हाथों से ही मंगलिया को पेट के बल लिटवाया और साथ ही पीठ पर आग भी जलने के लिए बोला। अपने बेटे की पीठ पर आग जलाने के बाद वह बूढी औरत बड़े ही दुःखी मन से घर के अंदर चली गई। कुछ समय बीतने के बाद साधु ने बूढी औरत से कहा कि अपने बेटे को बुलाओ ताकि वह भोजन का भी भोग ले। साधु की इस बात को सुनकर पहले तो बूढी औरत को विश्वास ही नहीं हुआ। बूढी औरत ने रोते-रोते अपने आंसू पौंछे और बोली आप मुझे मेरे बेटे का नाम लेकर कष्ट न दें।

इसके बाद भी साधु नहीं माने और बूढी औरत ने मंगलिया को आवाज लगा ही दी। अपने पुत्र को जीवित देखकर बूढी औरत बहुत ही अत्यधिक प्रसन्न हुई और वह साधु के चरणों में गिर पड़ी। इसके बाद हनुमान जी अपने वास्तविक रूप में प्रकट हो गए और उन्होंने उस बूढी औरत को अपने दर्शन दिए। इस तरह मंगल प्रदोष के दिन हनुमान जी के दर्शन पाकर बूढी औरत का जीवन सफल हो गया।

 

बुध प्रदोष व्रत कथा

बहुत पहले की बात है। एक पुरुष की नई-नई शादी हुई था। उसका अभी गौना हुआ था। उसकी पत्नी शादी के बाद पहली बार अपने मायके गयी हुई थी। अपनी पत्नी को दुबारा लेने के लिए वह पुरुष अपने ससुराल पहूँचा और अपनी पत्नी के माँ यानि की अपनी सास से बोला की वह बुधवार के दिन ही अपनी पत्नी को अपने घर लेकर जाएगा।

उसके पत्नी के घरवाले ने कहा की बुधवार के दिन विदा करना शुभ नहीं माना जाता है। उसके सास ससुर और सभी घरवालों ने समझाया फिर वह पुरुष ने अपनी जिद के आगे किसी की बात नहीं मानी। उसके जिद के वजह उसके सास ससुर ने अपने बेटी को विदा करना पड़ा। वह दोनों पति पत्नी बैलगाड़ी से जा रहे थे। कुछ समय के बाद पत्नी को बहुत ही जोर की प्यास लगी। उसने अपने पति से कहा तब उसका पति लोटा लेकर पानी लाने के लिए निकल पड़ा।

जब वह पानी लेकर वापस आ रहा था तो उस पुरुष ने देखा की उसकी पत्नी किसी अन्य पुरुष द्वारा लाए गये पानी को पीकर हँस-हँस कर उस पुरुष से बात कर रही थी। यह देखकर उसका पति उसपर क्रोधित हो गया तथा वह उस आदमी से झगड़ा करने लगा जिसने उसके पत्नी को पानी पिलाया था। परंतु वह हैरान इस बात पर हो रहा था की वह जिस व्यक्ति से लड़ रहा था वह उसका हमशक्ल था बिल्कुल उसकी तरह दिखता है। काफी देर तक लड़ने की वजह से वहा पर लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई और सिपाही भी आ गए।

सिपाही ने महिला से पूछा की तुम यह बताओ की दोनों पुरुष में से कौन सा तुम्हारा पति है? तब महिला असमंजस में पड़ गई। और वहाँ इकट्ठा सारे लोग आश्चर्य में पड़ गये। अपनी पत्नी और इस हालात को देखकर उसे अपनी गलती का एहसास हुआ और वह भगवान शंकर जी से हाथ जोड़कर विनती करने लगा। हे प्रभु मुझे क्षमा कीजिए मुझसे बहुत ही बड़ी भूल हो गई जैसे ही उसकी प्रार्थना विनती खत्म हुई जो दूसरा व्यक्ति था यानि की उसका हमशक्ल था वह अंतर्ध्यान हो गया। फिर से वहाँ से दोनों पति पत्नी अपने घर चले गए। तब से उन दोनों पति पत्नी नियमपूर्वक बुधत्रयोदिशी का व्रत करने लगे और भगवान शंकर जी की पूजा-अर्चना करना शुरू कर दिया।

 

गुरु प्रदोष व्रत कथा

एक बार की बात है जब इन्द्र और वृत्रासुर की सेना में भयंकर लडाई हुआ। देवताओं ने सभी दैत्य सेना को हरा कर नष्ट-भ्रष्ट कर डाला। अपनी सेना को हारता देखकर वृत्रासुर बहुत ही क्रोधित हुआ और स्वयं ही युद्ध करने लगा। अपने आसुरी माया से उसने एक भयंकर विकराल रूप धारण कर लिया। तब सभी देवतागण भयभीत हो गये गुरुदेव बृहस्पति के पास गए। तब उन्होंने सारी बात बताई तब बृहस्पति भगवान जी बोले पहले मैं आप लोगो को वृत्रासुर कौन है? उसका वास्तविक परिचय बताऊंगा।

वृत्रासुर बड़ा तपस्वी और कर्मनिष्ठ असुर है। उसने गन्धमादन पर्वत पर अपनी घोर तपस्या से भोलेनाथ जी को प्रसन्न किया। पूर्व के समय में वह चित्ररथ नाम का राजा था। एक बार वह अपने ही विमान से कैलाश पर्वत चला गया। वहां शिव जी के वाम अंग में माता पार्वती को विराजमान थी यह देख वह उपहास पूर्वक बोला- हे प्रभु! मोह-माया में फंसे होने के कारण आप स्त्रियों के पास रहते हैं। किन्तु देवलोक में ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है की स्त्री आलिंगनबद्ध होकर सभा में बैठे।

राजा चित्ररथ के यह बात सुनकर सर्वव्यापी शिव शंकर जी मुस्करा कर बोले- हे राजन! मेरा व्यावहारिक अलग है। मैंने मृत्युदाता के कालकूट महाविष का पान किया है। फिर भी तुम मेरा मजाक उड़ाते हो! तब माता पार्वती राजा चित्ररथ की बातें सुनकर क्रोधित हो गई तब उन्होंने चित्ररथ से गुस्से में बोला- अरे दुष्ट! तूने सर्वव्यापी महेश्‍वर के साथ ही मेरा भी मजाक उड़ाया है। इसलिय मैं तुझे श्राप देती हूँ की फिर तू ऐसे कभी भी किसी का मजाक उड़ाने का सहास नहीं करेगा। अब तू दैत्य का रूप धारण कर विमान से नीचे गिर जायेगा ऐसा मैं तुझे शाप देती हूं।

माता पार्वती के अभिशाप से चित्ररथ राक्षस योनि को प्राप्त हो गया और त्वष्टा नामक ऋषि के श्रेष्ठ तप से उत्पन्न होकर वह वृत्रासुर बना। बृहस्पति भगवान  बोले- असुर वृत्रासुर बचपन से ही शिवजी का भक्त है। इसलिए हे इन्द्रदेव तुम पहले बृहस्पति प्रदोष का व्रत कर शंकर भगवान को प्रसन्न करो। तब देवराज इन्द्रदेव ने गुरुदेव की आज्ञा का पालन कर बृहस्पति प्रदोष व्रत किया। गुरु प्रदोष व्रत के प्रभाव से इन्द्र ने बहुत जल्द ही असुर वृत्रासुर से विजय प्राप्त कर ली और तब इन्द्रदेव अपने देवलोक में शान्तिपूर्वक सुखी से रहने लगे।

 

शुक्र प्रदोष व्रत कथा

एक बार की बात है। एक गाँव में तीन दोस्त रहते थे। उन तीनों दोस्तों में बड़ी घनिष्ठा वाली दोस्ती थी। उन तीनों दोस्तों में से एक राजा कापुत्र ,दूसरा ब्राह्मण का बेटा और तीसरा सेठ का लड़का था। उन तीनों दोस्तों का विवाह तो हुआ था परन्तु सेठ के लड़के का विवाह के बाद का गौना नहीं हुआ था। एक दिन तीनों दोस्त आपस में बैठकर बातें कर रहे थे और अपनी-अपनी पत्नियों के बारे में कुछ बातें  कर रहे थे। उनमे से ब्राह्मण का बेटा खुशीपूर्वक बोला– स्त्रियों के बिना घर भूतों जैसा लगता है।

जब यह बात सेठ के लड़के ने सुना तभी उसने निश्चय किया की वह अब अपनी पत्नी का गौना कराकर घर लायेगा। फिर से तीनों दोस्त अपने-अपने घर चले गए। सेठ का लड़का अपने गौना कराने के बारे में अपने माता पिता को बताया। उसके माता पिता ने कहा की आज शुक्रवार है सूर्यास्त हो चुका है। सूर्यास्त के बाद बहुओ और बेटियों को उनके घर से विदा करना अशुभ होता है। उसके माता पिता ने कहा की कल सुबह चले जाना और अपनी पत्नी को विदा करा कर लाना।

सेठ का लड़का अपनी जिद पर टिका रहा और उसने माता पिता की बात नहीं मानी और ससुराल चला गया पत्नी को विदा करा के लाने के लिए । वहाँ पहुचने के बाद उसने बताया की मैं विदाई कराने आया हूँ जब यह बात उन्होंने ने सुना तो उसके पत्नी के माता पिता ने भी समझाया लेकिन वह उनकी भी एक बात न सुनी। उसके जिद के कारण उन्हें अपनी बेटी की विदाई करनी पड़ी। जैसे ही वे लोग अपने गाँव से बाहर ही निकले थे की उनकी बैलगाड़ी का पहिया टूट गया और एक बैल की टांग भी टूट गई और उसके पत्नी को भी काफी चोट लगी।

सेठ का लड़का फिर भी हार नहीं माना ओर फिर आगे जाने लगा। जैसे ही वह कुछ दूर गया डाकुओ ने उसे घेर लिया तथा सारा सामान लूट लिया। सेठ का लड़का अपनी पत्नी के साथ रोता बिलखता हुआ अपने घर पहुचा और घर जाने के बाद उसे सांप ने काट लिया। उसके पिताजी ने वैद्य को बुलाया और वैद्य ने जाँच किया फिर वे बोले की आपका लड़का 3 दिन के अन्दर ही मर जाएगा। जैसे ही इस सारी घटना का पता उसके दोस्त को लगा जो एक ब्राह्मण का पुत्र था। उसने सेठ जी से कहा की आप अपने पुत्र एवं बहु को बहु के मायके भेज दे।

इसलिए सारी परेशानियां आ रही है क्योंकि वह अपनी पत्नी को शुक्रासत में विद करा के लाया है। उसके पिताजी को ये बात पसंद आयी सेठ  आई और वह अपने पुत्र एवं बहु को बहु के मायके भेज दिये। ससुराल पहुचते ही सेठ के लड़के की हालत में सुधार आने लगा। तथा कुछ दिनों के बाद वह वह पूरी तरह से ठीक हो गया। इसलिए जो भी लोग शुक्र प्रदोष व्रत करते है और शुक्र प्रदोष व्रत वाली कथा भी सुनते है तो उन्हे भगवान शिव का आशीर्वाद एवं सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है।

 

शनि प्रदोष व्रत कथा

जो कोई व्यक्ति शनि प्रदोष के दिन उपवास करता है उस दिन शनि प्रदोष व्रत का कथा भी सुनना चाहिए। शनि प्रदोष व्रत के कथा में यह लिखा गया है की एक बार की बात है एक गाँव में एक सेठ रहा करता था। वह सेठ एक धनी व्यक्ति था जिसे किसी भी चीज की कमी नहीं थी और उसके घर में हर प्रकार की सुख-सुविधाएं थीं।

लेकिन सेठ और उसकी पत्नी हमेशा दुःखी रहते थे क्योंकि उन्हें कोई संतान नहीं थी। एक दिन सेठ ने सोच-विचार किया और उन्होंने यह निश्चय किया किया की क्यों न अपना सारा काम नौकरों को सौंप दे और मै और सेठानी के साथ तीर्थयात्रा पर निकल जाए। उन्होंने ऐसा ही किया। जैसे ही वह तीर्थयात्रा के लिए अपने गाँव से बाहर निकले उन्होंने एक साधु को देखा जो ध्यान में मग्न बैठे थे। सेठजी और उनकी पत्नी ने सोचा क्यों न इस साधु से आशीर्वाद लेकर आगे की यात्रा की जाए।

जब सेठ और सेठानी साधु के पास गए और उनके पास बैठ गए। साधु ने जब आंखें खोलीं तो उन्होंने देखा कि सेठ और सेठानी काफी समय से उनके पास बैठे है जो मेरे से आशीर्वाद लेने का इंतजार कर रहे हैं। साधु ने सेठ और सेठानी से कहा कि मैं आपके दुःख का कारण जानता हूं। आप  शनि प्रदोष व्रत करे जिससे आपको संतान का सुख प्राप्त होगा। जिस तरह साधु ने सेठ और सेठानी को शनि प्रदोष व्रत करने की विधि बताई उसी तरह उन्होंने ने शंकर भगवान की पूजा की और शंकर भगवान की कृपा से उन्हें संतान का सुख प्राप्त हुआ।

 

तो इस प्रकार सभी प्रदोष व्रत का कथा है। आप जिस दिन का प्रदोष व्रत का उपवास रखते है उस दिन के कथा को पढना और सुनना चाहिए। इन सभी कारणों से प्रदोष व्रत को बहुत ही कल्याणकारी माना जाता है। जो व्यक्ति प्रदोष व्रत का उपवास रखता है भगवान शिव जी के कृपा से उसकी सारी मनोकामना पूर्ण होती है। इस व्रत के प्रभाव उस व्यक्ति के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं और उसके जीवन में हमेशा सुख-समृद्धि बनी रहती है। ऐसा भी कहा जाता है इस व्रत को करने से दो गायों को दान करने के समान फल मिलता है।

 

Pradosh / Trayodashi Vrat – प्रदोष / त्रयोदशी व्रत पूजन विधि, पूजन सामग्री, विधि विधान के अनुसार प्रदोष व्रत विधि

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